जयपुर. कोरोना संकट की दूसरी लहर से राजस्थान के गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. बीते दो महीने में हर गांव के कमोबेश हर घर में सर्दी, जुकाम और बुखार के मरीज मिले. कई गांवों में इन दो महीनों में इतनी मौतें हुई हैं. जितनी पहले पूरे साल में भी नहीं होती थी. ऐसे हालात में ईटीवी भारत ने गांवों में जाकर पड़ताल की तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. ऐसे ग्राम पंचायत मुख्यालय जहां उप स्वास्थ्य केंद्र हैं. वहां हालात ज्यादा विकट नजर आए. जबकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर सीमित संसाधन और स्टाफ के बावजूद कोरोना से लड़ाई में जीवटता नजर आई. उप स्वास्थ्य केंद्रों पर महज एक एएनएम तैनात रहती हैं. जबकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टर के साथ ही अन्य चिकित्साकर्मी भी लगाए जाते हैं.
कोरोना संकट की दूसरी लहर के बीच ईटीवी भारत की टीम चिकित्सा सुविधाओं और संसाधनों की पड़ताल करने जयपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में पहुंची तो चौंकाने वाले हालात सामने आए. हिरनोदा ग्राम पंचायत मुख्यालय पर स्थित उप स्वास्थ्य केंद्र पर ताला लटका मिला. कोरोना संक्रमण की बात करें तो हिरनोदा में फिलहाल करीब 20-22 लोग कोरोना संक्रमित हैं. ग्रामीण बताते हैं कि बीते दो महीने में हिरनोदा में करीब 20-25 लोगों की मौत भी हुई है. हालांकि, जांच नहीं होने से कहा नहीं जा सकता कि इन लोगों की मौत कोरोना संक्रमण के चलते हुई. ग्रामीण बताते हैं कि गांव के उप स्वास्थ्य केंद्र में दो पद रिक्त हैं. जबकि यहां तैनात एकमात्र एएनएम आमतौर पर ग्राम पंचायत मुख्यालय पर ही रहती है. लेकिन उनके बेटे की तबीयत खराब होने के चलते वह फिलहाल अपने घर गई हुई है.
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ग्रामीणों का यह भी कहना है कि कोई यदि कोरोना संक्रमित पाया जाता है तो उसे घर पर ही आइसोलेट किया जा रहा है और दवा का किट घर पर ही पहुंचाया जा रहा है. सरपंच का कहना है कि गांव में कोर कमेटी बनी हुई है. जो लोगों को जागरूक कर रही है और कोरोना के लक्षण पाए जाने पर जांच करवाने के लिए लोगों को प्रेरित कर रही है. किसी घर में कोरोना संक्रमित मरीज मिलने पर उस घर के आसपास कंटेंमेंट जोन बना दिया जाता है. ताकि अन्य लोगों तक संक्रमण नहीं फैले. इसके बाद ईटीवी भारत की टीम ढींढ़ा पहुंची. जहां चार गांवों की करीब 10 हजार की आबादी के लिए उप स्वास्थ्य केंद्र है. लेकिन यहां भी अस्पताल पर ताले लटके मिले.
ग्रामीणों ने बताया कि एएनएम करीब पांच महीने से कभी-कभार ही आती है. इसके चलते ग्राम पंचायत के चार गांवों में डोर टू डोर अभियान तो प्रभावित हुआ ही है. इसके साथ ही प्राथमिक उपचार के लिए भी करीब 15-20 किमी दूर कस्बों के अस्पताल जाना पड़ता है. उनका कहना है कि कोरोना काल में कोई गाड़ी वाला भी आसानी से मिलता नहीं है. कोई मरीज को ले जाने के लिए तैयार होता है तो मुंहमांगी कीमत देनी पड़ती है.कमोबेश यही हालात ढाणी बोराज के उप स्वास्थ्य केंद्र की दिखाई दी. यहां एक पुराने कमरे में अस्पताल चलता है. जिस पर भी ताला लटका दिखा.
ग्रामीण बताते हैं कि एएनएम वैसे तो मुख्यालय पर ही रहती है. लेकिन अभी किसी काम से कहीं गई हुई है.आमतौर पर उप स्वास्थ्य केंद्र पर केवल एक एएनएम की ही पोस्टिंग होती है. ऐसे में यदि एएनएम को जरूरी काम होने पर कहीं जाना पड़ता है तो अस्पताल पर ताला लटका रहता है.दूसरी तरफ बड़े गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होते हैं. उप स्वास्थ्य केंद्र इन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के अधीन आते हैं. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर के साथ ही अन्य स्टाफ भी तैनात रहता है. ऐसे में संसाधन और स्टाफ के लिहाज से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के हालात थोड़े ठीक दिखाई दिए.
बोबास गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के साथ आयुष डॉक्टर भी तैनात है. यहां के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी राजेंद्र हरितवाल बताते हैं कि पीएचसी में स्टाफ और संसाधन पूरे हैं. अभी तक सप्ताह में एक दिन सैंपल इकट्ठा कर जांच के लिए भिजवाए जा रहे थे. अब रेपिड एंटीजन टेस्ट किट मुहैया हो गया है. इससे कभी भी जांच कर कुछ समय बाद ही रिपोर्ट मिल जाएगी. उनका कहना है कि उनकी पीएचसी के अंतर्गत आने वाले उप स्वास्थ्य केंद्रों में से तीन पर स्टाफ की कमी है. एक एएनएम बीमार है. जबकि दो एएनएम की जयपुर ड्यूटी लगाई गई है. ऐसे में अरेंजमेंट कर काम चलाना पड़ रहा है. वे बताते हैं कि बोबास प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत आने वाले गांवों में पिछले सप्ताह में कोरोना संक्रमण का भयावह रूप देखने को मिला था, लेकिन इस सप्ताह में अब केसेज कम होने के साथ ही मौत के मामले भी थमे हैं.
बोबास पीएचसी के तहत आने वाले 20 गांवों में पिछले सप्ताह में कुल 78 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए थे. इन गांवों में कोरोना के कारण 12 लोगों की मौत हुई है. जबकि 23 अन्य लोगों की मौत भी इस दौर में हुई. वे बताते हैं कि पहले जब भी जांच होती थी तो अमूमन 50 फीसदी लोग संक्रमित मिल रहे थे. पिछले बुधवार जब जांच हुई तो केवल 3 ही लोग संक्रमित पाए गए. उनका कहना है कि अब गांव-गांव जाकर सैंपल लेने की कवायद शुरू की गई है. ताकि कोई भी मरीज छिपा हुआ नहीं रहे.
वहीं, बोराज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अब सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में क्रमोन्नत हो गया है. यहां स्टाफ की कमी नहीं है. लेकिन संसाधन की कमी यहां सामने आ रही है. इसके चलते यहां भी सप्ताह में एक ही दिन कोरोना जांच की जा रही है. बोराज सीएचसी के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी धर्मेंद्र कुमावत बताते हैं कि सीएचसी का आधा स्टाफ जयपुर कोविड सेंटर पर लगाया गया है. अब उनमें से कई कर्मचारियों को वापस यहां भी लगाया जा रहा है. लेकिन फिर भी यहां पर्याप्त स्टाफ है. जिससे कोविड प्रबंधन के कार्य प्रभावित नहीं हुए है. ईटीवी भारत की पड़ताल में यह सामने आया है कि उप स्वास्थ्य केंद्रों पर सीमित स्टाफ और सीमित संसाधन के कारण ग्रामीण इलाकों में कोरोना प्रबंधन का काम प्रभावित हुआ है.
वहीं, ग्रामीणों को उपचार के लिए कम से कम 15-20 किलोमीटर का सफर इस दौर में भी तय करना पड़ रहा है. जबकि, हालात गंभीर होने पर करीब 70-80 किमी का सफर तय कर जयपुर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है. क्योंकि सिटी स्कैन और एमआरआई जैसी जांचों की सुविधाएं कस्बों में बने सीएचसी तक पर भी नहीं मिल पा रही है. ग्रामीण इलाकों में कोरोना संक्रमण फैलने का सबसे बड़ा कारण जागरूकता का अभाव रहा है. ऐसे में जब से गांवों में कोर कमेटियां बनाकर लोगों को जांच करवाने, घर-घर दवा पहुंचाने और कोविड वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित करने का काम शुरू किया गया है. तब से गांवों में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर कमजोर हो रही है.