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Sickle Cell Anaemia cases in Rajasthan: विदेशी मदद से हो रहा सिकल सेल एनीमिया का इलाज, प्रदेश का ट्राइबल एरिया सबसे ज्यादा प्रभावित

प्रदेश में करीब 25 हजार से अधिक बच्चे सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia cases in Rajasthan) से जूझ रहे हैं. इस बीमारी के चपेट में ट्राइबल एरिया के बच्चे ज्यादा हैं. वहीं इसका इलाज काफी महंगा है. ऐसे में इंडियन डॉक्टर्स का एक ऑर्गेनाइजेशन इस बीमारी से लड़ने में मदद कर रहा है.

Sickle Cell Anaemia cases in Rajasthan, Jaipur news
जयपुर में सिकल सेल एनीमिया का इलाज
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Published : Dec 18, 2021, 8:12 PM IST

जयपुर. सिकल सेल एनीमिया बीमारी के इलाज के लिए आज भी प्रदेश विदेशी मदद पर निर्भर है. मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर्स गवर्नमेंट ऑफ इंडिया (Ministry of Tribal Affairs Government of India) की माने तो भारत में पैदा होने वाले 86 बच्चों में से 1 में सिकल सेल एनीमिया बीमारी देखने को मिलती है. भारत में अनुमानित 15 से 20 लाख बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हैं. जबकि प्रदेश की बात की जाए तो आज भी तकरीबन 25 से 30 हजार बच्चे इस बीमारी से जूझ रहे हैं.

प्रदेश की बात की जाए तो सरकार की ओर से कोई विशेष कदम इस बीमारी को लेकर नहीं उठाया गया है. अमूमन राजस्थान के ट्राइबल एरिया में पैदा होने वाले बच्चों में यह बीमारी सबसे अधिक देखने को मिलती (sickle cell anaemia in Tribal area) है. मौजूदा समय में इस बीमारी का इलाज काफी महंगा है. ऐसे में अमेरिका में रहने वाले इंडियन डॉक्टर्स का एक ऑर्गेनाइजेशन भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों के लिए दवाइयां उपलब्ध करवा रहा है.

राजस्थान में सिकल सेल एनीमिया

लोमा लिंडा यूनिवर्सिटी चिल्ड्रंस हॉस्पिटल यूएसए के चिकित्सक डॉ. अक्षत जैन बच्चों में होने वाले खून संबंधी विकार के विशेषज्ञ है. वे अपने स्तर पर राजस्थान के ट्राईबल एरिया में सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए दवाइयां उपलब्ध करवा रहे हैं. डॉक्टर जैन का कहना है कि बच्चों में होने वाली सिकल सेल एनीमिया बीमारी अनुवांशिक होती है. यह मुख्य रूप से राजस्थान के ट्राइबल एरिया में सबसे अधिक देखने को मिलती है. इस बीमारी का इलाज काफी महंगा होता है. फिलहाल राजस्थान सरकार (Rajasthan Government on Sickle cell anaemia) की ओर से भी इस बीमारी के इलाज के लिए किसी तरह की कोई विशेष सहायता उपलब्ध नहीं करवाई जा रही.

यह भी पढ़ें. Rajasthan Corona Update: 32 नए मामले, एक्टिव केस की संख्या 259 पहुंची

एनआरआई डॉक्टर्स कर रहे फंडिंग

डॉक्टर जैन का कहना है कि अमेरिका में बसे भारतीय चिकित्सकों की ओर से समय-समय पर इस बीमारी के इलाज के लिए काम में आने वाली दवाओं की खरीद की जाती है. इन्हें देश के अलग-अलग क्षेत्रों में भेजा जाता है. डॉक्टर जैन का कहना है कि वे खुद ट्राइबल एरिया में जाकर बच्चों को यह दवा उपलब्ध करवाते हैं. बीते कई सालों से यह सिलसिला चल रहा है. इस बीमारी के इलाज में काम आने वाली दवा काफी महंगी होती (treatment of Sickle cell anaemia in Rajasthan) है. ऐसे में हर कोई इन दवाओं की कीमत को वहन नहीं कर सकता.

डॉ. जैन का यह भी कहना है कि अमेरिका में इस बीमारी का इलाज मौजूद है. हमारी कोशिश रहती है कि जो भी हमने अमेरिका में रहकर सीखा है, उसे यहां के चिकित्सकों को भी सिखाया जाए. जयपुर आने पर डॉक्टर जैन बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल जेकेलोन में इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों के इलाज में सहायता करते हैं. जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज की ओर से उन्हें अप्वॉइंट भी किया गया है.

क्या है यह बीमारी

सिकल सेल एनीमिया बच्चों में अनुवांशिक और जन्मजात होती है. डॉक्टर जैन का कहना है कि इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को हाथ पैरों में सूजन और खून की कमी हो जाती है. यह काफी तकलीफदेय होती है. हालांकि जीन थेरेपी से इस बीमारी को खत्म किया जा सकता है लेकिन देश के चुनिंदा सेंटर्स पर ही यह उपलब्ध है. इस बीमारी में लाल रुधिर कोशिका यानी रेड ब्लड सेल के आकार में परिवर्तन हो जाता है और यह कोशिकाएं सिकुड़ जाती है. जिसके चलते खून के जरिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन अन्य अंगों तक नहीं पहुंच पाती. ऐसे में कई बार पीड़ित मरीज की जान भी चली जाती है. हालांकि नवजात शिशु जब पैदा होता है तो 4 से 5 महीने तक इस बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं देते. ऐसे में न्यू बोर्न स्क्रीनिंग के माध्यम से ही इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है.

जयपुर. सिकल सेल एनीमिया बीमारी के इलाज के लिए आज भी प्रदेश विदेशी मदद पर निर्भर है. मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर्स गवर्नमेंट ऑफ इंडिया (Ministry of Tribal Affairs Government of India) की माने तो भारत में पैदा होने वाले 86 बच्चों में से 1 में सिकल सेल एनीमिया बीमारी देखने को मिलती है. भारत में अनुमानित 15 से 20 लाख बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हैं. जबकि प्रदेश की बात की जाए तो आज भी तकरीबन 25 से 30 हजार बच्चे इस बीमारी से जूझ रहे हैं.

प्रदेश की बात की जाए तो सरकार की ओर से कोई विशेष कदम इस बीमारी को लेकर नहीं उठाया गया है. अमूमन राजस्थान के ट्राइबल एरिया में पैदा होने वाले बच्चों में यह बीमारी सबसे अधिक देखने को मिलती (sickle cell anaemia in Tribal area) है. मौजूदा समय में इस बीमारी का इलाज काफी महंगा है. ऐसे में अमेरिका में रहने वाले इंडियन डॉक्टर्स का एक ऑर्गेनाइजेशन भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों के लिए दवाइयां उपलब्ध करवा रहा है.

राजस्थान में सिकल सेल एनीमिया

लोमा लिंडा यूनिवर्सिटी चिल्ड्रंस हॉस्पिटल यूएसए के चिकित्सक डॉ. अक्षत जैन बच्चों में होने वाले खून संबंधी विकार के विशेषज्ञ है. वे अपने स्तर पर राजस्थान के ट्राईबल एरिया में सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए दवाइयां उपलब्ध करवा रहे हैं. डॉक्टर जैन का कहना है कि बच्चों में होने वाली सिकल सेल एनीमिया बीमारी अनुवांशिक होती है. यह मुख्य रूप से राजस्थान के ट्राइबल एरिया में सबसे अधिक देखने को मिलती है. इस बीमारी का इलाज काफी महंगा होता है. फिलहाल राजस्थान सरकार (Rajasthan Government on Sickle cell anaemia) की ओर से भी इस बीमारी के इलाज के लिए किसी तरह की कोई विशेष सहायता उपलब्ध नहीं करवाई जा रही.

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एनआरआई डॉक्टर्स कर रहे फंडिंग

डॉक्टर जैन का कहना है कि अमेरिका में बसे भारतीय चिकित्सकों की ओर से समय-समय पर इस बीमारी के इलाज के लिए काम में आने वाली दवाओं की खरीद की जाती है. इन्हें देश के अलग-अलग क्षेत्रों में भेजा जाता है. डॉक्टर जैन का कहना है कि वे खुद ट्राइबल एरिया में जाकर बच्चों को यह दवा उपलब्ध करवाते हैं. बीते कई सालों से यह सिलसिला चल रहा है. इस बीमारी के इलाज में काम आने वाली दवा काफी महंगी होती (treatment of Sickle cell anaemia in Rajasthan) है. ऐसे में हर कोई इन दवाओं की कीमत को वहन नहीं कर सकता.

डॉ. जैन का यह भी कहना है कि अमेरिका में इस बीमारी का इलाज मौजूद है. हमारी कोशिश रहती है कि जो भी हमने अमेरिका में रहकर सीखा है, उसे यहां के चिकित्सकों को भी सिखाया जाए. जयपुर आने पर डॉक्टर जैन बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल जेकेलोन में इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों के इलाज में सहायता करते हैं. जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज की ओर से उन्हें अप्वॉइंट भी किया गया है.

क्या है यह बीमारी

सिकल सेल एनीमिया बच्चों में अनुवांशिक और जन्मजात होती है. डॉक्टर जैन का कहना है कि इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को हाथ पैरों में सूजन और खून की कमी हो जाती है. यह काफी तकलीफदेय होती है. हालांकि जीन थेरेपी से इस बीमारी को खत्म किया जा सकता है लेकिन देश के चुनिंदा सेंटर्स पर ही यह उपलब्ध है. इस बीमारी में लाल रुधिर कोशिका यानी रेड ब्लड सेल के आकार में परिवर्तन हो जाता है और यह कोशिकाएं सिकुड़ जाती है. जिसके चलते खून के जरिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन अन्य अंगों तक नहीं पहुंच पाती. ऐसे में कई बार पीड़ित मरीज की जान भी चली जाती है. हालांकि नवजात शिशु जब पैदा होता है तो 4 से 5 महीने तक इस बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं देते. ऐसे में न्यू बोर्न स्क्रीनिंग के माध्यम से ही इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है.

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