जयपुर. राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनावों में बागी प्रत्याशी बड़ा रोल अदा कर सकते है. गुरुवार को नामांकन के दिन अपना पर्चा दाखिल कर दोनो संगठनों से बागी हुए प्रत्याशियों ने चुनावी मैदान में ताल ठोक दी. छात्रनेताओं की इस बगावत से संगठनों में चिंता हैं लेकिन उम्मीद जता रहे हैं कि इन्हें मनाने में भी कामयाब होंगे.
राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव में दोनो प्रमुख छात्र संगठनों के लिए एक बार फिर बागी प्रत्याशियों ने तनाव बढा दिया है. छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर अपने ही बागियों से लगातार तीन साल से शिकस्त मिलने के बाद एबीवीपी और एनएसयूआई से दावेदार रहे प्रत्याशियों में बगावती तेवर कुछ कम नहीं हुए. एबीवीपी से नीतिन शर्मा ने अध्यक्ष पद पर नामांकन दाखिल कर दिया है, तो वहीं महासचिव पद पर संजय चेची ने संगठन के सामने अपनी चुनौती पेश की है. एबीवीपी ने अध्यक्ष पद पर अमित बडबडवाल को तो वहीं महासचिव पर अरूण शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है. प्रत्याशियों ने अपना टिकट काटे जाने पर ना सिर्फ नाराजगी जताई बल्की चुनाव में अपना नामांकन पर्चा दाखिल कर अब दो-दो हाथ करने का एलान भी कर दिया.
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बगावत एनएसयूआई में कही ज्यादा दिख रही है. यहां अध्यक्ष पद की दौड़ में रहे प्रत्याशी अब निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए है. एनएसयूआई की ओर से पूजा वर्मा, मुकेश चौधरी, अशोक फागणा अध्यक्ष पद पर निर्दलीय मैदान में उतर चुके हैं साथ ही संगठन के अनुभवी छात्रनेताओं को साथ लेकर बागी प्रत्याशी अपना दम-खम दिखाने की पूरी तैयारी में हैं. नामांकन के फौरन बाद ही निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनावी प्रचार में जुट जाने के दावे किए हैं लेकिन इससे पहले अपने संगठन पर टिकटों की खरीद फरोख्त करने और मध्यम वर्ग के आम विद्यार्थी को टिकट नहीं देने जैसे आरोप भी लगाए हैं.
एबीवीपी से ये हुए बागी
एबीवीपी से 4 प्रत्याशी बागी हुए है. अध्यक्ष पद पर नीतिन शर्मा ने बगावत की है. महासचिव पद पर संजय चेची, जितेंद्र सिंह और नरेंद्र ने भी बगावत की है. बागी चुनाव मैदान में डटे तो समीकरण बिगडेंगे.
एनएसयूआई से ये हुए बगावत
NSUI से बागी हुए तीन प्रत्याशी मैदान में है. अध्यक्ष पद पर दी चुनौती अशोक फागणा, मुकेश चौधरी पूजा वर्मा ने संगठन को चुनौती दी है, वहीं संगठन ने मान मनोव्वल करने का दावा किया है.
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वहीं, इधर दोनो ही संगठनों के पदाधिकारी अपने बागी हुए प्रत्याशियों से कोई नुकसान नहीं मानते हैं. साथ ही बागियों के फिर से संगठन में आने से आश्वस्त भी नजर आ रहे हैं. एनएसयूआई और एबीपीपी की कमान संभाल रहे पदाधिकारियों का दावा है कि सुबह के भुले शाम को घर लौट आएंगे.
एक ओर दोनो संगठनों जीत-हार के समीकरणों में उलझे है. वहीं इधर, अपनी जीत के दावे कर रहे बागी प्रत्याशियों ने चुनावी मैदान में ताल ठोंक कर संगठनों को मुश्किल में डाल दिया है. अब संगठन इन बागी प्रत्याशियों की मान मनौव्व्ल में भी पूरी तरह जुटे है. आने वाले समय में मैदान में कौन टिका रहेगा या फिर संगठन में अपनी वापसी करेगा. अभी तो कुछ कहा नहीं जा सकता हैं, लेकिन बडा सवाल ये है कि क्या जीत की तिकडी बना चुके बागी क्या इस बार चुनावी मैदान में चौका लगा पाएंगे.