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स्पेशल रिपोर्ट: नहीं पता गणतंत्र दिवस क्या है, लेकिन पेट के लिए के ये मासूम निकल पड़ते हैं तिरंगा बेचने - तिरंगा बेचते दिख जाते है

देश में गणतंत्र दिवस को लेकर कई आयोजन हुए, लोग तिरंगा और इससे जुड़ी दूसरी सामग्री खरीद कर उत्साहित दिखे. लेकिन इस दौरान उन मासूमों की ओर किसी का ध्यान नहीं गया, जो सड़क किनारे और चौराहों पर तिरंगा बेचते रहे. हर साल शहर में कई बच्चे इन दिनों तिरंगा बेचते दिख जाते हैं. लेकिन इन्हें नहीं पता, कि लोग ये झंडा क्यों खरीदते हैं. इन्हें ये भी नहीं पता, कि गणतंत्र दिवस होता क्या है. ये मासूम सिर्फ कुछ पैसे कमाने और पेट की खातिर तिरंगा बेचने निकल पड़ते हैं. देखिए ये खास रिपोर्ट...

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ये कैसा गणतंत्र
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Published : Jan 26, 2020, 11:42 PM IST

Updated : Jan 27, 2020, 3:33 PM IST

जयपुर. चौमू हाउस सर्किल पर रेड लाइट होते ही गाड़ियों के पास तिरंगा लेकर 2 मासूम बच्चे पहुंच जाते हैं. दोनों की उम्र महज 6 से 7 साल है. उन्हें नहीं पता, कि आखिर वो 26 जनवरी को ये झंडे बेच क्यों रहे हैं. गणतंत्र दिवस होता क्या है, उन्हें तो ये तक नहीं पता, कि जो झंडे वो बेच रहे हैं, उनको तिरंगा कहते हैं. उन्हें तो बस इतना मालूम है, कि एक झंडे को 10 रुपए में बेचना है और 26 जनवरी पर इसे लोग खरीद भी लेते हैं.

नहीं पता गणतंत्र दिवस क्या है

पढ़ेंः जयपुर : हाईकोर्ट में गणतंत्र दिवस समारोह बना ऐतिहासिक, पहली बार महिला जज ने फहराया तिरंगा

संविधान में सभी को समानता का अधिकार है. संविधान में देश के आखिरी व्यक्ति को भी सभी मूलभूत सुविधाएं मिलने का अधिकार है. लेकिन आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.

राधेश्याम और मौसम जैसे मासूम हाथ में तिरंगा लेकर चौराहे पर दौड़ लगाते हैं और उसके एवज में मिले चंद पैसों से अपना पेट भरते हैं, जबकि इन नौनिहालों के हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए, क्योंकि अच्छी पढ़ाई करने का इन्हें भी अधिकार है.

पढ़ेंः जांबाज जवान : बाइक पर दिखाए हैरतअंगेज करतब, सबको रोमांचित किया

जयपुर का जेएलएन मार्ग हो या चौमू हाउस सर्किल हर दिन यहां से हजारों वाहन गुजरते हैं. इन्हीं वाहनों में बैठकर हर खास और आम शख्स गुजरता है, लेकिन किसी का भी ध्यान उन मासूमों पर नहीं पड़ता, जो चौराहों पर अपनी जान जोखिम में डालकर, तमाम परेशानियों से जूझते हुए चार पैसे कमाने और पेट भरने के लिए तिरंगा बेचने निकल पड़ते है. ऐसे में सवाल उठता है, कि क्या वाकई ये उसी गणतंत्र का हिस्सा हैं, जिसे सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है.

जयपुर. चौमू हाउस सर्किल पर रेड लाइट होते ही गाड़ियों के पास तिरंगा लेकर 2 मासूम बच्चे पहुंच जाते हैं. दोनों की उम्र महज 6 से 7 साल है. उन्हें नहीं पता, कि आखिर वो 26 जनवरी को ये झंडे बेच क्यों रहे हैं. गणतंत्र दिवस होता क्या है, उन्हें तो ये तक नहीं पता, कि जो झंडे वो बेच रहे हैं, उनको तिरंगा कहते हैं. उन्हें तो बस इतना मालूम है, कि एक झंडे को 10 रुपए में बेचना है और 26 जनवरी पर इसे लोग खरीद भी लेते हैं.

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संविधान में सभी को समानता का अधिकार है. संविधान में देश के आखिरी व्यक्ति को भी सभी मूलभूत सुविधाएं मिलने का अधिकार है. लेकिन आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.

राधेश्याम और मौसम जैसे मासूम हाथ में तिरंगा लेकर चौराहे पर दौड़ लगाते हैं और उसके एवज में मिले चंद पैसों से अपना पेट भरते हैं, जबकि इन नौनिहालों के हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए, क्योंकि अच्छी पढ़ाई करने का इन्हें भी अधिकार है.

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जयपुर का जेएलएन मार्ग हो या चौमू हाउस सर्किल हर दिन यहां से हजारों वाहन गुजरते हैं. इन्हीं वाहनों में बैठकर हर खास और आम शख्स गुजरता है, लेकिन किसी का भी ध्यान उन मासूमों पर नहीं पड़ता, जो चौराहों पर अपनी जान जोखिम में डालकर, तमाम परेशानियों से जूझते हुए चार पैसे कमाने और पेट भरने के लिए तिरंगा बेचने निकल पड़ते है. ऐसे में सवाल उठता है, कि क्या वाकई ये उसी गणतंत्र का हिस्सा हैं, जिसे सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है.

Intro:जयपुर - देश में गणतंत्र दिवस को लेकर कई आयोजन हुए। लोग तिरंगा और इससे जुड़ी दूसरी सामग्री खरीद कर उत्साहित दिखे। लेकिन इस दौरान उन मासूमों की ओर किसी का ध्यान नहीं गया जो सड़क किनारे और चौराहों पर तिरंगा बेचते रहे। हर साल शहर में कई बच्चे इन दिनों तिरंगा पताका बेचते दिख जाते हैं। लेकिन इन्हें नहीं पता कि लोग ये झंडा क्यों खरीदते हैं। इन्हें ये भी नहीं पता कि गणतंत्र दिवस होता क्या है। ये मासूम केवल कुछ पैसे और पेट के खातिर तिरंगा बेचने निकल पड़ते हैं।


Body:चौमू हाउस सर्किल पर रेड लाइट होते ही गाड़ियों के पास तिरंगा लेकर पहुंचने वाले दो मासूम राधेश्याम और मौसम। जिनकी उम्र महज 6 से 7 साल है। उन्हें नहीं पता कि आखिर वो 26 जनवरी को ये झंडे बेच क्यों रहे हैं। गणतंत्र दिवस होता क्या है। उन्हें तो ये तक नहीं पता कि जो झंडे वो बेच रहे हैं, उनको तिरंगा कहते हैं। वही तिरंगा जो देश में समानता का प्रतीक है। उन्हें तो बस इतना मालूम है कि एक झंडी ₹10 में बेचनी है। और 26 जनवरी पर इसे लोग खरीद भी लेते हैं।

चूंकि 26 जनवरी के दिन आप और हम तिरंगे के साथ सेल्फी क्लिक कराने के लिए लालायित रहते हैं। इस दिन देशभक्ति उबाल मार रही होती है। और आप कार की विंडो नीचे करते हुए एक झंडा खरीद भी लेते हैं। उस दौरान आप मोलभाव भी नहीं करते। क्योंकि देश भक्ति का ज्वार सातवें आसमान पर जो होता है।

इसी दिन आज देश में कई आयोजन भी होते हैं। जहां राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी गरीबी, भुखमरी, शिक्षा, प्राकृतिक आपदाओं, खेती में हमने गजब के परिवर्तन कर लिए, अब हमें विकसित देश की श्रेणी में आने से कोई नहीं रोक सकता। इस तरह के भाषण देते हैं। और हम उन्हें सुनकर ताली भी बजा लेते हैं।

लेकिन हकीकत ये है कि जिस गणतंत्र कि हम बात करते हैं। उसके संविधान में सभी को समानता का अधिकार है। उसी संविधान में देश के आखिरी व्यक्ति को भी सभी मूलभूत सुविधाएं मिलने का अधिकार है। लेकिन जब राधेश्याम और मौसम जैसे मासूमों को हाथ में तिरंगा लेकर चौराहे पर दौड़ लगाते देखते हैं। तो इस संविधान, इस गणतंत्र और राजनेताओं के बयानों पर सवाल उठने लाजमी हो जाते हैं।


Conclusion:जयपुर का जेएलएन मार्ग हो या चौमू हाउस सर्किल हर दिन यहां से हजारों वाहन गुजरते हैं। इन्हीं वाहनों में बैठकर प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता भी गुजरते हैं। लेकिन किसी एक का भी ध्यान उन मासूमों पर नहीं पड़ता, जो चौराहों पर अपनी जान जोखिम में डालकर, तमाम परेशानियों से जूझते हुए चार पैसे कमाने और पेट भरने के लिए तिरंगा बेचने निकल पड़ते है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई ये उसी गणतंत्र का हिस्सा है, जिसके संविधान को सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है।
Last Updated : Jan 27, 2020, 3:33 PM IST
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