जयपुर. राजस्थान में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी दिन एक बार फिर अपने बयानों के कारण शोभा डे चर्चा का विषय बनीं. उन्होंने कहा कि भारतीय महिलाएं (Writer Shobha De on Indian Women) आज भी यौन इच्छाओं को दबाने और छुपाने पर मजबूर हैं.
लेखिका शोभा डे ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अपने सत्र की शुरुआत कांग्रेस नेता शशि थरूर पर (Shobha Day Commented on Shashi Tharoor) कमेंट करते हुए कि कहा कि उन्हें आकर्षक ना कहो, क्योंकि यहां शशि थरूर भी घूम रहे हैं. बाद में चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोगों का मानना है कि उनके लुक्स की वजह से उनकी किताबें बिकती हैं, तो ऐसे लोग अपनी तस्वीर लगा सकते हैं.
क्योंकि शोभा डे अपने बयान और ट्वीट्स की वजह से अक्सर ट्रोल होती हैं. इस पर उन्होंने ध्यान नहीं देने और किसी की भी परवाह किए बिना ट्विट और बयानों के जरिए अपना सच बताने की बात कही. वहीं, उन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को लेकर कहा कि दूसरे देशों की महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाएं यौन इच्छाएं छुपाती हैं.
इस दौरान शोभा डे ने एक सीनियर जज के कमेंट का जिक्र करते हुए कहा कि मोर का आंसू पीकर मोरनी प्रजनन करती है. इस पर उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि ये पुरुष वर्ग का महिलाओं के प्रति कैसा प्यार और कैसी सोच है कि एक पक्षी के आंसू पीने से प्रजनन की बात की जाती है. जबकि वो ये नहीं सोच सकते कि एक औरत की भी सेक्स लाइफ हो सकती है.
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उन्होंने इसे पाखंडी और दोहरी मानसिकता वाली सोच बताते हुए कहा कि सालों से इसी सोच से लोगों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है. उन्होंने अपनी किताब का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने कहीं भी स्पष्ट तौर पर एडल्ट्री का जिक्र नहीं किया था, लेकिन लोगों ने इसे इमेजिन किया. इससे ये साबित होता है कि उनकी राइटिंग नहीं, बल्कि लोगों की सोच गंदी है. लेकिन ये सच है कि आज भी समाज में (Recognition of Female Sexuality in Indian Society) फीमेल सेक्सुअलिटी को मान्यता नहीं है.
इस दौरान उन्होंने एक अन्य लेखक की किताब को लेकर कहा कि वो भी सीधे शब्दों में एडल्ट्री के बारे में लिखते हैं, लेकिन पुरुष होने के चलते उन पर सवाल नहीं उठाए जाते हैं. यदि कोई पुरुष लेखक व्यंग्यात्मक लिखता है तो उसकी तारीफ होती है, जबकि महिला लेखिका कोई व्यंग्य करती है तो उसे गाली खानी पड़ती है. उन्होंने अपनी किताबों में फीमेल कैरक्टर को विक्टिम दर्शाने के बजाय उन्हें हार्ड वर्कर और बोल्ड दिखाने का प्रयास किया है, ताकि समाज की सोच बदले.
वहीं, एक अन्य सत्र में चंद्रकांत सिंह, लेफ्टिनेंट जनरल एसएस मेहता, कमांडर कृष्णमूर्ति ने 'द रिवर ऑफ विक्ट्री' पुस्तक को लेकर चर्चा की. चर्चा में 1962 और 1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए कहा गया कि चीन के साथ भारत का युद्ध हुआ, लेकिन भारत को इसमें हार का मुंह देखना पड़ा. ऐसे में उस दौरान शहीद हुए सैनिकों को कम याद किया जाता है, लेकिन 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए वॉर में जो सैनिक शहीद हुए उनको आज सभी याद भी करते हैं और उस दिन को जश्न की तरह मनाया जाता है.
वहीं, कमांडर कृष्ण मूर्ति ने बताया कि 1971 में आर्मी का जॉइंट ऑपरेशन था, जिसकी सबसे ज्यादा सक्सेसफुल रेट रही है और उसका कारण है जवानों का पूरी तरह से फील्ड अटेंशन रहा.