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SPECIAL: मरम्मत के अभाव में शहर के पब्लिक टॉयलेट बदहाल, कहीं टाइल्स उखड़ी तो कहीं बिलजी-पानी की समस्या

जयपुर शहर में सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था संतोषजनक नहीं है. यहां के सुलभ शौचालय समय पर मरम्मत ना हो पाने की वजसे से सीलन की मार झेल रहे हैं. मेंटेनेंस के अभाव में कुछ यूरिनल में टॉयलेट पॉट नहीं है तो कहीं टाइल्स उखड़ी हुई हैं. वहीं इन टॉयलेट में पानी और बिजली की समस्या भी आम हो गई है. पढ़ें पूरी खबर...

जयपुर के पब्लिक टॉयलेट, public toilet of jaipur
मरम्मत की बाट जोह रहे शहर के पब्लिक टॉयलेट
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Published : Feb 3, 2021, 11:05 PM IST

जयपुर. सवाई जयसिंह द्वितीय ने नगरीय व्यवस्था के तहत घरेलू शौचालय की व्यवस्था की थी. यहां लोगों को खुले में शौच जाना ही नहीं पड़ता था, लेकिन आज के जयपुर शहर में सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था संतोषजनक नहीं है. आलम ये है कि करीब 40 लाख की आबादी पर यहां 185 पब्लिक टॉयलेट, 580 सामुदायिक टॉयलेट और तकरीबन 700 यूरिनल ही बने हुए हैं. वो भी निर्माण गुणवत्ता के अभाव में मरम्मत की बाट जोह रहे हैं.

मरम्मत की बाट जोह रहे शहर के पब्लिक टॉयलेट

राजधानी के नगर निगम क्षेत्र में बने पब्लिक टॉयलेट, कम्युनिटी टॉयलेट और यूरिनल की साफ-सफाई और रखरखाव की जिम्मेदारी सुलभ इंटरनेशनल और दो अन्य संस्थाओं के पास है, लेकिन जब इन पब्लिक टॉयलेट के निर्माण की बात आती है तो हाईकोर्ट के फैसले के बाद करीब 5 साल से टेंडर पर कंस्ट्रक्शन का काम किया जा रहा है.

पढ़ेंः SPECIAL : उदयपुर संभाग में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन....लेकिन दोनों ही पार्टियों के लिए खतरे की घंटी

इससे पहले तक ये जिम्मेदारी भी सुलभ इंटरनेशनल के पास ही थी. ऐसे में जब इन टॉयलेट्स के निर्माण की बात आती है, तो नगर निगम के साथ सुलभ इंटरनेशनल का नाम खुद ही जुड़ जाता है.

इन पब्लिक टॉयलेट कि निर्माण के बीएसआर के अनुसार मानक भी तय है, जिसके तहत -

  • पत्थर और ईटों की चुनाई- चुनाई में सीमेंट और बजरी का मिश्रण 1:6- करीब 20 एमएम का प्लास्टर
  • प्लास्टर में सीमेंट और बजरी का मिश्रण 1: 4
  • टॉयलेट में आरसीसी की छत
  • छत में सीमेंट बजरी कंकरीट का मिश्रण 1:1.5:3
  • टॉयलेट में स्टोन पट्टी की छत- पट्टी की मोटाई 2.5 से 3 इंच
  • टाइल्स - G शेड्यूल

इसके अलावा बजट के अनुसार डिस्टेंपर पेंट या पुताई कराई जाती है इन मानकों को समझने के बाद ईटीवी भारत जयपुर शहर के पब्लिक टॉयलेट और यूरिनल तक पहुंचा. तो ये अपने निर्माण की कहानी खुद बयां करते दिखे. जहां यूरिनल मरम्मत की मांग कर रहे थे.

जयपुर के पब्लिक टॉयलेट, public toilet of jaipur
जयपुर में 580 सामुदायिक टॉयलेट

पढ़ेंः Special : जुगाड़ तकनीक ने बनाया काम...बाइक और ऑटो में बना ली चलती-फिरती दुकान

वहीं, सुलभ शौचालय के बैनर के तले पब्लिक टॉयलेट सीलन की मार झेल रहे थे. यही नहीं कुछ एक टॉयलेट के तो सीवर चैंबर ही नहीं थे. जिसकी वजह से गंदगी भी बाहर आ जाती है. मेंटेनेंस के अभाव में कुछ यूरिनल में टॉयलेट पॉट नहीं, तो कहीं टाइल्स भी उखड़ी हुई मिली. वहीं पानी और बिजली तो इन टॉयलेट में मानो आम समस्या है.

जयपुर के पब्लिक टॉयलेट, public toilet of jaipur
जयपुर के पब्लिक टॉयलेट

हालांकि हेरिटेज नगर निगम एक्सईएन हेड क्वार्टर किशन लाल मीणा की माने तो पब्लिक टॉयलेट और कम्युनिटी टॉयलेट से जुड़े दो मानक है. जिसके तहत संबंधित फर्म कंस्ट्रक्शन के साथ-साथ 30 साल का मेंटेनेंस भी करती है. जबकि एक अन्य मानक के तहत निगम या उससे जुड़े ठेकेदारों की ओर से कंस्ट्रक्शन करने के बाद उसके मेंटेनेंस के लिए टेंडर किये जाने का है.

पढ़ेंः SPECIAL : कैंसर के इलाज में लहसुन के कैप्सूल कारगर होने का दावा...कोटा कृषि विज्ञान केंद्र के 'गार्लिक' की सप्लाई देशभर में

वहीं, गुणवत्ता की अगर बात करें तो SOR 2017 में निहित प्रावधानों को फॉलो किया जाता है. उन्होंने दावा भी किया कि टॉयलेट के निर्माण गुणवत्ता में कोई कमी नहीं रखी जाती.

वाकई, किसी भी निर्माण की गुणवत्ता के मानक जरूर होते हैं, लेकिन इन मानकों को धरातल पर उतारना भी बड़ी जिम्मेदारी होती है. जिसमें फिलहाल नगर निगम प्रशासन और संबंधित फर्म की चूक नजर आती है.

जयपुर. सवाई जयसिंह द्वितीय ने नगरीय व्यवस्था के तहत घरेलू शौचालय की व्यवस्था की थी. यहां लोगों को खुले में शौच जाना ही नहीं पड़ता था, लेकिन आज के जयपुर शहर में सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था संतोषजनक नहीं है. आलम ये है कि करीब 40 लाख की आबादी पर यहां 185 पब्लिक टॉयलेट, 580 सामुदायिक टॉयलेट और तकरीबन 700 यूरिनल ही बने हुए हैं. वो भी निर्माण गुणवत्ता के अभाव में मरम्मत की बाट जोह रहे हैं.

मरम्मत की बाट जोह रहे शहर के पब्लिक टॉयलेट

राजधानी के नगर निगम क्षेत्र में बने पब्लिक टॉयलेट, कम्युनिटी टॉयलेट और यूरिनल की साफ-सफाई और रखरखाव की जिम्मेदारी सुलभ इंटरनेशनल और दो अन्य संस्थाओं के पास है, लेकिन जब इन पब्लिक टॉयलेट के निर्माण की बात आती है तो हाईकोर्ट के फैसले के बाद करीब 5 साल से टेंडर पर कंस्ट्रक्शन का काम किया जा रहा है.

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इससे पहले तक ये जिम्मेदारी भी सुलभ इंटरनेशनल के पास ही थी. ऐसे में जब इन टॉयलेट्स के निर्माण की बात आती है, तो नगर निगम के साथ सुलभ इंटरनेशनल का नाम खुद ही जुड़ जाता है.

इन पब्लिक टॉयलेट कि निर्माण के बीएसआर के अनुसार मानक भी तय है, जिसके तहत -

  • पत्थर और ईटों की चुनाई- चुनाई में सीमेंट और बजरी का मिश्रण 1:6- करीब 20 एमएम का प्लास्टर
  • प्लास्टर में सीमेंट और बजरी का मिश्रण 1: 4
  • टॉयलेट में आरसीसी की छत
  • छत में सीमेंट बजरी कंकरीट का मिश्रण 1:1.5:3
  • टॉयलेट में स्टोन पट्टी की छत- पट्टी की मोटाई 2.5 से 3 इंच
  • टाइल्स - G शेड्यूल

इसके अलावा बजट के अनुसार डिस्टेंपर पेंट या पुताई कराई जाती है इन मानकों को समझने के बाद ईटीवी भारत जयपुर शहर के पब्लिक टॉयलेट और यूरिनल तक पहुंचा. तो ये अपने निर्माण की कहानी खुद बयां करते दिखे. जहां यूरिनल मरम्मत की मांग कर रहे थे.

जयपुर के पब्लिक टॉयलेट, public toilet of jaipur
जयपुर में 580 सामुदायिक टॉयलेट

पढ़ेंः Special : जुगाड़ तकनीक ने बनाया काम...बाइक और ऑटो में बना ली चलती-फिरती दुकान

वहीं, सुलभ शौचालय के बैनर के तले पब्लिक टॉयलेट सीलन की मार झेल रहे थे. यही नहीं कुछ एक टॉयलेट के तो सीवर चैंबर ही नहीं थे. जिसकी वजह से गंदगी भी बाहर आ जाती है. मेंटेनेंस के अभाव में कुछ यूरिनल में टॉयलेट पॉट नहीं, तो कहीं टाइल्स भी उखड़ी हुई मिली. वहीं पानी और बिजली तो इन टॉयलेट में मानो आम समस्या है.

जयपुर के पब्लिक टॉयलेट, public toilet of jaipur
जयपुर के पब्लिक टॉयलेट

हालांकि हेरिटेज नगर निगम एक्सईएन हेड क्वार्टर किशन लाल मीणा की माने तो पब्लिक टॉयलेट और कम्युनिटी टॉयलेट से जुड़े दो मानक है. जिसके तहत संबंधित फर्म कंस्ट्रक्शन के साथ-साथ 30 साल का मेंटेनेंस भी करती है. जबकि एक अन्य मानक के तहत निगम या उससे जुड़े ठेकेदारों की ओर से कंस्ट्रक्शन करने के बाद उसके मेंटेनेंस के लिए टेंडर किये जाने का है.

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वहीं, गुणवत्ता की अगर बात करें तो SOR 2017 में निहित प्रावधानों को फॉलो किया जाता है. उन्होंने दावा भी किया कि टॉयलेट के निर्माण गुणवत्ता में कोई कमी नहीं रखी जाती.

वाकई, किसी भी निर्माण की गुणवत्ता के मानक जरूर होते हैं, लेकिन इन मानकों को धरातल पर उतारना भी बड़ी जिम्मेदारी होती है. जिसमें फिलहाल नगर निगम प्रशासन और संबंधित फर्म की चूक नजर आती है.

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