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12 जुलाई: वर्चस्व की वो लड़ाई जिसमें पायलट गंवा बैठे डिप्टी CM और प्रदेशाध्यक्ष का पद, गहलोत ने ऐसे बचाया था किला

राजस्थान कांग्रेस (Rajasthan Congress) के इतिहास में 12 जुलाई हमेशा याद की जाएगी. दरअसल, सचित पायलट (Sachin Pilot) के एक मैसेज ने सालभर पहले इसी दिन राजस्थान कांग्रेस की राजनीति बदल दी थी. प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट ने बगावती तेवर दिखाते हुए इस दिन कहा था कि गहलोत सरकार (Ashok Gehlot) अल्पमत में है. राजस्थान में जुलाई 2020 में आए राजनीतिक भूचाल के बाद भले ही सचिन पायलट और उनके विधायकों की वापसी हो चुकी हो, लेकिन अब भी पायलट कैंप (Pilot Camp) को अपने मान-सम्मान की वापसी का इंतजार है.

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12 लाई 2020 को सचिन पायलट ने दिखाए थे बगावती तेवर
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Published : Jul 12, 2021, 11:47 AM IST

जयपुर. 12 जुलाई का दिन खास तौर पर राजस्थान कांग्रेस के लिए इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया है. दरअसल, 12 जुलाई के दिन ही बीते साल 2020 में राजस्थान कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व पर सवाल खड़े करते हुए ऐलान कर दिया था कि कांग्रेस और निर्दलीय 30 विधायक उनके साथ हैं और अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में है. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि 13 जुलाई 2020 को होने वाली विधायक दल की बैठक में वो शामिल नहीं होंगे.

सियासी जुलाई में वर्चस्व की लड़ाई, बगावत और अदावत की पूरी कहानी

12 जुलाई को सचिन पायलट के आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप पर आए इस मैसेज के बाद ही राजस्थान में कांग्रेस और अशोक गहलोत सरकार में जो हलचल हुई, उसके बाद एकबारगी लगा कि मध्यप्रदेश के बाद अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार भी गिर जाएगी. ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 12 जुलाई को कांग्रेस और अपने समर्थक विधायकों की फेयरमाउंट होटल में बाड़ाबंदी की. होटेल में शिफ्ट होने के बाद 33 दिनों तक विधायकों को बाड़ाबंदी में ही रखा गया. वहीं, सचिन पायलट ने 12 जुलाई 2020 को ही अपने समर्थक विधायकों को मानेसर बुला लिया था, जहां पायलट कैंप के विधायक 10 अगस्त तक रहे. आखिर में प्रियंका गांधी से समझौता होने के बाद सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक वापस लौट आए और कांग्रेस को समर्थन दिया.

पढ़ें: Special: कोटा में PWD से तेज निकली UIT, मेडिकल कॉलेज में तय समय में पूरा कर रहा तीन गुना काम

सचिन पायलट के बयान के बाद राजस्थान कांग्रेस की राजनीति हमेशा के लिए बदल गई. 12 जुलाई की दोपहर तक कांग्रेस के तत्कालीन प्रभारी अविनाश पांडे और कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला 13 जुलाई को होने वाली विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट को आने को लेकर आश्वस्त थे, लेकिन 12 जुलाई की शाम को जैसे ही सचिन का मैसेज आया, उसके बाद राजस्थान की राजनीति बदल गई. हर कोई सोच रहा था कि सचिन पायलट की बगावत के बाद अब राजस्थान में अशोक गहलोत की कुर्सी खतरे में है. लेकिन, इस बगावत का नुकसान तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को भी उठाना पड़ा. 14 जुलाई को राजस्थान कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाले सचिन पायलट को कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री के पद से हटा दिया.

पढ़ेंः गहलोत Vs पायलट: राजस्थान के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम का पूरा हाल, किसने क्या खोया, क्या पाया?

वहीं, सचिन पायलट की जो शिकायतें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेकर थी, उन शिकायतों के निस्तारण के लिए बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार 11 महीने से चल रहा है. सचिन पायलट के साथ बर्खास्त किए गए कैबिनेट मंत्री रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह को आज भी अपने पदों का इंतजार है. हालांकि, पायलट कैंप के कई विधायकों को कांग्रेस संगठन में पद जरूर दिए गए हैं. लेकिन उनके जो पद गए थे, वो एक साल बाद भी उन्हें नहीं मिल सके हैं. इस बीच अब सचिन पायलट ये साफ कर चुके हैं कि वो राजस्थान में अपने लिए कोई पद नहीं मांग रहे हैं, लेकिन वो अपने समर्थक विधायकों को पद दिलाने के लिए पूरे प्रयास में जुटे हुए हैं.

पढ़ें: आकाशीय बिजली ने गुलाबी नगरी को किया खून से लथपथ, 2000 फीट की ऊंचाई से रेस्क्यू ऑपरेशन का आंखों देखा हाल

अभी मुराद बाकी- 1 साल पहले सचिन पायलट ने आज ही के दिन 12 जुलाई 2020 को यह कहा था की अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में है. उसके बाद चले राजनीतिक घटनाक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को नकारा निकम्मा तक कह दिया था. बाद में प्रियंका गांधी ने सारे मामले में हस्तक्षेप किया तो पायलट कैम्प की कांग्रेस में वापसी तो हो गई, लेकिन उस समय जो वादे उनसे किए गए थे वो आज भी अधूरे हैं. हालांकि राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अजय माकन ने सचिन पायलट को पार्टी का असेट जरूर बताया लेकिन आज 1 साल पूरा होने के बाद भी सचिन पायलट के हाथ खाली हैं.

राजस्थान में जुलाई 2020 में आए राजनीतिक भूचाल के बाद भले ही सचिन पायलट और उनके विधायकों की वापसी हो चुकी हो, लेकिन अब भी पायलट कैंप को अपने मान-सम्मान की वापसी का इंतजार है. इसके लिए लगातार प्रयास भी हो रहे हैं, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद ना तो प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार हो पा रहा है और ना ही प्रदेश में अब तक पूरी राजनीतिक नियुक्तियां की जा सकी हैं. ऐसे में भले ही एक साल गुजर गया हो, लेकिन इसके बाद भी राजस्थान कांग्रेस के भीतर सियासी टकराव अभी जारी है.

जयपुर. 12 जुलाई का दिन खास तौर पर राजस्थान कांग्रेस के लिए इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया है. दरअसल, 12 जुलाई के दिन ही बीते साल 2020 में राजस्थान कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व पर सवाल खड़े करते हुए ऐलान कर दिया था कि कांग्रेस और निर्दलीय 30 विधायक उनके साथ हैं और अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में है. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि 13 जुलाई 2020 को होने वाली विधायक दल की बैठक में वो शामिल नहीं होंगे.

सियासी जुलाई में वर्चस्व की लड़ाई, बगावत और अदावत की पूरी कहानी

12 जुलाई को सचिन पायलट के आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप पर आए इस मैसेज के बाद ही राजस्थान में कांग्रेस और अशोक गहलोत सरकार में जो हलचल हुई, उसके बाद एकबारगी लगा कि मध्यप्रदेश के बाद अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार भी गिर जाएगी. ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 12 जुलाई को कांग्रेस और अपने समर्थक विधायकों की फेयरमाउंट होटल में बाड़ाबंदी की. होटेल में शिफ्ट होने के बाद 33 दिनों तक विधायकों को बाड़ाबंदी में ही रखा गया. वहीं, सचिन पायलट ने 12 जुलाई 2020 को ही अपने समर्थक विधायकों को मानेसर बुला लिया था, जहां पायलट कैंप के विधायक 10 अगस्त तक रहे. आखिर में प्रियंका गांधी से समझौता होने के बाद सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक वापस लौट आए और कांग्रेस को समर्थन दिया.

पढ़ें: Special: कोटा में PWD से तेज निकली UIT, मेडिकल कॉलेज में तय समय में पूरा कर रहा तीन गुना काम

सचिन पायलट के बयान के बाद राजस्थान कांग्रेस की राजनीति हमेशा के लिए बदल गई. 12 जुलाई की दोपहर तक कांग्रेस के तत्कालीन प्रभारी अविनाश पांडे और कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला 13 जुलाई को होने वाली विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट को आने को लेकर आश्वस्त थे, लेकिन 12 जुलाई की शाम को जैसे ही सचिन का मैसेज आया, उसके बाद राजस्थान की राजनीति बदल गई. हर कोई सोच रहा था कि सचिन पायलट की बगावत के बाद अब राजस्थान में अशोक गहलोत की कुर्सी खतरे में है. लेकिन, इस बगावत का नुकसान तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को भी उठाना पड़ा. 14 जुलाई को राजस्थान कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाले सचिन पायलट को कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री के पद से हटा दिया.

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वहीं, सचिन पायलट की जो शिकायतें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेकर थी, उन शिकायतों के निस्तारण के लिए बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार 11 महीने से चल रहा है. सचिन पायलट के साथ बर्खास्त किए गए कैबिनेट मंत्री रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह को आज भी अपने पदों का इंतजार है. हालांकि, पायलट कैंप के कई विधायकों को कांग्रेस संगठन में पद जरूर दिए गए हैं. लेकिन उनके जो पद गए थे, वो एक साल बाद भी उन्हें नहीं मिल सके हैं. इस बीच अब सचिन पायलट ये साफ कर चुके हैं कि वो राजस्थान में अपने लिए कोई पद नहीं मांग रहे हैं, लेकिन वो अपने समर्थक विधायकों को पद दिलाने के लिए पूरे प्रयास में जुटे हुए हैं.

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अभी मुराद बाकी- 1 साल पहले सचिन पायलट ने आज ही के दिन 12 जुलाई 2020 को यह कहा था की अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में है. उसके बाद चले राजनीतिक घटनाक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को नकारा निकम्मा तक कह दिया था. बाद में प्रियंका गांधी ने सारे मामले में हस्तक्षेप किया तो पायलट कैम्प की कांग्रेस में वापसी तो हो गई, लेकिन उस समय जो वादे उनसे किए गए थे वो आज भी अधूरे हैं. हालांकि राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अजय माकन ने सचिन पायलट को पार्टी का असेट जरूर बताया लेकिन आज 1 साल पूरा होने के बाद भी सचिन पायलट के हाथ खाली हैं.

राजस्थान में जुलाई 2020 में आए राजनीतिक भूचाल के बाद भले ही सचिन पायलट और उनके विधायकों की वापसी हो चुकी हो, लेकिन अब भी पायलट कैंप को अपने मान-सम्मान की वापसी का इंतजार है. इसके लिए लगातार प्रयास भी हो रहे हैं, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद ना तो प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार हो पा रहा है और ना ही प्रदेश में अब तक पूरी राजनीतिक नियुक्तियां की जा सकी हैं. ऐसे में भले ही एक साल गुजर गया हो, लेकिन इसके बाद भी राजस्थान कांग्रेस के भीतर सियासी टकराव अभी जारी है.

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