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Power Crisis in Rajasthan : सौर ऊर्जा में सिरमौर फिर भी बिजली संकट, राजस्थान में बन रही बिजली लेकिन दूसरे प्रदेशों को फायदा...

सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में देश में सबसे अव्वल राजस्थान के उपभोक्ताओं को भी बिजली संकट से सामना करना पड़ रहा है. सवाल उठता है कि जब देश का सबसे ज्यादा उत्पादन यहां हो रहा है, तो बिजली संकट की नौबत क्यों आई? इसका जवाब है यहां उत्पादित होने वाली कुल 17040 मेगावाट अक्षय ऊर्जा में से राज्य को 7500 मेगावाट ही मिल पाता (Rajasthan getting less share from total renewable energy production) है. ऐसा होने की क्या हैं वजहें. पढ़िए इस विस्तृत रिपोर्ट में...

Power crisis in Rajasthan
सौर ऊर्जा में सिरमौर फिर भी बिजली संकट, राजस्थान में बन रही बिजली लेकिन दूसरे प्रदेशों को फायदा..
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Published : May 5, 2022, 7:11 PM IST

जयपुर. देशभर में अक्षय ऊर्जा के लिहाज से राजस्थान सिरमौर है, फिर भी यहां के बिजली संकट से आम उपभोक्ताओं को रू-ब-रू होना पड़ रहा है. आम उपभोक्ताओं के मन में बार-बार यही सवाल उठता है कि जब प्रकृति ने ऊर्जा के क्षेत्र में राजस्थान को पूरा आशीर्वाद दिया है, तो फिर क्या कारण है जो बाहर से महंगी बिजली खरीदना और बार-बार पावर कट लगाना डिस्कॉम और ऊर्जा विभाग की मजबूरी बन गया (Reason of power crisis in Rajasthan) है.

दरअसल, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में 12163 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित कर राजस्थान देश में पहला राज्य बन गया. इसके अलावा राजस्थान ने विंड एनर्जी में 4338 मेगावाट और बायोगैस एनर्जी में 120 मेगावाट की क्षमता स्थापित कर ली है. आसान शब्दों में कहें तो राजस्थान में 17040 मेगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादित होती है, लेकिन इसका पूरा फायदा प्रदेश को नहीं मिल रहा. जिसके चलते आज भी राजस्थान में 1 से लेकर 8 घंटे तक का पावर कट अलग-अलग क्षेत्रों में चल रहा है.

पढ़ें: Rajasthan Tops In Renewable Energy : अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में राजस्थान देश में पहले स्थान पर, 1 माह पहले था चौथे स्थान पर...

उत्पादन 17040 लेकिन राज्य को मिल रहा 7500 मेगावाट : राजस्थान में अक्षय ऊर्जा के रूप में कुल उत्पादन क्षमता 17040 मेगावाट है, लेकिन वर्तमान में राजस्थान को मतलब डिस्कॉम को करीब 7500 मेगावाट ही अक्षय ऊर्जा के जरिए मिल पा रही है. इनमें भी 3734 पवन ऊर्जा की क्षमता है, लेकिन पूरी क्षमता से यह बिजली नहीं मिल पाती. आलम यह रहा कि राजस्थान को बुधवार को तो दिन भर में महज 300 मेगावाट ही विंड एनर्जी मिल पाई थी. इसी तरह 3003 सौर ऊर्जा प्लांट के जरिए और करीब 700 मेगावाट रूफटॉप सोलर चैनल के जरिए डिस्कॉम को मिलती है, लेकिन जितनी क्षमता है उसके अनुरूप पूरी बिजली कभी-कभार ही मिल पाती है.

पढ़ें: 65 करोड़ के कर पूर्व लाभ के साथ राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम ने रचा नया इतिहास: डॉ. अग्रवाल

राजस्थान में बनने वाली अक्षय ऊर्जा जा रही अन्य राज्यों में: अक्षय ऊर्जा की क्षमता 17040 मेगावाट है, लेकिन राजस्थान को इसमें बेहद कम और अन्य राज्यों को ज्यादा बिजली मिलती (Why Rajasthan gets less share of energy production) है. इसके पीछे बड़ा कारण है, राजस्थान में लगाए गए अधिकतर प्लांट निजी निवेशकर्ताओं या फिर संयुक्त रूप से लगाए गए प्लांट हैं. सरकार की ऊर्जा नीति भी ऐसी रही कि जब यह प्लांट राजस्थान की धरती पर लगाए गए, तब इसमें उत्पन्न होने वाली बिजली का एक बड़ा हिस्सा राजस्थान में दिए जाने के बजाए शुल्क लेना ही उचित समझा गया. जिसके चलते यहां बिजली संकट के बाद भी राजस्थान में उत्पन्न होने वाली अक्षय ऊर्जा बाहरी राज्यों को मिल जाती है. डिस्कॉम को एक्सचेंज के जरिए महंगे दामों पर बिजली खरीदनी पड़ रही है.

पढ़ें: राजस्थान में बिजली संकट के बीच राहत, सुधरने लगे हालात...

1 मेगावाट का सालाना 2 लाख वसूला जाता है शुल्क: राजस्थान में सौर, पवन और बायोमास विद्युत उत्पादन के जो प्लांट लगाए गए हैं, उनके लिए सरकार के साथ जो समझौता हुआ उनकी शर्तें ही ऐसी रखी गईं जिसके चलते राज्य को इन प्लांटों से मिलने वाली बिजली का हिस्सा सस्ते दाम पर नहीं मिलता. राज्य में स्थापित निजी निवेशकर्ताओं के प्लांट से सरकार प्रतिवर्ष 1 मेगावाट की एवज में 2 लाख का शुल्क वसूलती है. साल 2026 में यह शुल्क प्रति मेगावाट 5 लाख रुपए हो जाएगा. मतलब सरकार की अक्षय ऊर्जा से जुड़ी नीतियों में ही दोष है और उसमें पूरा फोकस पर मेगावाट उत्पादन पर शुल्क वसूली पर है जिसके चलते यहां बनने वाली बिजली फिर यह कंपनियां अन्य राज्यों को देती है.

झारखंड राजस्थान से खरीद रही 350 मेगावाट बिजली: राजस्थान में बिजली संकट के चलते पावर कट चल रहा है. बावजूद इसके राजस्थान में बनने वाली सौर ऊर्जा अन्य राज्यों में जा रही है. झारखंड प्रतिदिन राजस्थान से 350 मेगावाट सौर ऊर्जा खरीद रहा है. प्रदेश में लगे निजी सोलर प्लांट और संयुक्त उपक्रम के जरिए यह बिजली दी जा रही है. वर्तमान में प्रदेश में बिजली की मांग और उपलब्धता में अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है. बिजली की मांग गर्मी में लगातार बढ़ रही है जिसके चलते मौजूदा हालातों में 1200 से 3000 मेगावाट का अंतर बना हुआ है जिसे बिजली कटौती के जरिए पूरा किया जा रहा है.

जयपुर. देशभर में अक्षय ऊर्जा के लिहाज से राजस्थान सिरमौर है, फिर भी यहां के बिजली संकट से आम उपभोक्ताओं को रू-ब-रू होना पड़ रहा है. आम उपभोक्ताओं के मन में बार-बार यही सवाल उठता है कि जब प्रकृति ने ऊर्जा के क्षेत्र में राजस्थान को पूरा आशीर्वाद दिया है, तो फिर क्या कारण है जो बाहर से महंगी बिजली खरीदना और बार-बार पावर कट लगाना डिस्कॉम और ऊर्जा विभाग की मजबूरी बन गया (Reason of power crisis in Rajasthan) है.

दरअसल, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में 12163 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित कर राजस्थान देश में पहला राज्य बन गया. इसके अलावा राजस्थान ने विंड एनर्जी में 4338 मेगावाट और बायोगैस एनर्जी में 120 मेगावाट की क्षमता स्थापित कर ली है. आसान शब्दों में कहें तो राजस्थान में 17040 मेगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादित होती है, लेकिन इसका पूरा फायदा प्रदेश को नहीं मिल रहा. जिसके चलते आज भी राजस्थान में 1 से लेकर 8 घंटे तक का पावर कट अलग-अलग क्षेत्रों में चल रहा है.

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उत्पादन 17040 लेकिन राज्य को मिल रहा 7500 मेगावाट : राजस्थान में अक्षय ऊर्जा के रूप में कुल उत्पादन क्षमता 17040 मेगावाट है, लेकिन वर्तमान में राजस्थान को मतलब डिस्कॉम को करीब 7500 मेगावाट ही अक्षय ऊर्जा के जरिए मिल पा रही है. इनमें भी 3734 पवन ऊर्जा की क्षमता है, लेकिन पूरी क्षमता से यह बिजली नहीं मिल पाती. आलम यह रहा कि राजस्थान को बुधवार को तो दिन भर में महज 300 मेगावाट ही विंड एनर्जी मिल पाई थी. इसी तरह 3003 सौर ऊर्जा प्लांट के जरिए और करीब 700 मेगावाट रूफटॉप सोलर चैनल के जरिए डिस्कॉम को मिलती है, लेकिन जितनी क्षमता है उसके अनुरूप पूरी बिजली कभी-कभार ही मिल पाती है.

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राजस्थान में बनने वाली अक्षय ऊर्जा जा रही अन्य राज्यों में: अक्षय ऊर्जा की क्षमता 17040 मेगावाट है, लेकिन राजस्थान को इसमें बेहद कम और अन्य राज्यों को ज्यादा बिजली मिलती (Why Rajasthan gets less share of energy production) है. इसके पीछे बड़ा कारण है, राजस्थान में लगाए गए अधिकतर प्लांट निजी निवेशकर्ताओं या फिर संयुक्त रूप से लगाए गए प्लांट हैं. सरकार की ऊर्जा नीति भी ऐसी रही कि जब यह प्लांट राजस्थान की धरती पर लगाए गए, तब इसमें उत्पन्न होने वाली बिजली का एक बड़ा हिस्सा राजस्थान में दिए जाने के बजाए शुल्क लेना ही उचित समझा गया. जिसके चलते यहां बिजली संकट के बाद भी राजस्थान में उत्पन्न होने वाली अक्षय ऊर्जा बाहरी राज्यों को मिल जाती है. डिस्कॉम को एक्सचेंज के जरिए महंगे दामों पर बिजली खरीदनी पड़ रही है.

पढ़ें: राजस्थान में बिजली संकट के बीच राहत, सुधरने लगे हालात...

1 मेगावाट का सालाना 2 लाख वसूला जाता है शुल्क: राजस्थान में सौर, पवन और बायोमास विद्युत उत्पादन के जो प्लांट लगाए गए हैं, उनके लिए सरकार के साथ जो समझौता हुआ उनकी शर्तें ही ऐसी रखी गईं जिसके चलते राज्य को इन प्लांटों से मिलने वाली बिजली का हिस्सा सस्ते दाम पर नहीं मिलता. राज्य में स्थापित निजी निवेशकर्ताओं के प्लांट से सरकार प्रतिवर्ष 1 मेगावाट की एवज में 2 लाख का शुल्क वसूलती है. साल 2026 में यह शुल्क प्रति मेगावाट 5 लाख रुपए हो जाएगा. मतलब सरकार की अक्षय ऊर्जा से जुड़ी नीतियों में ही दोष है और उसमें पूरा फोकस पर मेगावाट उत्पादन पर शुल्क वसूली पर है जिसके चलते यहां बनने वाली बिजली फिर यह कंपनियां अन्य राज्यों को देती है.

झारखंड राजस्थान से खरीद रही 350 मेगावाट बिजली: राजस्थान में बिजली संकट के चलते पावर कट चल रहा है. बावजूद इसके राजस्थान में बनने वाली सौर ऊर्जा अन्य राज्यों में जा रही है. झारखंड प्रतिदिन राजस्थान से 350 मेगावाट सौर ऊर्जा खरीद रहा है. प्रदेश में लगे निजी सोलर प्लांट और संयुक्त उपक्रम के जरिए यह बिजली दी जा रही है. वर्तमान में प्रदेश में बिजली की मांग और उपलब्धता में अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है. बिजली की मांग गर्मी में लगातार बढ़ रही है जिसके चलते मौजूदा हालातों में 1200 से 3000 मेगावाट का अंतर बना हुआ है जिसे बिजली कटौती के जरिए पूरा किया जा रहा है.

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