जयपुर. सरकार और किसानों के बीच लगातार कृषि कानून को लेकर माथापच्ची जारी है. लेकिन कोसों दूर राजस्थान में बैठे किसानों का कहना है कि उन्हें कृषि कानून के बारे में पूरी जानकारी तो नहीं है. लेकिन सरकार की बड़ी-बड़ी बातें जरूर समझ में आ रही हैं. यह भी पता लग रहा है कि अभी इस कानून को लेकर कुछ पेचीदगियां और आशंकाएं हैं, जिसे लेकर सरकार और किसानों के बीच इस वक्त माथापच्ची भी चल रही है.
किसानों ने बातचीत की तो सभी ने यह बात मानी कि किसान आंदोलन किसानों की चिंताओं को खत्म करने के लिए किया जा रहा है. लेकिन उनका यह भी मनाना है कि किसान आंदोलन में किसी तरह की राजनीति नहीं हो रही है. वो चाहते हैं कि मंडी बरकरार रहे और किसानों से एमएसपी पर अधिक से अधिक फसल खरीद की जाए. किसानों का यह दर्द भी छलका की कड़ी मेहनत के बाद भी उन्हें उनकी फसलों का सही रेट बाजार में भी नहीं मिल पा रहा है और किसानों की आय दोगुनी करने का सरकार का वादा भी केवल वादा ही साबित हो रहा है.
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ऐसे में नए कृषि कानून के प्रावधानों को लेकर किसान आशंकित हैं कि उनके पास आने वाली कंपनियों पर किसके ऊपर विश्वास करें. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के प्रावधान पर इन किसानों का कहना है कि उनका खेत कॉन्ट्रेक्ट में लेने वाली कंपनियां एकबारगी उन्हें फसल का दाम दे ही देंगी, लेकिन उल्टा सीधा उर्वरक डलवाकर उनकी जमीन को खराब भी कर सकती हैं. हालांकि ज्यादातर किसानों ने माना कि कृषि कानून को सही तरीके से लागू करने के बाद उन्हें उनकी फसलों का उचित मूल्य मिलेगा और उनकी आधी परेशानियां दूर हो जाएंगी. लेकिन वे यह भी मानते हैं कि इसमें कुछ कमियां हैं, जिसमें अभी सुधार और संशोधन करने की जरूरत है. इसी को लेकर उनके किसान साथी दिल्ली में अपनी बात रखने पहुंचे हुए हैं.
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किसानों ने कहा कि हमारी फसल का उचित मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है. फसल को मंडियों में बेचने पहुंचते हैं तो लागत मूल्य भी वसूल नहीं हो पाता. ऐसे में किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है और घर खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा है. बिजली के बिल तो टाइम पर आते हैं, लेकिन फसल का उचित मूल्य नहीं मिलने की वजह से बिजली बिल भी कर्ज लेकर चुकाने पड़ रहे हैं.