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सौम्या गुर्जर की याचिका पर फैसला सुरक्षित, पक्षकार बनने आए व्यक्ति पर 50 हजार हर्जाना

जयपुर ग्रेटर नगर निगम के ग्रेटर ड्रामे पर राजस्थान हाई कोर्ट ने सौम्या गुर्जर की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में पक्षकार बनने के लिए प्रर्थना पत्र पेश करने वाले मोहनलाल नामा पर 50 हजार रुपए का हर्जाना भी लगा दिया है.

Rajasthan High Court News, सौम्या गुर्जर निलंबन
सौम्या गुर्जर की याचिका पर फैसला सुरक्षित
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Published : Jun 14, 2021, 8:26 PM IST

Updated : Jun 14, 2021, 8:36 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने ग्रेटर नगर निगम की महापौर सौम्या गुर्जर के निलंबन के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. अदालत ने मामले में पक्षकार बनने के लिए प्रार्थना पत्र पेश करने वाले मोहनलाल नामा पर 50 हजार रुपए का हर्जाना लगा दिया है. अदालत ने कहा कि नामा ने पब्लिसिटी स्टंट और सुनवाई में देरी करने के उद्देश्य से प्रार्थना पत्र पेश किया है. न्यायाधीश पंकज भंडारी और न्यायाधीश सीके सोनगरा की खंडपीठ ने यह आदेश सौम्या गुर्जर की याचिका पर दिए.

राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने सोमवार को अपनी बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के तहत दुर्व्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि को हटाया जा सकता है. दुर्व्यवहार को किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता है. ऐसे में याचिकाकर्ता का निलंबन संविधान के अनुकूल है. इसके अलावा निगम का कार्य आवश्यक सेवा में आता है, इसलिए नोटिस का जवाब देने के लिए रविवार को याचिकाकर्ता को बुलाना विधि सम्मत था. इसके साथ ही अगर सफाई करने वाली कंपनी को भुगतान नहीं किया जाता तो अदालती अवमानना होती.

सौम्या गुर्जर की याचिका पर फैसला सुरक्षित

महाधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती देने की आड़ में अपने निलंबन के खिलाफ याचिका दायर की है. ऐसे में प्रकरण की सुनवाई एकलपीठ को करनी चाहिए. इसके साथ ही जांच अधिकारी की प्रारंभिक जांच के खिलाफ ज्यूडिशियल रिव्यू नहीं किया जा सकता. इसका विरोध करते हुए सौम्या गुर्जर की ओर से कहा गया कि अगर प्रारंभिक जांच में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी होती है तो ज्यूडिशियल रिव्यू किया जा सकता है. धारा 39 के परन्तुक में प्रावधान है कि जांच से पहले जनप्रतिनिधि से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा. इसके अलावा याचिकाकर्ता के पास कंपनी के 8 करोड़ की फाइल ही आई थी. याचिकाकर्ता की पेनल्टी की गणना कर भुगतान की बात कहने पर आयुक्त ने 50 फीसदी भुगतान करने को कहा.

यह भी पढ़ेंः घर की बगावत पर सरकार समर्थक विधायकों का दावा, बागियों से पहले हमारी वफ़ा का मिले इनाम

याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि अगर निलंबन को छोड़कर सिर्फ धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती दी जाती तो बिना ठोस कारण के हाईकोर्ट उस पर सुनवाई ही नहीं करता. सफाई कंपनी के हड़ताल करने पर आयुक्त ने कार्रवाई के बजाए उसे भुगतान करने के लिए कह दिया. कंपनी को हाईकोर्ट ने 8 सप्ताह के लिए काम करने की छूट दी थी ना कि हड़ताल करने या सरकार को भुगतान करने के निर्देश दिए थे. सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है.

बता दें, निगम आयुक्त ने अपने साथ दुर्व्यवहार और मारपीट को लेकर राज्य सरकार को शिकायत भेजने के साथ ही FIR दर्ज कराई थी, जिस पर राज्य सरकार ने आरएएस अधिकारी को जांच अधिकारी बनाकर उनकी रिपोर्ट के आधार पर मेयर सौम्या गुर्जर और कुछ पार्षदों को निलंबित कर दिया था. इसी के खिलाफ सौम्या गुर्जर ने खंडपीठ में याचिका दायर की हैं.

'कुर्सी सबको प्यारी, क्या 6 महीने टाल दें सुनवाई'

सुनवाई के दौरान कार्यवाहक महापौर शील धाभाई की ओर से अधिवक्ता एससी गुप्ता ने अदालत को कहा कि कोर्ट को मामले में स्टे देना चाहिए या याचिका को निस्तारण के लिए जुलाई महीने में सूचीबद्ध करना चाहिए. इस पर अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कुर्सी सबको प्यारी होती है, क्या मामले की सुनवाई 6 महीने के लिए टाल दें. इसके बाद अधिवक्ता गुप्ता सुनवाई से बाहर हो गए.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने ग्रेटर नगर निगम की महापौर सौम्या गुर्जर के निलंबन के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. अदालत ने मामले में पक्षकार बनने के लिए प्रार्थना पत्र पेश करने वाले मोहनलाल नामा पर 50 हजार रुपए का हर्जाना लगा दिया है. अदालत ने कहा कि नामा ने पब्लिसिटी स्टंट और सुनवाई में देरी करने के उद्देश्य से प्रार्थना पत्र पेश किया है. न्यायाधीश पंकज भंडारी और न्यायाधीश सीके सोनगरा की खंडपीठ ने यह आदेश सौम्या गुर्जर की याचिका पर दिए.

राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने सोमवार को अपनी बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 के तहत दुर्व्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि को हटाया जा सकता है. दुर्व्यवहार को किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता है. ऐसे में याचिकाकर्ता का निलंबन संविधान के अनुकूल है. इसके अलावा निगम का कार्य आवश्यक सेवा में आता है, इसलिए नोटिस का जवाब देने के लिए रविवार को याचिकाकर्ता को बुलाना विधि सम्मत था. इसके साथ ही अगर सफाई करने वाली कंपनी को भुगतान नहीं किया जाता तो अदालती अवमानना होती.

सौम्या गुर्जर की याचिका पर फैसला सुरक्षित

महाधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती देने की आड़ में अपने निलंबन के खिलाफ याचिका दायर की है. ऐसे में प्रकरण की सुनवाई एकलपीठ को करनी चाहिए. इसके साथ ही जांच अधिकारी की प्रारंभिक जांच के खिलाफ ज्यूडिशियल रिव्यू नहीं किया जा सकता. इसका विरोध करते हुए सौम्या गुर्जर की ओर से कहा गया कि अगर प्रारंभिक जांच में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी होती है तो ज्यूडिशियल रिव्यू किया जा सकता है. धारा 39 के परन्तुक में प्रावधान है कि जांच से पहले जनप्रतिनिधि से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा. इसके अलावा याचिकाकर्ता के पास कंपनी के 8 करोड़ की फाइल ही आई थी. याचिकाकर्ता की पेनल्टी की गणना कर भुगतान की बात कहने पर आयुक्त ने 50 फीसदी भुगतान करने को कहा.

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याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि अगर निलंबन को छोड़कर सिर्फ धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती दी जाती तो बिना ठोस कारण के हाईकोर्ट उस पर सुनवाई ही नहीं करता. सफाई कंपनी के हड़ताल करने पर आयुक्त ने कार्रवाई के बजाए उसे भुगतान करने के लिए कह दिया. कंपनी को हाईकोर्ट ने 8 सप्ताह के लिए काम करने की छूट दी थी ना कि हड़ताल करने या सरकार को भुगतान करने के निर्देश दिए थे. सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है.

बता दें, निगम आयुक्त ने अपने साथ दुर्व्यवहार और मारपीट को लेकर राज्य सरकार को शिकायत भेजने के साथ ही FIR दर्ज कराई थी, जिस पर राज्य सरकार ने आरएएस अधिकारी को जांच अधिकारी बनाकर उनकी रिपोर्ट के आधार पर मेयर सौम्या गुर्जर और कुछ पार्षदों को निलंबित कर दिया था. इसी के खिलाफ सौम्या गुर्जर ने खंडपीठ में याचिका दायर की हैं.

'कुर्सी सबको प्यारी, क्या 6 महीने टाल दें सुनवाई'

सुनवाई के दौरान कार्यवाहक महापौर शील धाभाई की ओर से अधिवक्ता एससी गुप्ता ने अदालत को कहा कि कोर्ट को मामले में स्टे देना चाहिए या याचिका को निस्तारण के लिए जुलाई महीने में सूचीबद्ध करना चाहिए. इस पर अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कुर्सी सबको प्यारी होती है, क्या मामले की सुनवाई 6 महीने के लिए टाल दें. इसके बाद अधिवक्ता गुप्ता सुनवाई से बाहर हो गए.

Last Updated : Jun 14, 2021, 8:36 PM IST
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