जयपुर: राजस्थान में बाल विवाह का भी रजिस्ट्रेशन होगा, इसके लिए गहलोत सरकार ने विवाह का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन संशोधन बिल सदन में पारित कर दिया है. इस बिल के प्रावधान के तहत बाल विवाह होने की स्थिति में भी 30 दिन के भीतर विवाह पंजीकरण करा सकेंगे. गहलोत सरकार के इस बिल के सदन में पास होने के साथ ही इसकी आलोचना भी शुरू हो गई है. विपक्ष के साथ-साथ सामाजिक संगठनों ने भी इस बिल का विरोध किया है.
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वूमेन एंड चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट भग्यश्री सैनी ने इस बिल को लेकर ईटीवी भारत से खास बात करते हुए कहा कि प्रदेश में बाल विवाह को अमान्य घोषित करने की जगह सरकार कानूनी रूप से वैधानिक बनाने की कोशिश कर रही है. हालत ये है कि इस संशोधन बिल में अपराध का भी अब लीगल रजिस्ट्रेशन करने की छूट दी गई है. इस संशोधन बिल के बाद जो डर है वो खत्म हो जाएगा.
भाग्यश्री सैनी कहती हैं कि हमें सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि सरकार बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति को रोकना चाह रही है. बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में पारित किया गया, उसकी तीन महत्वपूर्ण बातें थी. जिसमें कहा गया था कि किसी भी लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम है और लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम है तो बाल विवाह की श्रेणी में आएगा. दूसरा अगर इसमें कोई भी बाल विवाह कराता है या इसमें लिप्त पाया जाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी. उसमें 2 साल कठोर कारावास और एक लाख रुपए का जुर्माने का प्रावधान है.
इससे साफ होता है कि बाल विवाह जो कुरीति है वह एक आपराधिक दंड है. हम किसी भी तरीके से उसे इंटरटेन नहीं कर सकते. लेकिन विधानसभा में जो संशोधन बिल लाया गया है उसमें कहा गया है कि कोई भी लड़का या लड़की जो नाबालिग है और जिनकी उम्र 21 और 18 से कम है उनके परिजन या संरक्षक विवाह के 30 दिन के भीतर विवाह का पंजीकरण करवा सकते हैं. यह अपने आप में एक विरोधाभासी है. जहां हम नाबालिग बच्चे और बच्ची को बालिका वधू के रूप में मानते हैं तो वहीं इस फॉर्मेट के तहत उन्हें वर-वधू के रूप में माना गया है. जो यह बताता है कि आखिर हम हमारी कानून में विरोधाभास कैसे पैदा कर सकते हैं. सोसाइटी में यह स्पष्ट होना चाहिए कि क्या हम बाल विवाह को विवाह मान रहे हैं जो एक सामाजिक कुरीति है. मुझे लगता है कि बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति है. हमारे यहां जो बाइलॉज बनाए जाते हैं उसका यह मतलब होता है कि जो कुरीतियां और अपराध है, उन्हें खत्म करना और लोगों के मन में अपराध के खिलाफ डर बिठाना.
संशोधन बिल बाल विवाह करने वालों को संरक्षण देगा
भाग्यश्री बताती है कि कानून में ऐसा प्रावधान है जो दूसरे वनरेबल पक्ष को प्रोटेक्ट करता है. वहीं, इस बिल में यह बताया जा रहा है कि अगर आप बाल विवाह करते हुए पकड़े जाते हो तो वो अपराध माना जाएगा, लेकिन अगर आप ने चुपके से बाल विवाह करवा दिया है तो हम इसे फिर कानूनी रूप से वैधानिक दर्जा दे देंगे. जबकि नियम और कानून ऐसे हैं जिनके तहत अगर कोई भी बालविवाह करता है या करवाता है तो उसको 2 साल के कठोर कारावास की सजा का प्रावधान है. ऐसे अपराध में कारावास या एक लाख का जुर्माना या दोनों ही सजा मिल सकती है. वहीं, नव पारित कानून में यह समझ से परे है कि हम बाल विवाह कराने वालों को डराना चाह रहे हैं या उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं.जो इसका मतलब यह हुआ कि कोई भी बाल विवाह कर लेता है तो उससे डरने की जरूरत नहीं है , क्योंकि उसे कानूनी रूप से विवाह का सर्टिफिकेट मिल जाएगा.
कर्नाटक एक मात्र राज्य जहां बाल विवाह अमान्य है
बाल विवाह को लेकर जो 2006 में कानून बना है , उसमें यह स्पष्ट लिखा है कि बाल विवाह को कोई भी शून्य करवा सकता है , अगर किसी भी लड़की या लड़के की नाबालिक शादी हो गई तो बालिक होने की 2 साल के भीतर अपने विवाह को शून्य करवा सकता है , लेकिन देश में कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य जहां पर बाल विवाह को अमान्य माना गया है . वहां पर कोई भी बालविवाह होता है तो उसे मान्यता नहीं दी जाती है . जबकि हमारे राजस्थान में बाल विवाह को अमान्य नहीं माना गया है. जब तक की वर या वधू की तरफ से इसको लेकर आपत्ति दर्ज नहीं कराई जाती . 2017 में कर्नाटक ने बाल विवाह को पूरी तरीके से अमान्य घोषित किया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी एप्रिसेट करते हुए इसे बेहतर कदम बताया था . भाग्यश्री कहती है कि बाल विवाह सामाजिक बौद्धिक स्तर के ग्रोथ को पूरी तरीके से रोक देता है . हमें एक स्टेप आगे बढ़ना चाहिए, लेकिन हम आगे बढ़ने की बजाय हम एक स्टेप पीछे जा रहे हैं . इस तरह से संशोधन बिल पास करने के बाद में यह अपने आप में सवाल खड़ा कर देता है कि हम इस सामाजिक कुरीति को खत्म करना चाह रहे हैं या इसको बढ़ावा देना चाह रहे हैं . क्योंकि इस तरीके से तो सरकार की मंशा ऐसी लगती है मानो इस बाल विवाह जैसी कुरीति को बढ़ावा देना चाहिए .
बाल विवाह के कारण
भाग्यश्री कहती है कि देखिए अगर बाल विवाह के कई अलग-अलग कारण है , चाहे व्यक्तिगत हो सकते हैं , पारिवारिक हो सकते हैं , लेकिन इसमें अगर सरकार के पक्ष को देखें तो जब तक सरकार के पास पॉलिटिकल विल नहीं होगा . तब तक कर्नाटक की तरह कानून नहीं ला सकती , क्योंकि कहीं ना कहीं सरकार इस तरह कठोर कानून दबाव में नहीं बना पा रही है . कर्नाटका में जिस तरीके से सरकार ने विल पावर थी , इसलिए वह 2017 में बाल विवाह के खिलाफ सख्त कानून लेकर आए और पूरी तरह अमान्य ही घोषत कर दिया , मतलब किसी ने चोरी छिपे भी बाल विवाह कर लिया तो भी वो मान्य नही होगा , राजस्थान में सरकार इसी तरह के सख्त कदम उठाने की जरूरत है , वह उठा नहीं रही है , जबकि इस तरीके से जो पूर्व में कानून बना है उसे भी कमजोर करने की कोशिश की जा रही है . इस संशोधन बिल के बाद में जो अब तक प्रयास किए गए थे , उन प्रयासों पर डेंट लगा है .
अपराध का रजिट्रेशन नही हो सकता
भाग्यश्री कहती है कि कुरीति को लेकर दो ही चीज हो सकती है या तो आप उस को बढ़ावा देना चाह रहे हैं या फिर उसको खत्म करने के लिए कठोर दंड देना चाहिए. क्योंकि जिस तरीके से आज जो संशोधन बिल लाया गया है , उस बिल में वर वधु लिखा गया है , जिन्होंने बाल विवाह किया है वह नाबालिक है तो उन्हें बालिका वधू के रूप में लिखा जाना चाहिए था . ऐसे में जनमानस तक यह कहीं ना कहीं कहीं यही संदेश आप उपलब्ध करा रहे हो कि हमें इस बाल विवाह से डरना नहीं चाहिए . आप चुपके से विवाह कर लीजिए उसके बाद में आपका कोई कुछ नहीं कर सकता , क्योंकि कानूनी रूप से तो मान्यता मिल ही जाएगी .
संशोधन बिल पर ओपन चर्चा होती
भाग्यश्री ने कहा कि बिल लाने से पहले पब्लिक ऑपिनियन आवश्यक है. समाज की कुरीति से जुड़े विषय पर जब भी सरकार कोई बिल लेकर आती है तो उससे पहले जनता की ओपिनियन भी जाना चाहिए. क्योंकि जनता अपना जनप्रतिनिधि को चुनती है ऐसे में दायित्व बनता है कि सरकार कोई भी बड़ा डिसीजन करती है तो उसके लिए जनता से इसको लेकर चर्चा करनी चाहिए . खासतौर से ऐसे बिल में जो कि समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित करता है . इसको लेकर समाज के लोगों से चर्चा करनी चाहिए थी . जनता की और जनमानस की राय इस मामले में बहुत ज्यादा आवश्यक है , क्योंकि समय की डिमांड भी है .