जयपुर. कोरोना काल में जब लोग एक वायरस के डर से घरों में कैद हुए तब महज एक प्रकृति ही थी, जो मुस्कुरा करके खिल उठी. लॉकडाउन का अवधि में ना तो कल-कारखानों का अपशिष्ट था और ना हीं वाहनों का धुआं. मानो कोरोना काल में प्रकृति ने खुद को दोबारा से निखारा हो. प्रकृति की इस संवेदना को जयपुर के परकोटा क्षेत्र में रहने वाली शीला पुरोहित ने अपने रंगों से उकेरने की कोशिश की. प्रकृति मां को अपनी कला के माध्यम से संवारने की ये कोशिश उस वक्त भी जारी रही, जब शिला की खुद की मां प्रकृति की गोद में समा रही थी.
शीला पुरोहित ने अब तक 100 से ज्यादा पेंटिंग बनाकर अपने आप में एक कीर्तिमान हासिल किया है. वह पर्यावरण को बचाने के लिए प्रकृति के सौंदर्य की पेंटिंग बना रही है, जिससे राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे देश में उनके पेंटिंग की सराहना की जा रही है. उनका कहना है कि प्रकृति मां हम सब से रूठ चुकी है. इसलिए इतनी बड़ी आपदाएं आ रही है. शायद प्रकृति मां हम लोगों से बुरा मान चुकी हैं. इसलिए देशभर में कुदरत अपना कहर बरपा रही है.
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शीला पुरोहित का मानना है कि वे प्रकृति को किस प्रकार से प्रसन्न करें. इसके लिए वह हर दिन एक वाटर कलर पेंटिंग बनाती है. उन्होंने अपने पेंटिंग के माध्यम से कोरोना संकट काल में रोते बिलखते लोग, सड़कों पर पड़ी शवों को देख प्रकृति के आंखों में आंसू और लॉकडाउन में भूखा प्यासा रिक्शेवाले का परिवार खाली पड़े रिक्शे को निहारने जैसे भाव-विभोर दृश्यों को उकेरा गया है. उनका मानना है कि शायद प्रकृति नाराज होकर ऐसा कर रही है. वैसे कोई भी मां अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहती है. लेकिन हम सब को सबक सिखाने के लिए प्रकृति मां ऐसा कर रही हो.
यही कारण है कि वह हर दिन एक नई पेंटिंग बनाकर प्रकृति को मनाने में जुटी हुई है. उन्हें विश्वास है कि एक ना एक दिन प्रकृति मां उनकी बात को जरूर मानेंगी. उन्होंने बताया कि जब उन्होंने पेंटिंग बनाने का संकल्प लिया, तब उन्होंने सोचा था कि वह अपनी पेंटिंग के माध्यम से लोगों को जागरूक करेगी. उन्होंने हर रोज एक-एक पेंटिंग बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया. वहीं, अब इन पेंटिंग्स को एग्जीबिशन द्वारा बेचकर राशि इकट्ठा कर वह पेड़-पौधे लगाएगी.
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इस बीच शीला पुरोहित के साथ एक ऐसा हादसा हुआ, जिसने उनको पूरी तरह झकझोर कर रख दिया. बीते 14 जून को उनकी मां का देहांत हो गया. लेकिन फिर भी दिल्ली की रहने वाली उनकी हमदर्द यास्मिन सुलताना ने इस सिलसिले को जारी रखा और वो खुद पेंटिंग बनाकर 12 दिन तक उन्हें भेजती रही. लेकिन फिर 13वें दिन से शीला पेंटिंग बनाने में जुट गई. अब भले ही उनको जन्म देने वाली मां उनसे दूर चली गई हो. इसके बावजूद वह प्रकृति मां को रूठने से मनाने में बदस्तूर जुटी रही.
शीला जैसी गृहणी ने देश और दुनिया को अपनी पेंटिंग के जरिए एक संदेश दिया है कि कोरोना काल के दौरान देश दुनिया में सब कुछ बंद हो गया. इस दौरान प्रकृति बिल्कुल शुद्ध हो चुकी है. यही वजह है कि 3 महीने के लॉकडाउन में हम सब लोगों ने इतनी शुद्ध हवा का अनुभव किया है, जो जिंदगी में पहले कभी नहीं किया था. उन्होंने कहा कि अगर हम पर्यावरण को साफ सुथरा बनाने के लिए ऐसे ही ध्यान रखें तो कभी भी देश में प्रदूषण नहीं होगा.