जयपुर. राजस्थान की बेटियां किसी तरह से पीछे नहीं रहेंगी, क्योंकि प्रदेश की गहलोत सरकार (Rajasthan Government integrated scheme for girls) बच्ची के जन्म से लेकर शिक्षा दिलाने तक की जिम्मेदारी सरकार लेगी. सरकार की ओर से इसको लेकर तीन महकमों की स्कीमों का इंटीग्रेटेड सिस्टम तैयार किया जा रहा है. इस सिस्टम के बाद बच्चियों की स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ सभी मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा किया जाएगा.
आज भी बेटियों को बोझ समझा जाता है : कई जगहों पर आज भी बेटियों को लेकर सोच नहीं बदली है. आज भी उन्हें बोझ समझा जाता है. बच्चियों की परवरिश को लेकर माता-पिता भी ज्यादा ध्यान नहीं देते. लड़कियों की शिक्षा पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में आंकड़े देखें तो 33 फीसदी लड़कियां आज भी दसवीं क्लास से आगे नहीं पढ़ पाती हैं. इतना ही नहीं, लिंगानुपात पर नजर डालें तो आज भी 1000 लड़कों पर 928 लड़कियां हैं.
सरकार उठाएगी बच्चियों की जिम्मेदारी : इसी को देखते हुए राजस्थान सरकार ने बच्ची के जन्म से लेकर उसकी शिक्षा की जिम्मेदारी उठाने का फैसला लिया है. इसके लिए सरकार एक इंटीग्रेटेड सिस्टम तैयार कर रही है, ताकि बच्ची को सभी सरकारी योजनाओं का स्वतः ही लाभ मिल सके. इस सिस्टम के बाद योजनाओं का लाभ लेने के लिए विभागों में बार-बार आवेदन नहीं करना पड़ेगा. वहीं, इसकी नियमित मॉनिटरिंग भी की जाएगी.
क्या है इंटीग्रेटेड प्लान : बच्चियों के जन्म लेते ही उन्हें चिकित्सा विभाग की योजनाओं का लाभ स्वतः ही मिलेगा. उसकी सभी टीकाकरण की जिम्मेदारी भी चिकित्सा विभाग की होगी. जैसे ही बच्ची की उम्र बढ़ेगी तो महिला एवं बाल विकास विभाग को योजनाओं का लाभ भी मिलने लगेगा. वहीं, बालिकाओं को स्कूल में दाखिल कराने के लिए शिक्षा विभाग जिम्मेदारी संभालेगा.
तीन अधिकारियों को जिम्मा : इंटीग्रेटेड सिस्टम की मॉनिटरिंग के लिए मुख्य सचिव ने तीन आईएएस अधिकारियों को जिम्मा सौंपा है. इसमें आईएएस डॉ. समित शर्मा, नवीन जैन और ओ.पी. बैरवा शामिल हैं. इस सिस्टम की क्रियान्विति को लेकर पूरा प्लान तैयार किया जा रहा है. प्लान फाइनल होने से पहले, मुख्यमंत्री के समक्ष भी रखा जाएगा.
बच्ची के जन्म के बाद माता-पिता को समय का पता नहीं होने के कारण टीकाकरण पूरा नहीं हो पाता. पोषाहार जैसी योजनाओं के लिए आंगनबाड़ी केंद्र, स्कूल में भर्ती कराने और शिक्षा के दौरान अन्य योजनाओं का लाभ लेने के लिए हर बार अलग-अलग विभागों में माता-पिता को आवेदन करना होता है. इसके चक्कर में बच्ची कई बार वंचित भी रह जाती है.