जयपुर. चौमू हाउस सर्किल पर रेड लाइट होते ही गाड़ियों के पास तिरंगा लेकर 2 मासूम बच्चे पहुंच जाते हैं. दोनों की उम्र महज 6 से 7 साल है. उन्हें नहीं पता, कि आखिर वो 26 जनवरी को ये झंडे बेच क्यों रहे हैं. गणतंत्र दिवस होता क्या है, उन्हें तो ये तक नहीं पता, कि जो झंडे वो बेच रहे हैं, उनको तिरंगा कहते हैं. उन्हें तो बस इतना मालूम है, कि एक झंडे को 10 रुपए में बेचना है और 26 जनवरी पर इसे लोग खरीद भी लेते हैं.
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संविधान में सभी को समानता का अधिकार है. संविधान में देश के आखिरी व्यक्ति को भी सभी मूलभूत सुविधाएं मिलने का अधिकार है. लेकिन आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.
राधेश्याम और मौसम जैसे मासूम हाथ में तिरंगा लेकर चौराहे पर दौड़ लगाते हैं और उसके एवज में मिले चंद पैसों से अपना पेट भरते हैं, जबकि इन नौनिहालों के हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए, क्योंकि अच्छी पढ़ाई करने का इन्हें भी अधिकार है.
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जयपुर का जेएलएन मार्ग हो या चौमू हाउस सर्किल हर दिन यहां से हजारों वाहन गुजरते हैं. इन्हीं वाहनों में बैठकर हर खास और आम शख्स गुजरता है, लेकिन किसी का भी ध्यान उन मासूमों पर नहीं पड़ता, जो चौराहों पर अपनी जान जोखिम में डालकर, तमाम परेशानियों से जूझते हुए चार पैसे कमाने और पेट भरने के लिए तिरंगा बेचने निकल पड़ते है. ऐसे में सवाल उठता है, कि क्या वाकई ये उसी गणतंत्र का हिस्सा हैं, जिसे सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है.