जयपुर. राजस्थान हाइकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री को बंगला देने से जुड़ी अवमानना याचिका को खारिज (Contempt petition related to giving bungalow) कर दिया. इसके साथ ही पक्षकार बनाए गए अफसरों को भी अवमानना से मुक्त कर दिया है. जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस अनूप ढंड की खंडपीठ ने ये आदेश मिलापचन्द डांडिया की अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान ये फैसला दिया. अदालत ने कहा की मामले में 'विल फुल कंटेम्प्ट' नहीं हुआ है.
अवमानना याचिका में अधिवक्ता विमल चौधरी ने कहा कि हाईकोर्ट ने 4 सितंबर, 2019 को आदेश जारी कर राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन अधिनियम, 2017 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था, जिसके तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सुविधाएं देने का प्रावधान (Former Chief Minister bungalow Case in Rajasthan) किया गया था. इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी को खारिज कर दिया था.
प्रतिदिन दस हजार रुपए का देना होता है हर्जाना: अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया ने सुविधाएं लौटाकर बंगला खाली कर दिया था. वहीं पूर्व सीएम राजे ने सिर्फ सुविधाएं लौटाई थी. याचिकाकर्ता ने ये भी बताया कि राज्य सरकार ने 18 अगस्त, 2020 को वरिष्ठ विधायकों को आवास आवंटित करने के लिए कैटेगरी तय की थी. जिसके तहत पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को आवास देने की बात कही जा रही थी, लेकिन वे पहले से वहां रह रही हैं. वहीं राज्य सरकार ने 2 अगस्त 2019 को प्रावधान किया था की तय अवधि में आवास खाली नहीं करने पर संबंधित मंत्री को प्रतिदिन दस हजार रुपए का हर्जाना देना होगा.
वरिष्ठ विधायक के नाते राजे को मिला है आवास: ऐसे में सवाल उठाया जा रहा है कि अदालती आदेश 4 सितंबर 2019 से 17 अगस्त 2020 तक की अवधि में बंगले का उपयोग करने पर पूर्व सीएम राजे से हर्जाना क्यों नहीं वसूल किया गया. वहीं राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि राजे को वरिष्ठ विधायक के नाते आवास दिया गया है. इसमें अदालती आदेश की अवमानना नहीं हुई है, जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने अवमानना याचिका को खारिज कर दिया है.