जयपुर. सरकार बनने के बाद कांग्रेस के सत्ता में भागीदारी की आस लगाकर बैठे कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियों से दूर रखना कहीं न कहीं निकाय चुनावों में पार्टी को भारी पड़ सकता है. वहीं, कार्यकर्ता भी अब समझ चुके हैं कि राजनीतिक नियुक्ति पानी है तो मुख्यमंत्री से सीधा ही उन्हें मांगना होगा. हालात ये हैं कि कांग्रेस कार्यकर्ता मुख्यमंत्री से मिलने के लिए जनसुनवाई में ही पहुंच रहे हैं.
सोमवार को हुई जनसुनवाई में भी ऐसा ही हुआ, जब राजनीतिक नियुक्तियां पाने के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की. घुमंतू बोर्ड के पूर्व में अध्यक्ष रहे गोपाल केसावत इसी बोर्ड के लिए अपनी बात रखने पहुंचे. इसी तरह असंगठित कामगार कांग्रेस के अध्यक्ष रज्जाक भाटी ने मुख्यमंत्री से असंगठित कामगार कल्याण बोर्ड बनाने और उन्हें उसका चेयरमैन बनाने की डिमांड मुख्यमंत्री से मिलकर जनसुनवाई के दौरान की. इसी तरह निशक्तजन आयोग के चेयरमैन पद के लिए भी मुख्यमंत्री से बड़ी संख्या में दिव्यांगों ने मुलाकात की और इस पद पर किसी निशक्तजन को ही नियुक्ति देने की मांग की.
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इस दौरान निशक्तजन बड़ी संख्या में मुख्यमंत्री आवास पहुंचे. वहीं, कांग्रेस महामंत्री और विधी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष, हालांकि चुरू के वकीलों की मांग लेकर मुख्यमंत्री निवास पहुंचे. लेकिन सुशील शर्मा पहले से ही हाउसिंग बोर्ड के चैयरमैन के पद की मांग कर रहे हैं. वहीं, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सत्ता में भागीदारी का ख्वाब संजोए बैठे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एक फिर बड़ा झटका लगा है.
दरअसल, इस बार झटका प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे के उस फरमान से लगा है, जिसमें उन्होंने निकाय चुनावों में बेहतर परफॉर्मेंस दिखाने वाले कार्यकर्ताओं को ही राजनीतिक नियुक्तियों में एडजस्ट करने की बात कही है. यानी कि कार्यकर्ताओं पर एक बार फिर जनता के बीच जाकर वोट दिलाने और प्रत्याशियों को जीत दिलाने की जिम्मेदारी रहेगी. इस नए फरमान से उन कार्यकर्ताओं और नेताओं को झटका लगा है जो राजनीतिक नियुक्तियों की अटकलों के बीच जयपुर से दिल्ली तक दौड़ लगाते हुए अपनी दावेदारी पक्की मान रहे थे. प्रदेश प्रभारी के इस फरमान से जहां एक बात तो साफ हो गई है कि प्रदेश में अब निकाय चुनावों के परिणाम के बाद ही राजनीतिक नियुक्तियों का दौर चलेगा तो वहीं फरमान को लेकर कार्यकर्ता भी हैरान और परेशान हैं.
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कार्यकर्ताओं में चर्चा इस बात की है कि पहले विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने का आश्वासन दिया गया और अब निकाय चुनाव में. उसके बाद पंचायत चुनाव में भी इसी तरह का फरमान जारी कर दिया जाएगा. ऐसे में कार्यकर्ता तो केवल चुनावों में काम करने के वक्त ही याद आता है. ये चर्चा इन दिनों कांग्रेस मुख्यालय से लेकर आम कार्यकर्ताओं के बीच खूब सुनने को मिलती है. प्रदेश प्रभारी के बयान के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में अंदरखाने नाराजगी भी बढ़ती जा रही है और जिसका सीधा असर निकाय चुनाव में पड़ सकता है.