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भारतीय वांग्मय और दर्शन पर 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, राज्यपाल ने किया उद्घाटन

जयपुर में शुक्रवार को भारतीय वांग्मय और दर्शन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी कार्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा, शांति शिक्षा, योग शिक्षा, शिक्षा मनोविज्ञान, जीवन मूल्य, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया, शिक्षक शिक्षा, शारीरिक और योग शिक्षा सहित भारतीय वांग्मय के दर्शन पर चर्चा की गई.

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भारतीय वांग्मय और दर्शन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
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Published : Feb 28, 2020, 5:29 PM IST

जयपुर. शहर के अग्रसेन कॉलेज और केशव विद्यापीठ जामडोली में शुक्रवार को भारतीय वांग्मय और दर्शन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. वहीं राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम का उद्घाटन राज्यपाल कलराज मिश्र ने किया.

भारतीय वांग्मय और दर्शन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

उद्घाटन सत्र को राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर जेपी सिंघल ने संबोधित किया. पहले दिन दो पूर्ण सत्र और एक तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया. जिसमें देशभर के विश्वविद्यालयों से प्रोफेसर, शिक्षक और शोधार्थियों ने भाग लिया.

संगोष्ठी कार्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा, शांति शिक्षा, योग शिक्षा, शिक्षा मनोविज्ञान, जीवन मूल्य, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया, शिक्षक शिक्षा, शारीरिक और योग शिक्षा सहित भारतीय वाड्मय के दर्शन पर चर्चा की गई.

पढ़ेंः SPECIAL: सांप्रदायिक सौहार्द्र की अनूठी मिसाल बागोरिया देवी मंदिर, 13 पीढ़ियों से मुस्लिम परिवार कर रहा सेवा

भारतीय वांग्मय पर दो दिवसीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि सबका केंद्र भाव धर्म ही है. अर्थ, काम और मोक्ष का नियंत्रण बिंदु भी धर्म ही है. राज्यपाल ने कहा कि शास्त्र लगातार पढ़ना चाहिए. हर बार नई जानकारी इसमें मिलेगी. योग की शुरुआत भारत के ऋषि मुनियों ने ही की थी. आज पूरी दुनिया योग के रास्ते पर चल रही है.

वसुधैव कुटुंबकम भारतीय संस्कृति में समाहित है. सर्वे भवंतु, सर्वे सुखन्तु का भाव शास्त्र और साहित्य में मौजूद है. उन्होंने कहा कि भारत साहित्यिक रूप से संपन्न है. भारतीय वांग्मय सर्वत्र भाव लिए हुए है. यही वजह है कि शून्य और दशमलव की खोज भारत में ही हुई.

पढ़ेंः स्पेशल: बच्चे आसानी से साइंस को समझ सकें इसके लिए कोटा के भाई-बहन बना रहे मॉडल, शुरू किया स्टार्टअप

राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर जेपी सिंघल ने बताया कि इस संगोष्ठी का मकसद भारतीय दर्शन के पठन-पाठन के प्रति जागरूकता लाना है. राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभिन्न विषयों पर सत्रों का आयोजन किया जा रहा है. विभिन्न विषयों में वेदों, पुराणों ऋचाओं, साहित्य और सांस्कृतिक वैभव पर बातचीत की जा रही है. साथ ही दर्शन से जुड़े सवालों का जवाब भी इसमें विशेषज्ञ देंगे.

जयपुर. शहर के अग्रसेन कॉलेज और केशव विद्यापीठ जामडोली में शुक्रवार को भारतीय वांग्मय और दर्शन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. वहीं राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम का उद्घाटन राज्यपाल कलराज मिश्र ने किया.

भारतीय वांग्मय और दर्शन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

उद्घाटन सत्र को राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर जेपी सिंघल ने संबोधित किया. पहले दिन दो पूर्ण सत्र और एक तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया. जिसमें देशभर के विश्वविद्यालयों से प्रोफेसर, शिक्षक और शोधार्थियों ने भाग लिया.

संगोष्ठी कार्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा, शांति शिक्षा, योग शिक्षा, शिक्षा मनोविज्ञान, जीवन मूल्य, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया, शिक्षक शिक्षा, शारीरिक और योग शिक्षा सहित भारतीय वाड्मय के दर्शन पर चर्चा की गई.

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भारतीय वांग्मय पर दो दिवसीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि सबका केंद्र भाव धर्म ही है. अर्थ, काम और मोक्ष का नियंत्रण बिंदु भी धर्म ही है. राज्यपाल ने कहा कि शास्त्र लगातार पढ़ना चाहिए. हर बार नई जानकारी इसमें मिलेगी. योग की शुरुआत भारत के ऋषि मुनियों ने ही की थी. आज पूरी दुनिया योग के रास्ते पर चल रही है.

वसुधैव कुटुंबकम भारतीय संस्कृति में समाहित है. सर्वे भवंतु, सर्वे सुखन्तु का भाव शास्त्र और साहित्य में मौजूद है. उन्होंने कहा कि भारत साहित्यिक रूप से संपन्न है. भारतीय वांग्मय सर्वत्र भाव लिए हुए है. यही वजह है कि शून्य और दशमलव की खोज भारत में ही हुई.

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राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर जेपी सिंघल ने बताया कि इस संगोष्ठी का मकसद भारतीय दर्शन के पठन-पाठन के प्रति जागरूकता लाना है. राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभिन्न विषयों पर सत्रों का आयोजन किया जा रहा है. विभिन्न विषयों में वेदों, पुराणों ऋचाओं, साहित्य और सांस्कृतिक वैभव पर बातचीत की जा रही है. साथ ही दर्शन से जुड़े सवालों का जवाब भी इसमें विशेषज्ञ देंगे.

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