जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने शहर में सफाई व्यवस्था को लेकर ग्रेटर और हेरिटेज (High Court hearing on the cleanliness system) नगर निगम के आयुक्तों को बुधवार को पेश होने के आदेश दिए हैं. अदालत ने दोनों अधिकारियों से पूछा है कि शहर में पुख्ता सफाई व्यवस्था के लिए क्या किया जा रहा है. जस्टिस प्रकाश गुप्ता और जस्टिस अनूप ढंड की खंडपीठ ने यह आदेश प्रकरण में लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए.
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि शहर में सफाई की अच्छी व्यवस्था है. शहर के कचरा डिपो हटाने का निर्णय लिया गया है और अब तीन हजार के बजाए करीब दो सो कचरा डिपो ही रह गए हैं. वहीं न्यायमित्र विमल चौधरी ने कहा कि मामले में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई है. कमेटी आदेश दे देती है, लेकिन उनकी पालना नहीं की जाती. शहर की सफाई व्यवस्था सिर्फ कागजों में ही चल रही है.
सुनवाई के दौरान अदालत ने न्यायमित्र से पूछा कि इंदौर में सफाई का पुख्ता इंतजाम किस तरह किया जाता है. इस पर न्यायमित्र ने कहा कि वहां सफाई पर सालाना सिर्फ 300 करोड़ रुपए ही खर्च होता है. जबकि शहर में 1700 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन फिर भी यहां सफाई व्यवस्था चरमराई हुई है. न्यायमित्र ने आरोप लगाया कि इंदौर में ईमानदारी से काम होता है और यहां भ्रष्टाचार व्याप्त है. शहर में आठ हजार दौ सौ सफाई कर्मचारी बताए जा रहे हैं, लेकिन धरातल पर कितने सफाई कर्मचारी काम कर रहे हैं.
कई सफाई कर्मचारी कार्यालयों में दूसरे काम कर रहे हैं. ऐसे में कमेटी का अध्यक्ष होने के नाते मुख्य सचिव को बुलाना चाहिए. इस पर अदालत ने ग्रेटर और हेरिटेज नगर निगमों के आयुक्तों को 21 सितंबर को पेश होने के आदेश दिए हैं. बता दें कि हाइकोर्ट ने शहर की सफाई व्यवस्था को लेकर वर्ष 2012 में राज्य सरकार और नगर निगम को 16 बिन्दुओं पर दिशा निर्देश दिए थे.