जयपुर. राजस्थान में 17 अप्रैल को 3 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. इन 3 विधानसभा सीटों में से 2 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है और एक पर भाजपा का. ऐसे में अपनी दोनों सीटें बचाने के लिए कांग्रेस को प्रयास भी ज्यादा करने होंगे. राजस्थान में सरकार भी कांग्रेस की है तो ऐसे में कांग्रेस पार्टी से सत्ता में होने के चलते उम्मीद भी ज्यादा होगी.
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बात की जाए राजसमंद और सुजानगढ़ सीटों की तो जहां सुजानगढ़ एससी के लिए रिजर्व है तो वहीं राजसमंद सीट जनरल कैटेगरी की है. इन चुनावों में जीत दर्ज करने के लिए कांग्रेस पार्टी को जातिगत समीकरण भी साधने होंगे. जहां एससी के लिए रिजर्व सुजानगढ़ सीट पर एससी वोटों के साथ ही जाट और राजपूत मतदाता बाहुल्य में है तो अल्पसंख्यक और ब्राह्मण भी इस रिजर्व सीट पर हार जीत के फैसले में डिसाइडर है.
वहीं, बात की जाए राजसमंद की तो राजसमंद सीट पर जातिगत समीकरण के अनुसार यहां सर्वाधिक मतदाता एससी-एसटी के बाद राजपूत हैं. जिसके बाद कुमावत और गुर्जर मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं. वहीं, जैन, वैश्य और ब्राह्मण भी इस सीट पर डिसाइडर की भूमिका निभाते हैं. इन सभी को साधने के लिए कांग्रेस पार्टी को प्रयास करने होंगे. तो वहीं हाल ही में जिस तरीके से कांग्रेस के अपने विधायकों ने ही सरकार पर दलित विधायकों के साथ भेदभाव करने के आरोप लगाए उससे भी कांग्रेस का जातीय समीकरण कुछ बिगड़ा है, जिसे सुधारने का प्रयास भी कांग्रेस पार्टी को करना होगा.
- सुजानगढ़ विधानसभा सीट
किसी विधायक को लगातार दूसरी बार नहीं दिया जनता ने मौका
कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे दिवंगत विधायक मास्टर भंवर लाल मेघवाल के निधन के बाद यह सीट खाली हुई है. इस सीट की बात की जाए तो साल 1951 से लेकर साल 2018 के विधानसभा चुनाव तक इस सीट पर एक ऐसा संयोग बना है कि लगातार दूसरी बार कोई भी नेता इस विधानसभा से जीत नहीं दर्ज कर सका है.
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सुजानगढ़ का जातीय समीकरण
1951 से लेकर 2018 तक कुल 15 चुनाव हुए हैं. इन 15 चुनावों में से 5 चुनाव में दिवंगत विधायक मास्टर भंवरलाल मेघवाल ने जीत दर्ज की, लेकिन मास्टर भंवरलाल मेघवाल भी लगातार दो चुनाव नहीं जीत सके. सुजानगढ़ की सीट 1951 से लेकर 1972 तक सामान्य सीट थी. 1951 में हुए पहले चुनाव में सीट से निर्दलीय प्रत्याशी प्रताप सिंह ने बाजी मारी तो 1957 में निर्दलीय प्रत्याशी शन्नो देवी ने जीत दर्ज की.
सुजानगढ़ से ये रहे विधायक
कांग्रेस का खाता इस सीट पर साल 1962 में पहली बार खुला, जब कांग्रेस के प्रत्याशी फूलचंद इस सीट से जीते. इसके बाद साल 1977 में इस सीट को रिजर्व घोषित कर दिया गया, लेकिन आज तक इस सीट पर एक नेता ने लगातार दो चुनाव नहीं जीते.
- राजसमंद विधानसभा सीट
भाजपा का गढ़ आखिरी बार 1998 में जीती थी कांग्रेस
इसी तरीके से राजसमंद सीट की बात की जाए तो भाजपा के दिवंगत विधायक किरण महेश्वरी के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है. राजसमंद में इतिहास में पहली बार उप चुनाव हो रहे हैं. इस सीट पर कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह है कि कांग्रेस 1951 से अब तक के हुए चुनाव में 7 बार राजसमंद विधानसभा सीट में जीत दर्ज कर चुकी है, तो वहीं भाजपा 6 बार. लेकिन, कांग्रेस के लिए बड़ी दिक्कत यह है कि कांग्रेस पार्टी साल 2003 से लेकर साल 2018 तक लगातार चार बार यह चुनाव भाजपा से हार चुकी है.
राजसमंद का जातीय समीकरण
1998 में आखिरी बार कांग्रेस के बंशीलाल गहलोत इस सीट से चुनाव जीते थे. खास बात यह है राजसमंद सीट में भाजपा का स्थानीय प्रत्याशी कभी चुनाव नहीं जीत पाया. भाजपा ने यहां 6 बार चुनाव जीता है और प्रत्याशी हमेशा राजसमंद के बाहर के थे. किरण महेश्वरी भी मूल रूप से उदयपुर की निवासी थी, तो 1977 में कैलाश मेघवाल जीते वह भी उदयपुर के थे, तो दो बार विधायक रहे नानालाल भी चित्तौड़गढ़ के थे.
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राजसमंद से ये रहे विधायक
हालांकि, जिस तरीके से साल 2003 से 2018 तक चार बार भाजपा ने इस सीट पर जीत दर्ज की है तो उसी तरीके से कांग्रेस पार्टी ने भी साल 1957 से लेकर 1972 तक लगातार चार बार राजसमंद सीट पर कब्जा किया था. ऐसे में इस बार राजसमंद विधानसभा में हो रहे उपचुनाव में इस बात पर सब की नजर होगी कि भाजपा 5 बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बना पाती है या फिर सत्ताधारी दल कांग्रेस चुनाव में जीत दर्ज करेगा.