जयपुर. परीक्षा में सफलता से लेकर शादी ब्याह, ग्रह शान्ति, सम्रद्धि और स्वास्थ्य को लेकर हिंदुओं का एक ही मुकाम होता है, देवता का दरबार. जहां चंद रुपयों के चढ़ावे में भी इष्टदेव से भरपूर आशीर्वाद और सुरक्षा की उम्मीद मिलती है. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते राजस्थान के अधिकांश मंदिर 6 महीने से ज्यादा लॉक रहे. ऐसे में मंदिरों की दान पेटी भी खाली हो गई. कोरोना से पहले इन मंदिरों में कई लाख चढ़ावा नगद और दान पात्र से होता था. लेकिन जैसे ही कोरोना काल का संकट गहराने लगा तो ईश्वर ने भी अपनी चौखट भक्तों के लिए बंद कर दी.
हालात यह हो गए कि, मंदिर में विराजे साक्षात भगवान खुद प्रसाद को तरस गए और हर तरह की सुरक्षा की गारंटी देने के बाद प्रतिफल के तौर पर ईश्वर को जो अपने भक्तों से दान पेटी में चढ़ावा मिलता था. उस चढ़ावे पर भी अघोषित रोक लग गई. राजस्थान में हर धर्म को मानने वाले लोग निवास करते हैं. उन सभी की एक ही मान्यता है कि, अगर बिगड़ी को बनानी है तो देवता के दर पर धोक लगानी होगी. चाह हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई या फिर किसी भी धर्म से जुड़े लोग हो सभी की एक ही मान्यता है कि आस्था की चौखट पर माथा टेकने से वो सब भी मिल जाता है, जिसकी उन्हें कोई उम्मीद भी न थी.
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भगवान के दर पर चढ़ावा भी ऐसा की 1 रुपए से लेकर 1 लाख तक अपनी श्रद्धा के अनुसार देवता के दर पर भेंट चढ़ाई और भरपूर आर्शीवाद ले गए, जिसमें सुख शांति, गृह शांति, शादी ब्याह सब कुछ देवता के दरबार में आसानी से सफल हो जाते हैं. लेकिन यह सब कुछ बड़ा आसान और सहज तब था, जब कोरोना ने विश्व पटल पर दस्तक नहीं दी थी.
मंदिरों की आर्थिक स्थिति पर कोरोना का अटैक
- देवस्थान विभाग में पंजीकृत मंदिरों की संख्या 59,414
- इनमें से राजस्थान में है 59,207 मंदिर
- वहीं 153 मंदिर प्रदेश के बाहरी राज्यों के शामिल
- इस साल सिर्फ 2 लाख 402 रुपए हुआ दान
- इस माह अब तक 29 हजार 534 रुपए ही हुआ ई-भुगतान
- जिसमें नकद और दान पेटी में 1 भी रुपया नहीं
- 1-1 रुपए को तरसे भगवान की चौखट के दानपत्र
देवस्थान की माने तो इस साल 59 हजार के करीब मंदिरों में सिर्फ 2 लाख के करीब दान आया. यह राशि महज 284 मंदिरों को मिली है. यानि 59 हजार से ज्यादा मंदिरों में भगवान खुद 1-1 रुपए को तरस गए. ऐसे में भक्त को करोड़ों रुपयों का भगवान से आशीर्वाद मिलना बेमानी सा लगता है. इसको लेकर आंकड़ों के जरिए स्पष्ट तौर पर देखा जाए तो सीधे तरीके से कहा जा सकता है कि, प्रदेश के मंदिरों के पास इस साल सिर्फ 2 लाख रुपये ही पहुंचा. जबकि राजस्थान की जनसंख्या 7 करोड़ से भी ज्यादा है. ऐसे में देवताओं से अनगिनत आशीर्वाद की अपेक्षा रखने वाले भक्तों को इष्टदेव बराबरी से देखें तो प्रतिव्यक्ति एक रुपये भी देने की स्थिति में नहीं है.
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बहरहाल, एक बात जरूर स्पष्ट हो गई कि कोरोना वायरस ने भौगोलिक और पारलौकिक दोनों ही व्यवस्थाओं को झकझोर कर रख दिया, जिस भगवान के दर पर आस्था रखकर भक्त अपने आपको महफूज समझते हैं. लेकिन उसकी चौखट भी कोरोना काल में बंद रही. हो सकता है इसके पीछे एक ही उद्देश्य हो कि, ईश्वर अपने भक्तों को सन्देश देना चाहते हों कि विपरीत परिस्थितियों में उनका दामन थापने के साथ साथ खुद की भी सुरक्षा की कोशिश करनी चाहिए. जो कि इस बार कोरोना संक्रमण से बचने के लिए हम कर भी रहे हैं.