जयपुर. प्रदेश को भिक्षावृत्ति से मुक्त बनाने के लिए एक बार फिर अभियान का आगाज किया गया. पायलट प्रोजेक्ट के लिए राजधानी जयपुर को चुना गया. शहर की चारों दिशाओं के लिए चार टीमें बनाई गई. इस अभियान में बच्चों के हाथों में भीख के कटोरे की जगह कलम पकड़ाने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन 9 दिन के बाद जब ईटीवी भारत ने इस अभियान की पड़ताल की तो यह अभियान कागजों में सिमटा नजर आया.
7 सितंबर 2021 से गुलाबी नगरी जयपुर को भिक्षावृत्ति मुक्त बनाने के लिए अभियान शुरू हुआ. खास तौर पर बाल संरक्षण आयोग की ओर से बच्चों के हाथों में भीख मांगने के कटोरे की जगह कलम पकड़ाने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन यह लक्ष्य मानों कागजों तक ही रह गया हो. अभियान सिर्फ दो दिन ही चला उसके बाद अधिकारियों और कर्मचारी विधानसभा की ड्यूटी में लग गए.
अभियान को लेकर आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल से बात की उन्होंने कहा कि बच्चों को भिक्षावृत्ति से मुक्त कराने के लिए पहले फेज में जन जागरूकता अभियान चलाया गया और सर्वे किए गए कि कितने बच्चे हैं जो भिक्षावृत्ति का कार्य करते हैं. इसके साथ बच्चों के परिजनों से भी समझाइश की गई. उसके बाद दूसरे फेज में रेस्क्यू अभियान चलाया. अभियान में 150 परिवारों को रेस्क्यू किया गया जिसमें 30 बच्चे भी शामिल है. इनमें से कुछ बच्चों के परिजन को पाबंद किया गया है कि वो अपने बच्चों से भविष्य में भिक्षावृत्ति नहीं कराएंगे और उन्हें स्कूल भेजेंगे.
बाल आयोग की माने तो इस अभियान में रेस्क्यू होने वाले बच्चों का पुनर्वास होगा. उन्हें स्कूली शिक्षा से जोड़ा जाएगा. जो बच्चे अनाथ है, उन्हें सरकारी आवास में रखा जाएगा, जहां उनके रहने खाने की व्यवस्था के साथ ही शिक्षा भी उपलब्ध कराई जाएगी. हालांकि बाल आयोग के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन सामाजिक संगठनों को लगता है यह अभियान सिर्फ एक्टिविटी है, जो सरकार को हर साल करनी है.
सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल कहते हैं कि 9 दिन के अभियान में अब तक 30 बच्चों को रेस्क्यू किया गया है. क्या जयपुर में 30 ही बच्चे हैं जो भिक्षावृत्ति से जुड़े हुए है. पिछले दिनों जो सर्वे किया गया उसमे ही यह सामने आ गया है कि जयपुर में 2 हजार से 2,500 बच्चे हैं जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भिक्षावृत्ति जैसी दलदल में फंसे हुए है, लेकिन आयोग हो या सरकार सिर्फ इस अभियान को एक इवेंट के तौर पर करती है. जब तक बच्चों और उनके परिवारजनों के पुनर्वास की व्यवस्था नहीं होगी तब तक यह अभियान इसी तरह कागजों में चलते रहेंगे.
दरअसल सरकार की तरफ से हर साल इसी तरह के अभियान चलाए जाते हैं. वहीं दावे किए जाते हैं, लेकिन कुछ दिन बाद फिर ढाक के तीन पात. कुछ दिन बाद वही सड़कों पर भिक्षा मांगते बच्चे भी दिख जाते है और परिवार भी.
ऐसे में जरूरत है कि अभियान के साथ इन जरूरतमंदों की मूल समस्या पर भी काम किया जाए. यह देखा जाए की आखिर यह लोग क्यों भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर हैं. इनकी मूल समस्या पर काम किया जाए. इनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए. साथ ही बच्चों की शिक्षा के लिए जिम्मेदारों को पाबंद किया जाए. जब तक इस इच्छा शक्ति के साथ काम नहीं होगा तब तक यह अभियान सिर्फ और सिर्फ एक एक्टिविटी तक ही सीमित रहेंगे.