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मुर्मू और धनखड़ को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने राजस्थान में आदिवासी-जाट समाज को साधा, लेकिन चर्चा ये भी...

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Published : Jul 19, 2022, 3:58 PM IST

मुर्मू और धनखड़ को प्रत्याशी बनाकर (NDA Candidates Murmu and Dhankar) भाजपा ने बड़ा सियासी दांव चला है. बात राजस्थान की करें दो यहां आदिवासी और जाट समाज को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. यहां समझिए पूरा समीकरण...

Draupadi Murmu and Jagdeep Dhankar
मुर्मू और धनखड़

जयपुर. मोदी सरकार ने राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति पर जाट समाज के जगदीप धनखड़ को प्रत्याशी बनाकर (Strategy of Rajasthan BJP) राजस्थान समेत कई राज्यों में सियासी समीकरण साधे हैं. मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं, लिहाजा राष्ट्रपति चुनाव में विजय होने के साथ ही भाजपा प्रदेश के आदिवासी अंचल में बड़े स्तर पर जीत की खुशी सेलिब्रेट करके इस समाज को पार्टी से जोड़ने का काम करेगी. वहीं, धनखड़ के जरिए राजस्थान के जाट समाज को एक बड़ा सियासी मैसेज देने का काम किया गया है.

जनजाति क्षेत्रों में पकड़ मजबूत कर जनाधार बढ़ाने की कोशिश : 21 जुलाई को राष्ट्रपति पद पर चुनाव का परिणाम सामने आ जाएगा, जिसमें एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के विजय होने पर भाजपा आदिवासी अंचलों में इस जीत को बड़े स्तर पर सेलिब्रेट करेगी. राजस्थान में डूंगरपुर, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा और उदयपुर के साथ ही चित्तौड़गढ़, पाली, सिरोही और राजसमंद जिले की कुछ तहसीलें भी जनजाति क्षेत्र में आती हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार इन जिलों के 5696 गांव में रहने वाली जनसंख्या का 70% आबादी आदिवासी जनजाति ही है. वहीं, पूरे राजस्थान की आबादी कि 13.48% जनसंख्या जनजाति समुदाय से आती है. द्रौपदी मुर्मू के विजय होने के बाद इन्हीं इलाकों में प्रदेश भाजपा का पूरा फोकस रहेगा और इस जीत को यहां के आदिवासियों में भुनाने की कोशिश भी रहेगी, ताकि आदिवासी और जनजाति समाज मजबूती से भाजपा के साथ जुड़ सके.

पढ़ें : Draupadi Murmu In Jaipur: जयपुर पहुंचीं द्रौपदी मुर्मू का आदिवासी संस्कृति के अनुरूप स्वागत...प्रबुद्ध जनों से संवाद के बाद दिल्ली रवाना

भारतीय ट्राइबल पार्टी की एंट्री से बिगड़े थे भाजपा के समीकरण : पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने आदिवासी इलाकों में एंट्री की और पहले ही चुनाव में 2 विधायक बीटीपी से जीतकर (BTP Effect in Rajasthan) विधानसभा तक पहुंच गए. उदयपुर संभाग में भाजपा का अच्छा प्रभाव माना जाता है, लेकिन वहां बीटीपी के उदय से जनजाति क्षेत्रों में भाजपा की जड़ें जरूर कमजोर हुई थीं. हालांकि, पिछले चुनाव में उदयपुर संभाग की अधिकतर सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा था, लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस ने पूर्वी राजस्थान में बीजेपी को धो डाला.

पूर्वी राजस्थान के अधिकतर सीटों पर जनजाति समाज का बाहुल्य है या फिर कहें चुनाव के बाद भाजपा की पकड़ आदिवासी और जनजाति समाज से थोड़ी कम हो गई थी, जिसे मजबूत करने के लिए राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू की जीत को आधार बनाकर भुनाने की तैयारी है. पार्टी चाहती है कि आदिवासी वोटर बीटीपी या कांग्रेस की तरफ न जाकर वापस भाजपा से ही जुड़े और द्रौपदी मुर्मू के जरिए न केवल राजस्थान, बल्कि मध्य प्रदेश, गुजरात और झारखंड जैसे राज्यों में भी यही संदेश दिया गया है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में अगले साल चुनाव हैं, जबकि गुजरात के चुनाव कुछ ही महीनों बाद होने हैं.

धनखड़ के जरिए जाट समुदाय को जोड़ने की कवायद : आबादी की दृष्टि से राजस्थान में जाट समाज काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसे में राजस्थान से ही आने वाले जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी बनाकर मोदी सरकार और भाजपा ने इस समाज को अपने और नजदीक लाने का प्रयास तो किया ही है, साथ ही प्रदेश के उन 50 सीटों पर भी भाजपा की पकड़ मजबूत होगी, जो जाट बाहुल्य मानी जाती है. प्रदेश में हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर, चूरू, झुंझुनू, नागौर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, बाड़मेर, सीकर, जोधपुर और भरतपुर ऐसे जिले हैं, जहां पर जाटों की आबादी बहुत अधिक है.

पढ़ें : कभी गहलोत से नाराज होकर छोड़ी थी कांग्रेस, आज धनखड़ को लेकर सीएम बोले यह विचारधारा की जंग

क्या अब सीएम के चेहरों की दौड़ से जाट नेता हुए बाहर ? : जगदीप धनखड़ राजस्थान से ही आते हैं और जाट समाज का एक बड़ा चेहरा हैं. भाजपा और मोदी सरकार ने जब उपराष्ट्रपति पद के लिए उन्हें उम्मीदवार बनाया तो उनकी जीत भी निश्चित है. ऐसे में राजस्थान के सियासी गलियारों में एक नई चर्चा और शुरू हो गई. वो यह कि क्या अब भाजपा में अगले मुख्यमंत्री के चेहरों की दौड़ में जाट समाज के नेता बाहर हो गए. यह चर्चा बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच आम हो रही है और इसके पीछे तर्क भी कई दिए जा रहे हैं.

जिसमें सबसे बड़ा तर्क ही यही है कि जब जाट समाज से राजस्थान से आने वाले (Vice Presidential NDA Candidate Jagdeep Dhankar) एक नेता को उपराष्ट्रपति जैसे बड़े पद पर विराजमान कर दिया जाएगा तो दूसरा बड़ा पद तो अन्य समाज और जातियों के नेताओं को देना पार्टी की मजबूरी होगी. हालांकि, यह सब सियासी कयास ही हैं, क्योंकि पार्टी में किस पद पर किस समाज से जुड़े व्यक्ति को बैठाया जाए, यह सब पार्टी आलाकमान के स्तर पर समय और मौजूदा परिस्थितियों के समीकरण के आधार पर ही तय होता है.

जयपुर. मोदी सरकार ने राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति पर जाट समाज के जगदीप धनखड़ को प्रत्याशी बनाकर (Strategy of Rajasthan BJP) राजस्थान समेत कई राज्यों में सियासी समीकरण साधे हैं. मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं, लिहाजा राष्ट्रपति चुनाव में विजय होने के साथ ही भाजपा प्रदेश के आदिवासी अंचल में बड़े स्तर पर जीत की खुशी सेलिब्रेट करके इस समाज को पार्टी से जोड़ने का काम करेगी. वहीं, धनखड़ के जरिए राजस्थान के जाट समाज को एक बड़ा सियासी मैसेज देने का काम किया गया है.

जनजाति क्षेत्रों में पकड़ मजबूत कर जनाधार बढ़ाने की कोशिश : 21 जुलाई को राष्ट्रपति पद पर चुनाव का परिणाम सामने आ जाएगा, जिसमें एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के विजय होने पर भाजपा आदिवासी अंचलों में इस जीत को बड़े स्तर पर सेलिब्रेट करेगी. राजस्थान में डूंगरपुर, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा और उदयपुर के साथ ही चित्तौड़गढ़, पाली, सिरोही और राजसमंद जिले की कुछ तहसीलें भी जनजाति क्षेत्र में आती हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार इन जिलों के 5696 गांव में रहने वाली जनसंख्या का 70% आबादी आदिवासी जनजाति ही है. वहीं, पूरे राजस्थान की आबादी कि 13.48% जनसंख्या जनजाति समुदाय से आती है. द्रौपदी मुर्मू के विजय होने के बाद इन्हीं इलाकों में प्रदेश भाजपा का पूरा फोकस रहेगा और इस जीत को यहां के आदिवासियों में भुनाने की कोशिश भी रहेगी, ताकि आदिवासी और जनजाति समाज मजबूती से भाजपा के साथ जुड़ सके.

पढ़ें : Draupadi Murmu In Jaipur: जयपुर पहुंचीं द्रौपदी मुर्मू का आदिवासी संस्कृति के अनुरूप स्वागत...प्रबुद्ध जनों से संवाद के बाद दिल्ली रवाना

भारतीय ट्राइबल पार्टी की एंट्री से बिगड़े थे भाजपा के समीकरण : पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने आदिवासी इलाकों में एंट्री की और पहले ही चुनाव में 2 विधायक बीटीपी से जीतकर (BTP Effect in Rajasthan) विधानसभा तक पहुंच गए. उदयपुर संभाग में भाजपा का अच्छा प्रभाव माना जाता है, लेकिन वहां बीटीपी के उदय से जनजाति क्षेत्रों में भाजपा की जड़ें जरूर कमजोर हुई थीं. हालांकि, पिछले चुनाव में उदयपुर संभाग की अधिकतर सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा था, लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस ने पूर्वी राजस्थान में बीजेपी को धो डाला.

पूर्वी राजस्थान के अधिकतर सीटों पर जनजाति समाज का बाहुल्य है या फिर कहें चुनाव के बाद भाजपा की पकड़ आदिवासी और जनजाति समाज से थोड़ी कम हो गई थी, जिसे मजबूत करने के लिए राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू की जीत को आधार बनाकर भुनाने की तैयारी है. पार्टी चाहती है कि आदिवासी वोटर बीटीपी या कांग्रेस की तरफ न जाकर वापस भाजपा से ही जुड़े और द्रौपदी मुर्मू के जरिए न केवल राजस्थान, बल्कि मध्य प्रदेश, गुजरात और झारखंड जैसे राज्यों में भी यही संदेश दिया गया है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में अगले साल चुनाव हैं, जबकि गुजरात के चुनाव कुछ ही महीनों बाद होने हैं.

धनखड़ के जरिए जाट समुदाय को जोड़ने की कवायद : आबादी की दृष्टि से राजस्थान में जाट समाज काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसे में राजस्थान से ही आने वाले जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी बनाकर मोदी सरकार और भाजपा ने इस समाज को अपने और नजदीक लाने का प्रयास तो किया ही है, साथ ही प्रदेश के उन 50 सीटों पर भी भाजपा की पकड़ मजबूत होगी, जो जाट बाहुल्य मानी जाती है. प्रदेश में हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर, चूरू, झुंझुनू, नागौर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, बाड़मेर, सीकर, जोधपुर और भरतपुर ऐसे जिले हैं, जहां पर जाटों की आबादी बहुत अधिक है.

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क्या अब सीएम के चेहरों की दौड़ से जाट नेता हुए बाहर ? : जगदीप धनखड़ राजस्थान से ही आते हैं और जाट समाज का एक बड़ा चेहरा हैं. भाजपा और मोदी सरकार ने जब उपराष्ट्रपति पद के लिए उन्हें उम्मीदवार बनाया तो उनकी जीत भी निश्चित है. ऐसे में राजस्थान के सियासी गलियारों में एक नई चर्चा और शुरू हो गई. वो यह कि क्या अब भाजपा में अगले मुख्यमंत्री के चेहरों की दौड़ में जाट समाज के नेता बाहर हो गए. यह चर्चा बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच आम हो रही है और इसके पीछे तर्क भी कई दिए जा रहे हैं.

जिसमें सबसे बड़ा तर्क ही यही है कि जब जाट समाज से राजस्थान से आने वाले (Vice Presidential NDA Candidate Jagdeep Dhankar) एक नेता को उपराष्ट्रपति जैसे बड़े पद पर विराजमान कर दिया जाएगा तो दूसरा बड़ा पद तो अन्य समाज और जातियों के नेताओं को देना पार्टी की मजबूरी होगी. हालांकि, यह सब सियासी कयास ही हैं, क्योंकि पार्टी में किस पद पर किस समाज से जुड़े व्यक्ति को बैठाया जाए, यह सब पार्टी आलाकमान के स्तर पर समय और मौजूदा परिस्थितियों के समीकरण के आधार पर ही तय होता है.

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