जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता के नाम दर्शाते हुए दायर याचिका को स्वीकार नहीं किया जाएगा. इसके साथ ही अदालत ने रजिस्ट्रार न्यायिक को निर्देश दिए हैं कि वह इस संबंध में स्टांप रिपोर्टर्स और रजिस्ट्री को पालना सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करें. न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा ने यह आदेश दुष्कर्म पीड़िता के परिजनों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
इसके साथ ही अदालत ने इस याचिका में पीड़िता का नाम हटाने के भी आदेश दिए हैं. दूसरी ओर अदालत ने मामले में अजमेर के जेएलएन मेडिकल कॉलेज के स्त्री रोग विभाग की विभागाध्यक्ष से रिपोर्ट मांगी है कि पीड़िता का स्तर पर गर्भपात हो सकता है या नहीं? इसके लिए अदालत ने पीड़िता को मेडिकल कॉलेज के स्त्री रोग विभाग में उपस्थित होने को कहा है.
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मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने 22 मई, 2018 को इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे. इसके तहत एससी/एसटी के मामलों के अलावा अन्य मामलों में आरोपी की जाति का उल्लेख नहीं करने के निर्देश दिए गए थे. अदालत ने कहा कि आदेश के तहत पीड़िता का नाम भी सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए.
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याचिका में कहा गया कि दुष्कर्म के चलते पीड़िता गर्भवती हो गई है. उसके 22 सप्ताह का गर्भ पल रहा है. ऐसे में उसे गर्भपात की अनुमति दी जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित चिकित्सक से रिपोर्ट तलब करते हुए दुष्कर्म पीड़िताओं के नाम दर्शाते हुए दायर याचिका को स्वीकार नहीं करने को कहा है.