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मदर्स डे स्पेशल: फर्ज की चुनौतियों के बीच कलेजे के टुकड़े को संभाल रही इन मांओं को सलाम - Mothers Day Special

कोरोना संकट की इस घड़ी में कई माताएं ऐसी हैं, जो कोरोना वॉरियर्स की भूमिका निभा रही हैं. ऐसी ही माताओं से ईटीवी भारत ने मदर्स-डे पर बात की और जाना कि इस समय वे अपनी दोहरी जिम्मेदारी को किस तरह निभा रही हैं. देखिए स्पेशल स्टोरी...

mothers working as police, Mothers Day in Corona
मदर्स डे स्पेशल स्टोरी
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Published : May 10, 2020, 6:23 PM IST

मैंने जन्नत तो नहीं देखी है, मां देखी है..

चलती फिरती आंखों से अज़ां देखी है,

जोधपुर. प्रसिद्ध कवि मुनव्वर राणा की ये पंक्तियां मां की महिमा को सही रूप में चरितार्थ करती है. 'मां' ये शब्द भले ही छोटा हो, लेकिन इसकी विशालता इतनी है कि पूरा ब्रह्मांड समा जाए. हर रिश्ता किसी न किसी स्वार्थ से जुड़ा होता है, लेकिन वो मां ही होती है जो सिर्फ प्यार लुटाना जानती है, और वो भी बिना किसी स्वार्थ के. जब-जब त्याग और बलिदान की बात आती है, मां का चेहरा ही सबसे पहले उभरता है. फिर मां चाहे किसी भी रूप में आ जाए.

ममता और ड्यूटी दोनों की जिम्मेदारी

'मां' केवल शब्द नहीं, ये त्याग और वात्सल्य की वो छांव है, जिसका गुणगान आदिकाल से होता रहा है. इस एक शब्द में हजार पिताओं का त्याग समाहित है. मां एक योद्धा भी है तो वीरता की वो निशानी भी, जिसने हर समय में अपनी अमिट छाप छोड़ी है. समय जरूर बदला, लेकिन कुछ नहीं बदला तो वो है सिर्फ 'मां'. मां के वात्सल्य में ना केवल मंजिलें मिलती हैं, बल्कि जीवन जीने का स्वाभिमान भी मिलता है.

mothers working as police, Mothers Day in Corona
बच्चे से वीडियो कॉल के जरिए बात करती महिला पुलिसकर्मी

ये भी पढ़ें- मदर्स डे स्पेशल: मां बन 'दक्षा' इन बच्चों के जीवन में घोल रही मिठास, खिलखिला रहा बचपन

मदर्स-डे की बात आते ही, मां का कोमल चेहरा हमारे जहन में उभरकर आ जाता है. आदिशक्ति का रूप मां जीवन के साथ ही कर्तव्य पथ पर भी अपनी सटीक भूमिका निभाती दिखाई दे रही हैं. कोरोना संकट की इस घड़ी में कई माताएं ऐसी हैं, जो कोरोना वॉरियर्स की भूमिका निभा रही हैं.

ऐसी ही माताओं से ईटीवी भारत ने मदर्स-डे पर बात की और जाना कि इस समय वे अपनी दोहरी जिम्मेदारी को किस तरह निभा रही हैं. ईटीवी भारत को पुलिस कांस्टेबल सुशीला ने बताया कि जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से वे अपने घर से दूर हैं.

mothers working as police, Mothers Day in Corona
बच्चे के साथ मां और पिता

उनकी बेटी और पति गांव में हैं और वे कर्फ्यू इलाके में अपनी ड्यूटी दे रही हैं. सुशीला बताती हैं कि वे अपने घरवालों से वीडियो कॉल पर ही बात कर पा रही है. उनका कहना है कि सैनिटाइजेशन और हेल्थ एडवाइजरी के चलते उन्होंने खुद को अपने बच्चों से दूर किया है, जो एक मां को भावनात्मक रूप से परेशान करता है.

ऐसी ही महिला पुलिस कांस्टेबल अणसी का कहना है कि कोरोना के संकट काल में वे दोहरी जिम्मेदारी निभा रही है. ड्यूटी करने के बाद जब वो घर जाती है, तो उन्हें चुपके से घर के अंदर प्रवेश करना पड़ता है. उनसे बच्चे को संक्रमण ना हो इस लिए वो नहाने के बाद ही अपने 2 साल के बच्चे के पास जाती है.

mothers working as police, Mothers Day in Corona
ड्यूटी पर तैनात महिला पुलिसकर्मी

ये भी पढ़ें- मदर्स डे स्पेशल: वात्सल्य की छांव में बह रही ज्ञान की 'गंगा', मां निभा रही दोहरा फर्ज

जोधपुर में ऐसे ही एक दंपत्ति जो पुलिस में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और उनकी 8 महीने की बच्ची भी है. कांस्टेबल सुनीता ने बताया कि वो और उनके पति दोनों लोग पुलिस में हैं. उनके पति की ड्यूटी सुबह 8 बजे से 2 बजे तक होती है, तो उनकी ड्यूटी दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक होती है. ऐसे में दोनों लोग बच्ची का अलग-अलग समय में ध्यान रखते हैं.

सुनीता का कहना है कि ड्यूटी से आने के बाद वह अपनी बच्ची को गोद में नहीं ले सकती, क्योंकि बच्ची छोटी है और उसमें संक्रमण न फैले जिसके चलते घर जाकर नहाने के बाद ही वो अपने बच्ची को गोद में लेती है. महिला कांस्टेबल ने कहा कि सभी लोगों को जिम्मेदार नागरिक बनने के साथ-साथ राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए. संकट के इस समय में पुलिस सिर्फ आम जनता को घरों में रखने के लिए ही तैनात है.

मैंने जन्नत तो नहीं देखी है, मां देखी है..

चलती फिरती आंखों से अज़ां देखी है,

जोधपुर. प्रसिद्ध कवि मुनव्वर राणा की ये पंक्तियां मां की महिमा को सही रूप में चरितार्थ करती है. 'मां' ये शब्द भले ही छोटा हो, लेकिन इसकी विशालता इतनी है कि पूरा ब्रह्मांड समा जाए. हर रिश्ता किसी न किसी स्वार्थ से जुड़ा होता है, लेकिन वो मां ही होती है जो सिर्फ प्यार लुटाना जानती है, और वो भी बिना किसी स्वार्थ के. जब-जब त्याग और बलिदान की बात आती है, मां का चेहरा ही सबसे पहले उभरता है. फिर मां चाहे किसी भी रूप में आ जाए.

ममता और ड्यूटी दोनों की जिम्मेदारी

'मां' केवल शब्द नहीं, ये त्याग और वात्सल्य की वो छांव है, जिसका गुणगान आदिकाल से होता रहा है. इस एक शब्द में हजार पिताओं का त्याग समाहित है. मां एक योद्धा भी है तो वीरता की वो निशानी भी, जिसने हर समय में अपनी अमिट छाप छोड़ी है. समय जरूर बदला, लेकिन कुछ नहीं बदला तो वो है सिर्फ 'मां'. मां के वात्सल्य में ना केवल मंजिलें मिलती हैं, बल्कि जीवन जीने का स्वाभिमान भी मिलता है.

mothers working as police, Mothers Day in Corona
बच्चे से वीडियो कॉल के जरिए बात करती महिला पुलिसकर्मी

ये भी पढ़ें- मदर्स डे स्पेशल: मां बन 'दक्षा' इन बच्चों के जीवन में घोल रही मिठास, खिलखिला रहा बचपन

मदर्स-डे की बात आते ही, मां का कोमल चेहरा हमारे जहन में उभरकर आ जाता है. आदिशक्ति का रूप मां जीवन के साथ ही कर्तव्य पथ पर भी अपनी सटीक भूमिका निभाती दिखाई दे रही हैं. कोरोना संकट की इस घड़ी में कई माताएं ऐसी हैं, जो कोरोना वॉरियर्स की भूमिका निभा रही हैं.

ऐसी ही माताओं से ईटीवी भारत ने मदर्स-डे पर बात की और जाना कि इस समय वे अपनी दोहरी जिम्मेदारी को किस तरह निभा रही हैं. ईटीवी भारत को पुलिस कांस्टेबल सुशीला ने बताया कि जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से वे अपने घर से दूर हैं.

mothers working as police, Mothers Day in Corona
बच्चे के साथ मां और पिता

उनकी बेटी और पति गांव में हैं और वे कर्फ्यू इलाके में अपनी ड्यूटी दे रही हैं. सुशीला बताती हैं कि वे अपने घरवालों से वीडियो कॉल पर ही बात कर पा रही है. उनका कहना है कि सैनिटाइजेशन और हेल्थ एडवाइजरी के चलते उन्होंने खुद को अपने बच्चों से दूर किया है, जो एक मां को भावनात्मक रूप से परेशान करता है.

ऐसी ही महिला पुलिस कांस्टेबल अणसी का कहना है कि कोरोना के संकट काल में वे दोहरी जिम्मेदारी निभा रही है. ड्यूटी करने के बाद जब वो घर जाती है, तो उन्हें चुपके से घर के अंदर प्रवेश करना पड़ता है. उनसे बच्चे को संक्रमण ना हो इस लिए वो नहाने के बाद ही अपने 2 साल के बच्चे के पास जाती है.

mothers working as police, Mothers Day in Corona
ड्यूटी पर तैनात महिला पुलिसकर्मी

ये भी पढ़ें- मदर्स डे स्पेशल: वात्सल्य की छांव में बह रही ज्ञान की 'गंगा', मां निभा रही दोहरा फर्ज

जोधपुर में ऐसे ही एक दंपत्ति जो पुलिस में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और उनकी 8 महीने की बच्ची भी है. कांस्टेबल सुनीता ने बताया कि वो और उनके पति दोनों लोग पुलिस में हैं. उनके पति की ड्यूटी सुबह 8 बजे से 2 बजे तक होती है, तो उनकी ड्यूटी दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक होती है. ऐसे में दोनों लोग बच्ची का अलग-अलग समय में ध्यान रखते हैं.

सुनीता का कहना है कि ड्यूटी से आने के बाद वह अपनी बच्ची को गोद में नहीं ले सकती, क्योंकि बच्ची छोटी है और उसमें संक्रमण न फैले जिसके चलते घर जाकर नहाने के बाद ही वो अपने बच्ची को गोद में लेती है. महिला कांस्टेबल ने कहा कि सभी लोगों को जिम्मेदार नागरिक बनने के साथ-साथ राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए. संकट के इस समय में पुलिस सिर्फ आम जनता को घरों में रखने के लिए ही तैनात है.

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