जयपुर. राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) का 59वां प्रांतीय अधिवेशन रविवार को जयपुर में हुआ. इसमें राजस्थान में उच्च शिक्षा की वर्तमान दशा और भविष्य की दिशा पर चर्चा की गई. हालांकि, इस बार महामारी कोविड-19 के संक्रमण के खतरे के बीच इस साल कार्यक्रम का स्वरूप छोटा रखा गया.
इस अधिवेशन में जहां प्रदेश की कांग्रेस सरकार की नीतियों को उच्च शिक्षा के घटते स्तर के लिए जिम्मेदार बताते हुए उन नीतियों की आलोचना की गई तो वहीं केंद्र की मोदी सरकार की ओर से लाई गई नई शिक्षा नीति को देश के भविष्य का आधार बताया गया.
राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ के महामंत्री नारायण लाल गुप्ता ने बताया कि संगोष्ठी का विषय राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षक की भूमिका-अवसर और चुनौतियां रखा गया. इसके बाद शिक्षा और शिक्षकों की समस्याओं पर उद्घाटन सत्र में विचार किया गया. खुले सत्र में सभी शिक्षकों ने अपनी बात रखी और साधारण सभा में आय-व्यय का ब्यौरा पेश किया गया.
इसके साथ ही उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए सरकार को भेजे जाने वाले प्रस्ताव का प्रारूप भी तय किया गया है. इस अधिवेशन में राजस्थान भर से करीब 200 शिक्षकों ने शिरकत की है. उन्होंने अपने संबोधन में राज्य सरकार की नीतियों को उच्च शिक्षा के खिलाफ बताते हुए कहा कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में विश्वविद्यालयों की अकादमिक स्वतंत्रता और भय मुक्त वातावरण का जिक्र किया था, लेकिन आज हालात यह हैं कि कुलपति निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं.
कॉलेज और विश्वविद्यालय शिक्षकों की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार विरोधी विचारधारा का दमन करने का काम कर रही है. इस मौके पर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि आज ज्ञान का जमाना है. आज दुनिया में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था है.
पूनिया ने कहा कि गुरुकुल पद्धति वाले देश में मैकाले का आगमन हुआ और उनकी नीति ने न केवल युवाओं को डिग्री का मोहताज बनाया बल्कि पथभ्रष्ट भी किया और शिक्षा व्यवस्था के जरिए नौजवानों को भटकाया. इस मौके पर उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोला और केंद्र की भाजपा सरकार की नीतियों की सराहना की.