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प्रदेश में 100 से अधिक सामाजिक संगठनों ने CM गहलोत को लिखा पत्र, ये है वजह...

100 से अधिक सामाजिक संगठनों ने प्रदेश में फैल रही भुखमरी और इस पर सरकार की चुप्पी को लेकर नाराजगी जताते हुए सीएम अशोक गहलोत को खुला पत्र लिखा है. इन सभी सामाजिक संगठनों ने 10 मई को निकाले गए ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के परिपत्र की ओर सरकार का ध्यान दिलाया और इसे अपर्याप्त बताया. साथ ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून से वंचित लोगों के लिए कोविड कालीन राशन कार्ड बनाए जाने की मांग की.

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सीएम गहलोत को पत्र
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Published : Jun 8, 2021, 9:32 PM IST

जयपुर. सामाजिक संगठनों ने पत्र के जरिए बताया कि 100 से अधिक संगठन प्रदेश में बढ़ती भुखमरी से परेशान हैं. संगठनों ने सरकार का ध्यान ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के 10 मई के परिपत्र की ओर दिलाया. उन्होंने कहा, परिपत्र में गरीब, निराश्रित, असहाय और दिहाड़ी मजदूरों के COVID- 19 के संबंध में खाद्य सुरक्षा के लिए आवंटित राशि का उल्लेख है, जो अपर्याप्त है. उन्होंने मांग किया कि जितने भी लोग खाद्य सुरक्षा कानून (NFSA) के अंतर्गत नहीं आते हैं. उन्हें लाभ देने के लिए परिपत्र में स्वीकृत राशि ऊंट के मुह में जीरे के सामान है.

परिपत्र में हर विधायक कोष से 25 लाख रुपए राशि मुख्यमंत्री राहत कोष में हस्तांतरित होने हैं, जो की 200 विधायक के हिसाब से 50 करोड़ राशि पूरे राजस्थान के लिए बनती है. यदि 500 रुपए राशि प्रति परिवार को राशन उपलब्ध कराया जाए (10 kg आटा, 1 किलो तेल, एक किलो दाल, नमक और मसाले) 10 लाख परिवार को एक हफ्ते का ही खाद्यान्न मिल पाएगा. पत्र में बताया गया, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा (2013) कानून के तहत प्रदेश की 65 फीसदी जनसंख्या ही लाभार्थी हो सकती है. साल 2011 के अनुसार राजस्थान की 4.47 करोड़ जनसंख्या ही पात्र है. साल 2020 के अनुमानित जनसंख्या के हिसाब से प्रदेश की 65 प्रतिशत जनसंख्या 5.25 करोड़ हो गई है. यानी करीब 16 लाख परिवारों के 79 लाख लोग खाद्य सुरक्षा सूची से बाहर हैं. ऐसे भी परिवार हैं, जो 15 महीनों के लॉकडाउन और आय के कारण गरीब हो गए हैं.

यह भी पढ़ें: जल संरक्षण की क्षमता का आंकलन कर वर्षा जल का अधिकतम संचय करें: मुख्य सचिव

मध्यम वर्ग के लोग और गरीब हुए हैं, जिसका आंकड़ा बहुत अधिक है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के तहत देश के 97 प्रतिशत लोगों की आय, पिछले 15 महीनो में घटी है और कम से कम 1 करोड़ लोग की नौकरी गई है. राजस्थान में वैसे ही बेरोजगारी दर 27.6 प्रतिशत है और हर तीन में से एक व्यक्ति बेरोजगार है. इसका मतलब सस्ता राशन से वंचित परिवारों का आंकड़ा 79 लाख लोगों से भी अधिक होगा. पत्र के जरिेए सामाजिक संगठनों ने बताया, जब 10 करोड़ मीट्रिक टन अनाज एफसीआई के भंडारों में हैं, तब लोगों को भुखमरी क्यों सहनी पड़ रही है? अर्थशास्त्रियों का कहना है, बफर स्टॉक अलग करने के बाद, जितना भण्डारण अनाज का अभी एफसीआई गोदामों में है, उससे 9 महीने तक 90 करोड़ लाभार्थियों को पर्याप्त अनाज मिल सकता है.

यह भी पढ़ें: मानदेय बढ़ाने सहित अन्य मांगों को लेकर JTO हड़ताल पर

उच्चतम न्यायालय के 13 और 24 मई को भारत सरकार और सभी राज्यों को आदेश दिया कि वे सभी प्रवासी मजदूरों को राशन दें. उन्होंने भारत सरकार को आत्मनिर्भर भारत में साल 2020 को आवंटित बकाया अनाज बांटने को कहा और राज्यों को बोला वे चाहे कोई योजना बनाएं, लेकिन प्रवासी मजदूरों को राशन दें. दस्तावेजों की अनिवार्यता को खत्म करते हुए कहा, जिन प्रवासी मजदूरों के पास दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें स्वतः प्रमाणित कर राशन दिया जाए. सभी जगह सामुदायिक रसोई स्थापित कर पका-पकाया भोजन भी दें. राजस्थान में अभी तक स्वत: प्रमाण का कोई भी आर्डर नहीं निकला है, न प्रवासी मजदूरों को किसी प्रकार के योजना के तहत अनाज मिला है.

यह भी पढ़ें: SPECIAL : एडवोकेट दंपती की सेवा को सलाम...सवा साल से घर में खाना बनाकर टूव्हीलर से जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे भोजन

सामाजिक संगठनों की निम्न मांगे हैं

  • कोविड संकट अगले कई महीनों तक चलने वाला है, सरकार अभी एक कोविड कालीन राशन कार्ड (CERC) तत्काल जारी करे, दिल्ली में इस प्रकार की व्यवस्था है.
  • हर कोविड कालीन राशन कार्ड (CERC) कार्ड धारक को 10 किलो अनाज, दाल और तेल दिया जाए. बिना दस्तावेज स्वत: प्रमाण के जरिए राशन इन श्रेणी के लोगों को दिए जाए.
  • कोविड कालीन राशन कार्ड में राज्य में रहने वाले पेंशन योजना के सभी लाभार्थी परिवार, पालनहार के लाभार्थी, आंगनबाड़ी केन्द्रों द्वारा चिन्हित कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चे, विशेष विकलांगता कार्ड धारक (UDID Card) सिलिकोसिस पीड़ितों को जोड़ा जाए.
  • इसके अलावा राज्य में गांव और बस्ती में रहने वाले बेघर व अन्य गरीब परिवारों, राज्य के अंदर (अंतर जिला) और राज्य के बाहर (अंतर राज्य) के प्रवासी मजदूरों, औद्योगिक और असंगठित मजदूरों, घुमन्तु, अर्ध घुमन्तु जातियों, पीएम स्वनिधि योजना के लाभार्थी, पथ विक्रेता (street vendors), ट्रांसजेंडर और यौन कर्मी (सेक्स वर्कर्स), पाकिस्तान, बर्मा, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के शरणार्थी को भी कोविड राशन कालीन कार्ड में शामिल किया जाए.

जयपुर. सामाजिक संगठनों ने पत्र के जरिए बताया कि 100 से अधिक संगठन प्रदेश में बढ़ती भुखमरी से परेशान हैं. संगठनों ने सरकार का ध्यान ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के 10 मई के परिपत्र की ओर दिलाया. उन्होंने कहा, परिपत्र में गरीब, निराश्रित, असहाय और दिहाड़ी मजदूरों के COVID- 19 के संबंध में खाद्य सुरक्षा के लिए आवंटित राशि का उल्लेख है, जो अपर्याप्त है. उन्होंने मांग किया कि जितने भी लोग खाद्य सुरक्षा कानून (NFSA) के अंतर्गत नहीं आते हैं. उन्हें लाभ देने के लिए परिपत्र में स्वीकृत राशि ऊंट के मुह में जीरे के सामान है.

परिपत्र में हर विधायक कोष से 25 लाख रुपए राशि मुख्यमंत्री राहत कोष में हस्तांतरित होने हैं, जो की 200 विधायक के हिसाब से 50 करोड़ राशि पूरे राजस्थान के लिए बनती है. यदि 500 रुपए राशि प्रति परिवार को राशन उपलब्ध कराया जाए (10 kg आटा, 1 किलो तेल, एक किलो दाल, नमक और मसाले) 10 लाख परिवार को एक हफ्ते का ही खाद्यान्न मिल पाएगा. पत्र में बताया गया, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा (2013) कानून के तहत प्रदेश की 65 फीसदी जनसंख्या ही लाभार्थी हो सकती है. साल 2011 के अनुसार राजस्थान की 4.47 करोड़ जनसंख्या ही पात्र है. साल 2020 के अनुमानित जनसंख्या के हिसाब से प्रदेश की 65 प्रतिशत जनसंख्या 5.25 करोड़ हो गई है. यानी करीब 16 लाख परिवारों के 79 लाख लोग खाद्य सुरक्षा सूची से बाहर हैं. ऐसे भी परिवार हैं, जो 15 महीनों के लॉकडाउन और आय के कारण गरीब हो गए हैं.

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मध्यम वर्ग के लोग और गरीब हुए हैं, जिसका आंकड़ा बहुत अधिक है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के तहत देश के 97 प्रतिशत लोगों की आय, पिछले 15 महीनो में घटी है और कम से कम 1 करोड़ लोग की नौकरी गई है. राजस्थान में वैसे ही बेरोजगारी दर 27.6 प्रतिशत है और हर तीन में से एक व्यक्ति बेरोजगार है. इसका मतलब सस्ता राशन से वंचित परिवारों का आंकड़ा 79 लाख लोगों से भी अधिक होगा. पत्र के जरिेए सामाजिक संगठनों ने बताया, जब 10 करोड़ मीट्रिक टन अनाज एफसीआई के भंडारों में हैं, तब लोगों को भुखमरी क्यों सहनी पड़ रही है? अर्थशास्त्रियों का कहना है, बफर स्टॉक अलग करने के बाद, जितना भण्डारण अनाज का अभी एफसीआई गोदामों में है, उससे 9 महीने तक 90 करोड़ लाभार्थियों को पर्याप्त अनाज मिल सकता है.

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उच्चतम न्यायालय के 13 और 24 मई को भारत सरकार और सभी राज्यों को आदेश दिया कि वे सभी प्रवासी मजदूरों को राशन दें. उन्होंने भारत सरकार को आत्मनिर्भर भारत में साल 2020 को आवंटित बकाया अनाज बांटने को कहा और राज्यों को बोला वे चाहे कोई योजना बनाएं, लेकिन प्रवासी मजदूरों को राशन दें. दस्तावेजों की अनिवार्यता को खत्म करते हुए कहा, जिन प्रवासी मजदूरों के पास दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें स्वतः प्रमाणित कर राशन दिया जाए. सभी जगह सामुदायिक रसोई स्थापित कर पका-पकाया भोजन भी दें. राजस्थान में अभी तक स्वत: प्रमाण का कोई भी आर्डर नहीं निकला है, न प्रवासी मजदूरों को किसी प्रकार के योजना के तहत अनाज मिला है.

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सामाजिक संगठनों की निम्न मांगे हैं

  • कोविड संकट अगले कई महीनों तक चलने वाला है, सरकार अभी एक कोविड कालीन राशन कार्ड (CERC) तत्काल जारी करे, दिल्ली में इस प्रकार की व्यवस्था है.
  • हर कोविड कालीन राशन कार्ड (CERC) कार्ड धारक को 10 किलो अनाज, दाल और तेल दिया जाए. बिना दस्तावेज स्वत: प्रमाण के जरिए राशन इन श्रेणी के लोगों को दिए जाए.
  • कोविड कालीन राशन कार्ड में राज्य में रहने वाले पेंशन योजना के सभी लाभार्थी परिवार, पालनहार के लाभार्थी, आंगनबाड़ी केन्द्रों द्वारा चिन्हित कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चे, विशेष विकलांगता कार्ड धारक (UDID Card) सिलिकोसिस पीड़ितों को जोड़ा जाए.
  • इसके अलावा राज्य में गांव और बस्ती में रहने वाले बेघर व अन्य गरीब परिवारों, राज्य के अंदर (अंतर जिला) और राज्य के बाहर (अंतर राज्य) के प्रवासी मजदूरों, औद्योगिक और असंगठित मजदूरों, घुमन्तु, अर्ध घुमन्तु जातियों, पीएम स्वनिधि योजना के लाभार्थी, पथ विक्रेता (street vendors), ट्रांसजेंडर और यौन कर्मी (सेक्स वर्कर्स), पाकिस्तान, बर्मा, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के शरणार्थी को भी कोविड राशन कालीन कार्ड में शामिल किया जाए.
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