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Rajasthan High Court: पूर्व एडीजी इंदु भूषण की अनिवार्य सेवानिवृत्ति सही, हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका

राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व एडीजी कुमार इंदु भूषण को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने (Rajasthan High Court dismissed the petition) को सही मानते हुए इस संबंध में दायर याचिका को खारिज कर दिया है.

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Published : Apr 28, 2022, 11:56 PM IST

Rajasthan High Court dismissed the petition,  compulsory retirement of former ADG Indu Bhushan
राजस्थान हाईकोर्ट.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व एडीजी कुमार इंदु भूषण को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने को सही मानते हुए इस संबंध में (Rajasthan High Court dismissed the petition) दायर याचिका को खारिज कर केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण के आदेश को भी बहाल रखा है. जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस अनूप ढंड ने यह आदेश इंदु भूषण की याचिका को खारिज करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सक्षम अफसरों ने नियमों के अनुसार ही रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी थी. मामले के रिकॉर्ड से भी साबित है कि उसका व्यवहार अच्छा नहीं रहा और न ही सेवाकाल में उसकी परफॉर्मेंस सही रही है. इसलिए यह नहीं कह सकते कि उसे अनिवार्य सेवानिवृत्त करने का फैसला लापरवाही से लिया है. इंदु भूषण ने याचिका में केट के उसकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति को चुनौती देने वाले प्रार्थना पत्र को खारिज करने को चुनौती दी थी. याचिका में कहा कि 29 मार्च 2018 को उसे अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया गया.

वहीं इसके खिलाफ दायर अपील को अधिकरण ने सात अगस्त 2020 को खारिज कर दिया. याचिका में कहा गया कि वह वर्ष 1989 बैच का अधिकारी था और उसे समय-समय पर पदोन्नत कर एडीजी बनाया गया था. अनिवार्य सेवानिवृत्त करने के लिए जारी डीओपीटी की गाइड लाइन भी उसके मामले में अमल में नहीं लाई गई. ऐसे में उसे अनिवार्य सेवानिवृत्त (compulsory retirement of former ADG Indu Bhushan ) करने और अधिकरण के आदेश को रद्द कर उसे समस्त परिलाभ सहित बहाल किया जाए. जिसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को नियमानुसार तय प्रक्रिया के तहत ही अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई थी.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व एडीजी कुमार इंदु भूषण को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने को सही मानते हुए इस संबंध में (Rajasthan High Court dismissed the petition) दायर याचिका को खारिज कर केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण के आदेश को भी बहाल रखा है. जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस अनूप ढंड ने यह आदेश इंदु भूषण की याचिका को खारिज करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सक्षम अफसरों ने नियमों के अनुसार ही रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी थी. मामले के रिकॉर्ड से भी साबित है कि उसका व्यवहार अच्छा नहीं रहा और न ही सेवाकाल में उसकी परफॉर्मेंस सही रही है. इसलिए यह नहीं कह सकते कि उसे अनिवार्य सेवानिवृत्त करने का फैसला लापरवाही से लिया है. इंदु भूषण ने याचिका में केट के उसकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति को चुनौती देने वाले प्रार्थना पत्र को खारिज करने को चुनौती दी थी. याचिका में कहा कि 29 मार्च 2018 को उसे अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया गया.

वहीं इसके खिलाफ दायर अपील को अधिकरण ने सात अगस्त 2020 को खारिज कर दिया. याचिका में कहा गया कि वह वर्ष 1989 बैच का अधिकारी था और उसे समय-समय पर पदोन्नत कर एडीजी बनाया गया था. अनिवार्य सेवानिवृत्त करने के लिए जारी डीओपीटी की गाइड लाइन भी उसके मामले में अमल में नहीं लाई गई. ऐसे में उसे अनिवार्य सेवानिवृत्त (compulsory retirement of former ADG Indu Bhushan ) करने और अधिकरण के आदेश को रद्द कर उसे समस्त परिलाभ सहित बहाल किया जाए. जिसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को नियमानुसार तय प्रक्रिया के तहत ही अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई थी.

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