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दूध योजना का तलाशा जा रहा विकल्प ताकि बच्चों को मिल सके पौष्टिक तत्व : मंत्री डोटासरा - अन्नपूर्णा दूध योजना

अन्नपूर्णा दूध योजना खटाई में पड़ती दिख रही है. अब इसका दूसरा विकल्प भी तलाशा जाने लगा है. इसका कारण बजट का अभाव और दूध योजना में मैन पावर का ज्यादा लगना है. सरकारी स्कूलों में दूध का बजट नहीं मिलने से पिछले 8 दिनों से दूध की नियमित सप्लाई नहीं हो रही है. मामले पर शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि योजना को एक दम से बंद नहीं किया जा सकता. साथ ही इसका दूसरा विकल्प तलाशा जा रहा है. ताकि बच्चों को पौष्टिक तत्व मिल सके.

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Published : Aug 7, 2019, 9:34 PM IST

जयपुर. प्रदेश में सबसे पहले कक्षा 1 से 8 के स्कूली बच्चों के लिए दूध योजना की शुरुआत 2 जुलाई 2018 को 66 हजारों स्कूलों में हुई. इस योजना की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने बच्चों के बीच पहुंचकर दूध पिलाकर की थी. प्रदेश के 44 लाख बच्चे दूध योजना से लाभांवित होते है, जिसमें 1 से 5 तक बच्चों को 150 ग्राम और 6 से 8 तक के बच्चों को 200 ग्राम दूध मिलता है. लेकिन अब ये योजना सरकार बदलने के साथ ही दम तोड़ती दिख रही है बच्चों की सेहत बनाने के नाम से शुरू हुई यह योजना, अब महंगे होते दूध से बजट का अभाव, शिक्षकों का योजना के प्रति विरोध से योजना खटाई में पड़ रही है.

शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने अन्नपूर्णा दूध योजना को लेकर कही ये बात

यूं तो सरकार बदलने के साथ ही कई योजनाएं खटाई में पड़ गई और बंद तक हो गई. स्कूली बच्चों के लिए शुरू हुई दूध योजना अभी तक चल रही है. लेकिन अब मौजूदा सरकार ने इसके विकल्प तलाशने शुरू कर दिए है. शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा की मानें तो दूध की जगह दूसरे पौष्टिक आहार का विकल्प देखा जा रहा है. ताकि बच्चे को तंदुरुस्त रखा जा सके.

यह भी पढ़ेंः परकोटे के बाजारों की पहचान बनाने वाले बरामदे बहा रहे बदहाली के आंसू, निगम प्रशासन पर अनदेखी का आरोप

सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने की कवायद में मिड-डे-मील योजना शुरू हुई. उसके बाद स्कूल तक पहुंचने में पहुंचे बच्चों को तंदुरुस्त रखने के लिए दूध योजना की शुरुआत हुई. लेकिन अब लगता है सरकार बदलने और बजट की मारामारी बच्चों के हाथों से दूध छीन सकता है.

जयपुर. प्रदेश में सबसे पहले कक्षा 1 से 8 के स्कूली बच्चों के लिए दूध योजना की शुरुआत 2 जुलाई 2018 को 66 हजारों स्कूलों में हुई. इस योजना की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने बच्चों के बीच पहुंचकर दूध पिलाकर की थी. प्रदेश के 44 लाख बच्चे दूध योजना से लाभांवित होते है, जिसमें 1 से 5 तक बच्चों को 150 ग्राम और 6 से 8 तक के बच्चों को 200 ग्राम दूध मिलता है. लेकिन अब ये योजना सरकार बदलने के साथ ही दम तोड़ती दिख रही है बच्चों की सेहत बनाने के नाम से शुरू हुई यह योजना, अब महंगे होते दूध से बजट का अभाव, शिक्षकों का योजना के प्रति विरोध से योजना खटाई में पड़ रही है.

शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने अन्नपूर्णा दूध योजना को लेकर कही ये बात

यूं तो सरकार बदलने के साथ ही कई योजनाएं खटाई में पड़ गई और बंद तक हो गई. स्कूली बच्चों के लिए शुरू हुई दूध योजना अभी तक चल रही है. लेकिन अब मौजूदा सरकार ने इसके विकल्प तलाशने शुरू कर दिए है. शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा की मानें तो दूध की जगह दूसरे पौष्टिक आहार का विकल्प देखा जा रहा है. ताकि बच्चे को तंदुरुस्त रखा जा सके.

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सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने की कवायद में मिड-डे-मील योजना शुरू हुई. उसके बाद स्कूल तक पहुंचने में पहुंचे बच्चों को तंदुरुस्त रखने के लिए दूध योजना की शुरुआत हुई. लेकिन अब लगता है सरकार बदलने और बजट की मारामारी बच्चों के हाथों से दूध छीन सकता है.

Intro:जयपुर- अन्नपूर्णा दूध योजना खटाई में पड़ती दिख रही है, तो वही अब इसका दूसरा विकल्प भी तलाशा जाने लगा है। इसका कारण बजट का अभाव और दूध योजना में मैन पावर का ज्यादा लगना है। सरकारी स्कूलों में दूध का बजट नहीं मिलने से पिछले आठ दिनों से दूध की नियमित सप्लाई नहीं हो रही है। इस मामले पर शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि योजना को एक दम से बंद नहीं किया जा सकता साथ ही इसका दूसरा विकल्प तलाशा जा रहा है ताकि बच्चों को पोष्टिक तत्व मिल सके।


Body:राजस्थान प्रदेश में सबसे पहले कक्षा 1 से 8 के स्कूली बच्चों के लिए दूध योजना की शुरुआत 2 जुलाई 2018 को 66 हजारों स्कूलों में हुई। इस योजना की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने बच्चों के बीच पहुंचकर दूध पिलाकर की थी। प्रदेश के 44 लाख बच्चे दूध योजना से लाभांवित होते है, जिसमें 1 से 5 तक बच्चों को 150 ग्राम और 6 से 8 तक के बच्चों को 200 ग्राम दूध मिलता है। लेकिन अब ये योजना सरकार बदलने के साथ ही दम तोड़ती दिख रही है। बच्चों की सेहत बनाने के नाम से शुरू हुई यह योजना, अब महंगे होते दूध से बजट का अभाव, शिक्षकों का योजना के प्रति विरोध से योजना खटाई में पड़ रही है।

यूं तो सरकार बदलने के साथ ही कई योजनाएं खटाई में पड़ गयी और बंद तक हो गई। स्कूली बच्चों के लिए शुरू हुई दूध योजना अभी तक चल रही है, लेकिन अब मौजूदा सरकार ने इसके विकल्प तलाशने शुरू कर दिए है। शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा की मानें तो दूध की जगह दूसरे पौष्टिक आहार का विकल्प देखा जा रहा है ताकि बच्चे को तंदुरुस्त रखा जा सके।


Conclusion:सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने की कवायद में मिड डे मील योजना शुरू हुई और उसके बाद स्कूल तक पहुंचने में पहुंचे बच्चों को तंदुरुस्त रखने के लिए दूध योजना की शुरुआत हुई, लेकिन अब लगता है सरकार बदलने और बजट की मारामारी बच्चों के हाथों से दूध छीन सकता है।

बाईट- शशि भूषण शर्मा, शिक्षक
बाईट- भवंर सिंह भाटी, उच्च शिक्षा मंत्री
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