जयपुर. मध्यप्रदेश में बदले सियासी घटनाक्रम के बाद अब राजस्थान में भी कुछ इस तरह का ही अंदेशा लगाया जा रहा है. हालांकि यह सौ फीसदी सच भी है कि राजस्थान में यदि मध्य प्रदेश जैसी स्थिति बनी भी तो भाजपा के लिए यहां सरकार बनाना मुश्किल ही होगा.
फिलहाल राजस्थान में कालीचरण सर्राफ, लक्ष्मीकांत भारद्वाज और जितेंद्र श्रीमाली जैसे भाजपा नेता जिस तरह के दावे कर रहे हैं, वो अभी तो भाजपा के लिए दूर की कौड़ी ही साबित होते दिख रहे हैं. दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने के बाद राजस्थान में भी अंदेशा लगाया जा रहा है कि सचिन पायलट भी ज्योतिरादित्य की राह पकड़ सकते हैं.
जानकार यह भी बोलते हैं कि पायलट यदि ज्योतिरादित्य की राह चल भी दिए तो भी राजस्थान में भाजपा की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अपनी सरकार बना सकें. इसके पीछे कारण भी साफ है, पहला सबसे बड़ा कारण राजस्थान में भाजपा 200 में से महज 72 सीटों पर काबिज है और उसके सहयोगी आरएलपी 3 सीटों पर कब्जा जमाए हुए हैं. मतलब भाजपा बहुमत से अभी 26 सीट पीछे हैं जबकि प्रदेश में निर्दलीय जीतकर आए 13 में से अधिकतर विधायक कांग्रेस विचारधारा या उसके समर्थित है. वहीं मौजूदा स्थिति में कांग्रेस के पास 107 विधायकों की संख्या बल है.
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दूसरा बड़ा कारण है प्रदेश भाजपा में मौजूदा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अनदेखी. राजस्थान में आज भी भाजपा के कई विधायक वसुंधरा खेमे से ही माने जाते हैं. ऐसे में यदि मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी कोई सियासी उलटफेर हुआ तो लड़ाई मुख्यमंत्री की कुर्सी की होगी.
राजस्थान में सतीश पूनिया को संगठन की कमान सौंपे ज्यादा समय नहीं हुआ है. लिहाजा, उन्हें संगठन में अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिए अभी कुछ और समय की दरकार है. वहीं, राजनीतिक जानकारों की माने तो राजस्थान में मध्य प्रदेश जैसी स्थिति अब बनेगी ही नहीं. इसके पीछे बड़ा कारण मध्यप्रदेश में हुआ सियासी उलटफेर है, जिसके बाद कांग्रेस आलाकमान पार्टी से असंतुष्ट चल रहे बड़े नेताओं को पूरी तवज्जो देगा. यदि ऐसा हुआ भी तो सचिन पायलट की पार्टी में पूछ और परख पहले की तुलना में अधिक बढ़ेगी.