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नवजात की हत्या को लेकर 31 साल पहले मिली आजीवन कारावास को हाईकोर्ट ने किया रद्द

राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने नवजात शिशु की हत्या करने के आरोप में महिला को 31 साल पहले मिली आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया है. बता दें कि अपीलार्थी के ससुराल पक्ष के लोगों के बयानों के आधार पर टोंक की डीजे कोर्ट ने 6 जुलाई 1989 को अपीलार्थी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

राजस्थान हाईकोर्ट न्यूज,  Rajasthan High Court News
राजस्थान हाईकोर्ट
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Published : Jan 16, 2020, 8:14 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने नवजात शिशु की हत्या करने के आरोप में महिला को 31 साल पहले मिली आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया है. न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश प्रेम कंवर की ओर से दायर अपील पर सुनवाई करते हुए दिए.

पढ़ें- तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती : 41 हजार पदों में से अब तक खाली रहे पदों पर नियुक्ति के आदेश

अपील में कहा गया कि सन् 1986 में टोंक के पचेवर थाना पुलिस ने तालाब किनारे शिशु के शव मिलने की सूचना पर अपीलार्थी के खिलाफ मामला दर्ज किया था. वहीं अपीलार्थी के ससुराल पक्ष के लोगों के बयानों के आधार पर टोंक की डीजे कोर्ट ने 6 जुलाई 1989 को अपीलार्थी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

अपील में कहा गया कि ऐसी कोई चिकित्सीय साक्ष्य पेश नहीं की गई, जिससे साबित हो की तालाब किनारे मिला शव उसके नवजात का था. डीएनए पद्धति आने के बावजूद भी मामले में डीएनए जांच नहीं कराई गई. वहीं, पोस्टमार्टम में बच्चे की मौत डूबने से होना साबित हुआ. पुलिस ने भी शव मिलने के आधार पर ही रिपोर्ट दर्ज की थी, ऐसे में निचली अदालत की ओर से दी गई सजा को रद्द किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने सजा को रद्द कर दिया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने नवजात शिशु की हत्या करने के आरोप में महिला को 31 साल पहले मिली आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया है. न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश प्रेम कंवर की ओर से दायर अपील पर सुनवाई करते हुए दिए.

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अपील में कहा गया कि सन् 1986 में टोंक के पचेवर थाना पुलिस ने तालाब किनारे शिशु के शव मिलने की सूचना पर अपीलार्थी के खिलाफ मामला दर्ज किया था. वहीं अपीलार्थी के ससुराल पक्ष के लोगों के बयानों के आधार पर टोंक की डीजे कोर्ट ने 6 जुलाई 1989 को अपीलार्थी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

अपील में कहा गया कि ऐसी कोई चिकित्सीय साक्ष्य पेश नहीं की गई, जिससे साबित हो की तालाब किनारे मिला शव उसके नवजात का था. डीएनए पद्धति आने के बावजूद भी मामले में डीएनए जांच नहीं कराई गई. वहीं, पोस्टमार्टम में बच्चे की मौत डूबने से होना साबित हुआ. पुलिस ने भी शव मिलने के आधार पर ही रिपोर्ट दर्ज की थी, ऐसे में निचली अदालत की ओर से दी गई सजा को रद्द किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने सजा को रद्द कर दिया है.

Intro:जयपुर,। राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने नवजात शिशु की हत्या करने के आरोप में महिला को 31 साल पहले मिली आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया है। न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश प्रेम कंवर की ओर से दायर अपील पर सुनवाई करते हुए दिए।Body:अपील में कहा गया कि 1986 को टोंक के पचेवर थाना पुलिस ने तालाब किनारे शिशु का शव मिलने की सूचना पर अपीलार्थी के खिलाफ मामला दर्ज किया था। वहीं अपीलार्थी के ससुराल पक्ष के लोगों के बयानों के आधार पर टोंक की डीजे कोर्ट ने 6 जुलाई 1989 को अपीलार्थी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अपील में कहा गया कि ऐसी कोई चिकित्सीय साक्ष्य पेश नहीं की गई, जिससे साबित हो की तालाब किनारे मिला शव उसके नवजात का था। डीएनए पद्धति आने के बावजूद भी मामले में डीएनए जांच नहीं कराई गई। वहीं पोस्टमार्टम में बच्चे की मौत डूबने से होना साबित है। पुलिस ने भी शव मिलने के आधार पर ही रिपोर्ट दर्ज की थी। ऐसे में निचली अदालत की ओर से दी गई सजा को रद्द किया जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने सजा को रद्द कर दिया है।Conclusion:
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