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स्कूलों के 'सरकारी' हाल: जयपुर नगर निगम की ओर संचालित पिंक सिटी स्कूल के हालात बद से बदतर, देखिए रिपोर्ट

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Published : Dec 22, 2019, 2:59 PM IST

जयपुर नगर निगम की ओर से बनाई गई स्कूलों की वर्तमान में क्या स्थिति है. इसको जानने के लिए ईटीवी भारत स्कूल का जायजा लेने पहुंचा, जहां धरातल पर क्या मिला, देखिए स्कूलों के 'सरकारी' हाल पर जयपुर से स्पेशल रिपोर्ट

Jaipur Pink City School,  School reality check
पिंक सिटी स्कूल का रियलिटी चेक

जयपुर. वर्ष1956 में जयपुर नगर निगम के सफाई कर्मचारियों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए शहर में पिंक सिटी स्कूल खोले गए थे. अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्रों में संचालित है. एक समय में शहर में ऐसे 21 स्कूल थे. जिनमें से आज महज पांच ही बचे हैं.

जयपुर में पिंक सिटी स्कूल का रियलिटी चेक

आलम ये है कि इन स्कूलों में भी छात्रों के बैठने के लिए कुर्सी टेबल, पढ़ने के लिए ब्लैक बोर्ड, रोशनी के लिए बिजली, यहां तक कि पीने के लिए पानी तक उपलब्ध नहीं है.

स्कूलों की हालत बद से बदतर
जयपुर नगर निगम की ओर से शहर के हवामहल पश्चिम में एक और हवामहल पूर्व में चार पिंक सिटी स्कूल संचालित हैं. जिनमें क्षेत्रीय अनुसूचित जाति, सफाई कर्मचारी और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के बच्चों को पढ़ाया जाता है. कहने को तो ये एक सराहनीय पहल है, लेकिन जब इन स्कूलों में झांक कर देखा जाता है तो ये पहल कलंक से कम नहीं लगती. यूं तो जयपुर नगर निगम शहर के विकास कार्य में करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है, लेकिन मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए 1956 में जिन स्कूलों को शुरू किया गया, उनकी हालत बद से बदतर है.

पढ़ें- Special­: भामाशाहों की मदद से स्कूल की काया पलटी, अब प्राइवेट स्कूलों जैसी हो रही पढ़ाई

अव्यवस्थाओं की एक लंबी फेहरिस्त
हवामहल पश्चिम में माउंट रोड स्थित ऐसे ही एक पिंक सिटी स्कूल में ईटीवी भारत पहुंचा. समय सुबह 11:00 बजे का था, बावजूद इसके यहां एक भी छात्र नजर नहीं आया. जब कारण जानने के लिए पड़ताल की गई तो यहां की अव्यवस्थाओं की एक लंबी फेहरिस्त सामने आ गई. दरअसल, सर्दी का मौसम होने के चलते हैं खुद स्कूल के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी छात्रों को समय से पहले घर छोड़ आए थे, चूंकि स्कूल का समय सुबह 8:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक का है. ऐसे में छात्रों को समय से पहले घर छोड़े जाने को लेकर कई सवाल उठे और इस सवाल के जवाब भी इसी स्कूल परिसर में मिल भी गए.

बच्चों के बैठने के लिए कोई सुविधा नहीं
यहां ना तो छात्रों के बैठने के लिए कुर्सी टेबल की व्यवस्था थी, यहां तक कि कमरों में किसी दरी-पट्टी या फर्श तक की सुविधा उपलब्ध नहीं थी. आलम ये था की ब्लैक बोर्ड के नाम पर दीवार पर पोता हुआ काले रंग का पेंट था, और पानी की व्यवस्था के नाम पर कर्मचारियों के घर से लाई हुई बाल्टी भर पानी. हालांकि साल 2008 में इस स्कूल का जीर्णोद्धार तत्कालीन महापौर और क्षेत्रीय विधायक की ओर से किया गया था. जिसकी शिलान्यास पट्टिका वहां आज भी लगी है. तब स्कूल परिसर में ट्यूबलाइट, पंखे, नल आदि की व्यवस्था जरूर की गई, लेकिन बिजली और पानी का कनेक्शन नहीं लिया गया. स्कूल के कर्मचारियों ने बताया कि स्कूल में 25 से 30 छात्र नियमित आते हैं, लेकिन सर्दी में जमीन पर बैठने और खाने की व्यवस्था भी बंद हो जाने के चलते इनकी संख्या भी कम होती जा रही है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट : नाले के पानी के बीच अलवर में पढ़ाई करने को मजबूर हैं बच्चे

5 स्कूल संचालित, सबकी हाल एक जैसी
वर्तमान में निगम की ओर से 5 स्कूल संचालित हैं, लेकिन स्थिति सभी स्कूलों की खराब ही है. स्कूलों में इक्का दुक्का शिक्षकों को भी लगाया हुआ है, लेकिन अव्यवस्थाओं के आलम में यह शिक्षक भी छात्रों को उचित शिक्षा नहीं दे पा रहे. ऐसे में निगम की एक अच्छी पहल अब महज खानापूर्ति साबित हो रही है.

जयपुर. वर्ष1956 में जयपुर नगर निगम के सफाई कर्मचारियों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए शहर में पिंक सिटी स्कूल खोले गए थे. अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्रों में संचालित है. एक समय में शहर में ऐसे 21 स्कूल थे. जिनमें से आज महज पांच ही बचे हैं.

जयपुर में पिंक सिटी स्कूल का रियलिटी चेक

आलम ये है कि इन स्कूलों में भी छात्रों के बैठने के लिए कुर्सी टेबल, पढ़ने के लिए ब्लैक बोर्ड, रोशनी के लिए बिजली, यहां तक कि पीने के लिए पानी तक उपलब्ध नहीं है.

स्कूलों की हालत बद से बदतर
जयपुर नगर निगम की ओर से शहर के हवामहल पश्चिम में एक और हवामहल पूर्व में चार पिंक सिटी स्कूल संचालित हैं. जिनमें क्षेत्रीय अनुसूचित जाति, सफाई कर्मचारी और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के बच्चों को पढ़ाया जाता है. कहने को तो ये एक सराहनीय पहल है, लेकिन जब इन स्कूलों में झांक कर देखा जाता है तो ये पहल कलंक से कम नहीं लगती. यूं तो जयपुर नगर निगम शहर के विकास कार्य में करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है, लेकिन मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए 1956 में जिन स्कूलों को शुरू किया गया, उनकी हालत बद से बदतर है.

पढ़ें- Special­: भामाशाहों की मदद से स्कूल की काया पलटी, अब प्राइवेट स्कूलों जैसी हो रही पढ़ाई

अव्यवस्थाओं की एक लंबी फेहरिस्त
हवामहल पश्चिम में माउंट रोड स्थित ऐसे ही एक पिंक सिटी स्कूल में ईटीवी भारत पहुंचा. समय सुबह 11:00 बजे का था, बावजूद इसके यहां एक भी छात्र नजर नहीं आया. जब कारण जानने के लिए पड़ताल की गई तो यहां की अव्यवस्थाओं की एक लंबी फेहरिस्त सामने आ गई. दरअसल, सर्दी का मौसम होने के चलते हैं खुद स्कूल के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी छात्रों को समय से पहले घर छोड़ आए थे, चूंकि स्कूल का समय सुबह 8:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक का है. ऐसे में छात्रों को समय से पहले घर छोड़े जाने को लेकर कई सवाल उठे और इस सवाल के जवाब भी इसी स्कूल परिसर में मिल भी गए.

बच्चों के बैठने के लिए कोई सुविधा नहीं
यहां ना तो छात्रों के बैठने के लिए कुर्सी टेबल की व्यवस्था थी, यहां तक कि कमरों में किसी दरी-पट्टी या फर्श तक की सुविधा उपलब्ध नहीं थी. आलम ये था की ब्लैक बोर्ड के नाम पर दीवार पर पोता हुआ काले रंग का पेंट था, और पानी की व्यवस्था के नाम पर कर्मचारियों के घर से लाई हुई बाल्टी भर पानी. हालांकि साल 2008 में इस स्कूल का जीर्णोद्धार तत्कालीन महापौर और क्षेत्रीय विधायक की ओर से किया गया था. जिसकी शिलान्यास पट्टिका वहां आज भी लगी है. तब स्कूल परिसर में ट्यूबलाइट, पंखे, नल आदि की व्यवस्था जरूर की गई, लेकिन बिजली और पानी का कनेक्शन नहीं लिया गया. स्कूल के कर्मचारियों ने बताया कि स्कूल में 25 से 30 छात्र नियमित आते हैं, लेकिन सर्दी में जमीन पर बैठने और खाने की व्यवस्था भी बंद हो जाने के चलते इनकी संख्या भी कम होती जा रही है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट : नाले के पानी के बीच अलवर में पढ़ाई करने को मजबूर हैं बच्चे

5 स्कूल संचालित, सबकी हाल एक जैसी
वर्तमान में निगम की ओर से 5 स्कूल संचालित हैं, लेकिन स्थिति सभी स्कूलों की खराब ही है. स्कूलों में इक्का दुक्का शिक्षकों को भी लगाया हुआ है, लेकिन अव्यवस्थाओं के आलम में यह शिक्षक भी छात्रों को उचित शिक्षा नहीं दे पा रहे. ऐसे में निगम की एक अच्छी पहल अब महज खानापूर्ति साबित हो रही है.

Intro:जयपुर - 1956 में जयपुर नगर निगम के सफाई कर्मचारियों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए शहर में पांच पिंक सिटी स्कूल खोले गए थे। अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्रों में संचालित है। एक समय में शहर में ऐसे 21 स्कूल थे। जिनमें से आज महज पांच ही बचे हैं। आलम ये है कि इन स्कूलों में भी छात्रों के बैठने के लिए कुर्सी टेबल, पढ़ने के लिए ब्लैक बोर्ड, रोशनी के लिए बिजली, यहां तक कि पीने के लिए पानी तक उपलब्ध नहीं है।


Body:जयपुर नगर निगम की ओर से शहर के हवामहल पश्चिम में एक और हवामहल पूर्व में चार पिंक सिटी स्कूल संचालित हैं। जिनमें क्षेत्रीय अनुसूचित जाति, सफाई कर्मचारी और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के बच्चों को पढ़ाया जाता है। कहने को तो ये एक सराहनीय पहल है। लेकिन जब इन स्कूलों में झांक कर देखा जाता है तो ये पहल कलंक से कम नहीं लगती। यूं तो जयपुर नगर निगम शहर के विकास कार्य में करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है। लेकिन मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए 1956 में जिन स्कूलों को शुरू किया गया, उनकी हालत बद से बदतर है। हवामहल पश्चिम में माउंट रोड स्थित ऐसे ही एक पिंक सिटी स्कूल में ईटीवी भारत पहुंचा। समय सुबह 11:00 बजे का था, बावजूद इसके यहां एक भी छात्र नजर नहीं आया। जब कारण जानने के लिए पड़ताल की गई तो यहां की अव्यवस्थाओं की एक लंबी फेहरिस्त सामने आ गई। दरअसल, सर्दी का मौसम होने के चलते हैं खुद स्कूल के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी छात्रों को समय से पहले घर छोड़ आए थे। चूंकि स्कूल का समय सुबह 8:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक का है। ऐसे में छात्रों को समय से पहले घर छोड़े जाने को लेकर कई सवाल उठे। और इस सवाल के जवाब भी इसी स्कूल परिसर में मिल भी गए। यहां ना तो छात्रों के बैठने के लिए कुर्सी टेबल की व्यवस्था थी, यहां तक कि कमरों में किसी दरी पट्टी या फर्श तक की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। आलम ये था की ब्लैक बोर्ड के नाम पर दीवार पर पोता हुआ काले रंग का पेंट था, और पानी की व्यवस्था के नाम पर कर्मचारियों के घर से लाई हुई बाल्टी भर पानी। हालांकि साल 2008 में इस स्कूल का जीर्णोद्धार तत्कालीन महापौर और क्षेत्रीय विधायक की ओर से किया गया था। जिसकी शिलान्यास पट्टिका वहां आज भज लगी है। तब स्कूल परिसर में ट्यूबलाइट, पंखे, नल आदि की व्यवस्था जरूर की गई। लेकिन बिजली और पानी का कनेक्शन नहीं लिया गया। स्कूल के कर्मचारियों ने बताया कि स्कूल में 25 से 30 छात्र नियमित आते हैं। लेकिन सर्दी में जमीन पर बैठने और खाने की व्यवस्था भी बंद हो जाने के चलते इनकी संख्या भी कम होती जा रही है।


Conclusion:वर्तमान में निगम की ओर से 5 स्कूल संचालित हैं। लेकिन स्थिति सभी स्कूलों की खराब ही है। स्कूलों में इक्का दुक्का शिक्षकों को भी लगाया हुआ है। लेकिन अव्यवस्थाओं के आलम में यह शिक्षक भी छात्रों को उचित शिक्षा नहीं दे पा रहे। ऐसे में निगम की एक अच्छी पहल अब महज खानापूर्ति साबित हो रही है।
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