जयपुर. कोरोना संक्रमण से मुकाबले के लिए राजस्थान में शटडाउन का बड़ा फैसला किया गया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश में कुछ आवश्यक सेवाओं से संबंधित विभागों को छोड़ अन्य सभी सरकारी विभागों 31 मार्च तक शटडाउन के निर्देश दिए. जिन विभागों में शटडाउन नहीं होगा उनके 50% कार्मिकों को घर से कार्य के लिए कहा गया है. ऐसे में स्कूलों से भी बच्चों की छुट्टियां कर दी गई है लेकिन टीचर्स स्कूल आने को मजबूर है.
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देश-विदेश के साथ पूरे प्रदेश में कोरोना वायरस का प्रकोप बरकरार है. यही वजह है कि राज्य में धारा 144 लागू है और शिक्षा की ओर से सभी स्कूलों में छुट्टियां घोषित कर दी गई है. इसके बावजूद टीचर्स स्टाफ को स्कूल में नियमित रूप से बुलाया जा रहा है और शिक्षा विभाग के आदेश अनुसार मजबूरन सभी शिक्षकों को विद्यालय में रोजाना सुबह 10 से शाम 4 बजे तक आना पड़ रहा है. अगर राज्य सरकार ने सभी कार्यालयों में सवैतनिक अवकाश की घोषणा करते हुए गाइडलाइन जारी की हुई है, तो फिर शिक्षकों को भी सुविधा से अछूता क्यों रखा गया है.
ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने जयपुर के गणपति नगर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में कोरोना इफेक्ट के तहत रियलिटी चेक किया, तो स्थिति बहुत ही भयावह नजर आई. जहां स्कूल के टीचर्स एक साथ समूह में बैठकर बातचीत करते हुए नजर आए. जैसे ही ईटीवी की टीम को देखा तो सभी ने बाद में मास्क लगाएं और कार्यालय से बाहर आकर बैठे. इस संबंध में प्रिंसिपल विनीता पाराशर से जब जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि पूरे प्रदेश में कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए केंद्र व राज्य सरकार द्वारा आवश्यक जरूरी कदम उठाए गए हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि स्कूल में बच्चे नहीं है और परीक्षा स्थगित हो गई है. साथ ही विद्यालय का कार्य एलडीसी, यूडीसी करते हैं तो फिर शिक्षकों का क्या काम है. ना कोई कॉपियां चेक करनी है ना ही कोई और काम है.
ऐसे में जब स्कूल में स्टूडेंट्स नहीं है और स्कूल स्टाफ को स्कूल में बुलाना मतलब कोरोना वायरस को बुलावा देने जैसा है. क्योंकि शिक्षक खाली बैठे ग्रुप में बैठकर बात कर रहे हैं और उल्टा दूसरों को कोरोना से बचने की हिदायत दे रहे हैं. जबकि टीचर्स की यदि ड्यूटी लगी भी है तो सावधानी भी जरूरी है. बजाएं इसके खाली बैठे ग्रुप में चर्चा करने के. ऐसे में शिक्षा महकमें को जरूरी है कि इस संबध में कोई ठोस एडवाजरी जारी करें.