जयपुर. प्रदेश में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए राजस्थान ACB लगातार भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई कर रही है. चाहे वो प्रशासनिक स्तर का बड़ा अफसर हो या न्याय की कुर्सी पर बैठा कोई न्यायाधीश. गत वर्षों में ऐसे कई बड़े मामले रहे जिनमें ACB ने भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को रंगे हाथों गिरफ्तार किया.
लेकिन अफसोस है कि ऐसे भ्रष्ट अफसरों की जांच पूरी होने पर विभाग की ओर से दी जाने वाले अभियोजन स्वीकृति समय पर नहीं दी जाती है. जिसके चलते जांच एजेंसी कोर्ट में चालान पेश नहीं कर पाती है. प्रदेश में ऐसे करीब 250 से अधिक मामले सिर्फ इसी लिए पेंडिग चल रहे है, जिनमें संबंधित विभाग से चार्ज शीट पेश करने के लिए अनुमति नहीं दी गई.
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आय से अधिक संपत्ति का मामला हो या फिर काम के बदले मांगी जाने वाली रिश्वत का. इन सभी मामलों पर कारवाई के लिए देश के हर राज्य में एंटी करप्शन ब्यूरो यानी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का गठन किया गया है. ये विभाग भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई करता है. राजस्थान की ACB ने भी पिछले कुछ सालों में कई बड़े अफसरों को रंगे हाथों रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया. भ्रष्ट्राचारियों पर कार्रवाई कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भी पहुंचाया.
लेकिन ACB का मनोबल उस वक्त टूट जाता है जब उन्हें न्यायालय में चालान पेश करने के लिए संबंधित विभाग से अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलती. ऐसे में भ्रष्ट कमर्चारी और अधिकारी ना केवल जेल से रिहा हो जाते है. बल्कि, जिस कुर्सी पर बैठ कर वो करप्शन का ताना बाना बुनते हैं वहीं, फिर लौट कर नौकरी ज्वाइन कर लेते हैं.
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दरअसल, किसी भी भ्रष्ट कमर्चारी और अधिकारी को रंगे हाथों गिरफ्तार करने के बाद ACB को न्यायालय में चालान पेश करना होता है. लेकिन ACB चालान पेश नहीं कर पा रही हैं. क्योंकि P.C. Act की धारा 19 के तहत सरकार से न्यायालय में चालान पेश करने के लिए लिखित में अनुमति लेनी पड़ती है. लेकिन विभाग की ओर से अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने पर न्यायालय में चालान पेश नहीं हो पाता है और भ्रष्टाचारी बच जाता है.
अभियोजन स्वीकृति के इस काम में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सरकारों में एक जैसा हाल रहा है. 90 फीसदी मामले भाजपा सरकार के समय के है और अब एक साल से कांग्रेस की सरकार है. लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में अभियोजन स्वीकृति ना ही बीजेपी सरकार में मिली और ना ही अब कांग्रेस सरकार में.