भरतपुर: जिले में न्याय की उम्मीदों के बीच थानों में पेंडिंग 1164 मामलों का आंकड़ा एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा है. वर्ष 2024 में जिले में करीब 10,000 केस दर्ज हुए, जिनमें से 10 प्रतिशत अभी भी लंबित है. पुलिस प्रशासन का दावा किया है कि अधिकांश मामलों को समय पर निपटाया गया है और लंबित मामलों पर भी प्राथमिकता से कार्य हो रहा है, लेकिन इन आंकड़ों के पीछे कई ऐसी कहानियां छिपी है, जहां पीड़ितों की तकलीफें हर दिन बढ़ती जा रही है.
पुलिस अधीक्षक मृदुल कच्छावा ने बताया कि हमने 90 प्रतिशत से अधिक मामलों को निपटा दिया है. जो केस पेंडिंग हैं, उनमें से अधिकांश एक या डेढ़ महीने के दौरान दर्ज हुए हैं. इन्हें जल्द से जल्द न्यायोचित तरीके से सुलझाया जाएगा, लेकिन सवाल यह है कि यदि 90% मामलों का निस्तारण हो चुका है, तो शेष 10% मामलों में देरी क्यों हो रही है? इनमें से कई केस संवेदनशील और गहन अनुसंधान की मांग करते हैं. वहीं, कुछ मामलों पर उच्च न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी या अनुसंधान पर रोक भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.
पुलिस के बंधे हाथ: एसपी मृदुल कच्छावा ने बताया कि अदालत के आदेशों की वजह से कुछ मामले पेंडिंग हैं. कई मामलों में गिरफ्तारी और अनुसंधान पर रोक लगा दी गई है. ऐसे में पुलिस को बिना कार्रवाई के इंतजार करना पड़ता है. हम हर केस पर विशेष ध्यान दे रहे हैं, ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके.
ये हैं मुख्य वजहें :
जटिल मामलों का दबाव: लंबित केसों में ज्यादातर गंभीर अपराध, तकनीकी जांच की मांग करने वाले और गवाहों के बयानों पर निर्भर हैं. इन मामलों को सुलझाने में अधिक समय लग रहा है.
कोर्ट की रोक: कई मामलों पर उच्च न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी या जांच पर रोक लगाई गई है. इससे पुलिस के हाथ बंधे हुए हैं और पीड़ितों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ रहा है.
सीमित संसाधन: पुलिस के पास मानव संसाधन और तकनीकी उपकरणों की कमी है. इससे गहन अनुसंधान वाले मामलों में तेजी लाने में मुश्किलें हो रही हैं.
फर्जी शिकायतें: पेंडिंग मामलों में कई शिकायतें झूठी या बेबुनियाद पाई गई हैं, जिनकी जांच में अनावश्यक समय और ऊर्जा बर्बाद होती है.
पेंडेंसी में आई 5% की कमी: हालांकि, भरतपुर जिले में पेंडिंग मामलों को लेकर वर्ष 2024 ने एक राहत भरी तस्वीर पेश की है. वर्ष 2023 में जिले में कुल 1701 मामले पेंडिंग थे, जबकि 2024 में यह संख्या घटकर 1164 रह गई. इस प्रकार पेंडेंसी प्रतिशत में 5% की कमी दर्ज की गई है. पुलिस प्रशासन इसे अपनी कार्यकुशलता और बेहतर प्रबंधन का परिणाम बता रहा है.
असुरक्षा के साए में जीने को मजबूर: लंबित मामलों की वजह से सबसे ज्यादा असर पीड़ितों पर पड़ रहा है. ठगी, हिंसा और अपराध के मामलों में इंसाफ की प्रतीक्षा करते लोग निराशा और असुरक्षा के साए में जीने को मजबूर हैं. ऐसे में 1164 पेंडिंग केस केवल आंकड़ा नहीं हैं, बल्कि न्याय की उम्मीद में बैठे उन सैकड़ों परिवारों की कहानी हैं, जिनका हर दिन असुरक्षा और इंतजार के बीच गुजर रहा है. प्रशासन को इस चुनौती को प्राथमिकता के साथ हल करना होगा, ताकि न्याय प्रक्रिया में आम जनता का भरोसा कायम रह सके.