जयपुर. आबादी क्षेत्र में होटलों को क्वॉरेंटाइन सेंटर के रूप में चिन्हित करने के मामले में राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट में जवाब पेश किया गया है. अदालत ने रजिस्ट्री जवाब रिकॉर्ड पर लेने के आदेश देते हुए मामले की सुनवाई 18 मई को तय की है.
योगेश मोदी की याचिका में सरकार की ओर से कहा गया कि महामारी अधिनियम के तहत क्वॉरेंटाइन सेंटर चिन्हित करने का काम प्रशासनिक आदेश से हुआ है. ऐसे में अदालत को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. वहीं जनहित याचिका बिना तैयारी और तथ्यों की जानकारी के अभाव में पेश की गई है. इसलिए इसे भारी हर्जाने के साथ खारिज किया जाना चाहिए.
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जवाब में कहा गया कि मरीजों और चिकित्सकों के लिए अलग-अलग क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाने गए हैं. शहर में 56 शिक्षण संस्थाओं को मरीजों के लिए और 9 होटलों को चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ के लिए रेस्ट रूम के लिए अवाप्त किया गया है. वहीं गत 7 अप्रैल को जारी आदेश में बताई किसी भी होटल का उपयोग क्वॉरेंटाइन सेंटर के तौर पर नहीं किया जा रहा है.
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सरकार की ओर से जवाब में कहा गया कि वर्तमान स्थितियों में किसी भी खास बिल्डिंग का चयन करना प्रशासनिक काम है. याचिकाकर्ता यह दावा नहीं कर सकता कि किसी खास क्षेत्र में खास स्थान पर ही बिल्डिंग का चयन किया जाए. कोरोना से बचाव के लिए उनकी ओर से विश्व स्वास्थ्य संगठन और केंद्र सरकार की गाइडलाइन की पूर्ण रूप से पालन की गई है.
प्रयोगशाला सहायकों और कंप्यूटर ऑपरेटर्स को बदलने पर रोक
राजस्थान हाईकोर्ट ने आरएमआरसी के जरिए बूंदी में संविदा पर लगे प्रयोगशाला सहायकों और कंप्यूटर ऑपरेटर को हटाने पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को जवाब पेश करने को कहा है. न्यायाधीश एसपी शर्मा ने यह आदेश कविंद्र शर्मा बनने की ओर से दायर याचिका पर दिए.
याचिका में अधिवक्ता हिमांशु जैन ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता बूंदी में चिकित्सा विभाग के अधीन आरएमआरसी के जरिए संविदा पर नियुक्त होकर सालों से काम कर रहे हैं. वहीं अब विभाग उन्हें हटाकर उनके स्थान पर प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए दूसरे संविदा कर्मियों को नियुक्त करने जा रहा है. जबकि एक संविदा कर्मी को हटाकर उसके स्थान पर दूसरे संविदा कर्मी को नियुक्त नहीं किया जा सकता.
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हाईकोर्ट भी पूर्व में तय कर चुका है कि नियमित भर्ती होने पर ही संविदाकर्मी को हटाया जा सकता है. इसके अलावा अभी कोरोना संक्रमण चल रहा है. यदि याचिकाकर्ताओं को हटाया गया तो विभाग का काम प्रभावित होगा. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओं को हटाने पर रोक लगाते हुए संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है.