जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि कोरोना के इलाज के लिए चिन्हित किए गए निजी अस्पतालों को निर्देश दिए गए है कि वह मरीजों का निशुल्क उपचार करें. साथ ही उन्हें दूसरे अस्पताल में जाने के लिए बाध्य ना करें. ऐसा नहीं करने पर संबंधित अस्पताल पर कार्रवाई भी की जाएगी.
राज्य सरकार की ओर से पेश जवाब को रिकॉर्ड पर लेते हुए अदालत ने इस संबंध में शुचि की ओर से दायर जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है. राज्य सरकार की ओर से जवाब में कहा गया कि प्रदेश में चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार के लिए कुछ संस्थानों को रियायत दी गई है.
वहीं जानकारी मिली कि इनमें से कुछ अस्पताल कोरोना के उपचार के लिए आने वाले मरीजों को सरकारी और अन्य अस्पतालों में भेजने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीरता से लिया है.
ऐसे में सभी संबंधित अस्पतालों को इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं. जनहित याचिका में कहा गया था कि सरकार की ओर से रियायती दरों पर जमीन लेने के बावजूद कई अस्पताल कोरोना के मरीजों का इलाज नहीं कर रहे हैं. साथ ही उन्हें सरकारी अस्पतालों में भेज रहे हैं.
याचिकाकर्ताओं के एमएससी कृषि प्री पीजी का आवेदन स्वीकार करें- हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि वह याचिकाकर्ताओं के एमएससी कृषि प्री पीजी का आवेदन स्वीकार करें. न्यायाधीश पंकज भंडारी की एकलपीठ ने यह आदेश मोनिका कुमावत और अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए है.
याचिका में अधिवक्ता विज्ञान शाह ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता निजी विश्वविद्यालय से बीएससी कृषि डिग्री धारी है. राज्य सरकार ने उनके एमएससी कृषि प्रवेश परीक्षा के आवेदन यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया कि उन्होंने जिस विश्वविद्यालय से बीएससी की डिग्री ली है, वह आईसीएआर से मान्यता प्राप्त नहीं है.
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याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने आईसीएआर से मान्यता की शर्त इसी वर्ष लगाई है. बीएससी कृषि में राज्य सरकार की ओर से ही उन्हें विश्वविद्यालय आवंटन कर प्रवेश दिए गए थे. ऐसे में वर्ष 2020 से पूर्व बीएससी की डिग्री लेने वालों को अपात्र घोषित करना गलत है. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओं के आवेदन स्वीकार करने को कहा है.