जयपुर. विवाह, पुरुष और स्त्री के बीच जन्म जन्मांतर का बंधन माना जाता है, लेकिन आधुनिकता के इस युग में कहीं विचारों के मतभेद के चलते तो कहीं आर्थिक स्वतंत्रता और ईगो के कारण यह बंधन टूटने लगा है.
केस नंबर- 1
जयपुर के पूर्व राजपरिवार की सदस्य दीया कुमारी और नरेंद्र सिंह ने वर्ष 1997 में परिवार और समाज के विरोध के बावजूद प्रेम विवाह किया, लेकिन विवाह के 21 साल बाद दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया. ऐसे में दोनों ने आपसी सहमति से पारिवारिक अदालत में संयुक्त प्रार्थना पत्र पेश कर तलाक ले लिया.
केस नंबर- 2
भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में टॉप कर चर्चा में आने वाली टीना डाबी और इसी परीक्षा में दूसरे स्थान पर आए अतहर आमिर खान प्रशिक्षण के दौरान एक-दूसरे के नजदीक आए. दोनों ने साल 2018 में विवाह कर लिया, लेकिन दोनों अधिकारियों की यह जोड़ी अधिक समय तक साथ नहीं रख सकी. कुछ महीने पहले ही दोनों ने फैमिली कोर्ट में आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए अर्जी पेश कर दी.
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तलाक के ये मामले ऐसे हैं, जिन्हें देखकर यह नहीं कहा जा सकता की ऐसे कपल के बीच आर्थिक कारण या सास-ससुर से अनबन के चलते आपस में विवाद हुआ हो, लेकिन फिर भी इन्होंने अपने संबंधों को समाप्त करने का निर्णय ले लिया. इस संबंध में कानून के जानकारों का कहना है की इन दिनों आपसी सहमति से तलाक लेने के मामले काफी बढ़ रहे हैं, इसका सबसे बड़ा कारण एकल परिवार में रहना है.
संयुक्त परिवार में पति-पत्नी के बीच अनबन होने पर दूसरे परिजन विवाद को शुरुआत में ही समाप्त करवा देते थे, लेकिन एकल परिवार के चलते एक बार झगड़ा होने पर वह लंबा चलता है. इसके अलावा दोनों के संबंधों के बीच ईगो की भावना भी आ जाती है. इसके अलावा आर्थिक आजादी की चाह भी काफी बढ़ गई है, जिसके कारण दंपती अलग हो रहे हैं.
एक साल में ही हो गए 400 से अधिक तलाक
फैमिली कोर्ट के आंकड़ों को देखा जाए तो बीते साल करीब 600 से अधिक तलाक की अर्जियां पेश हुईं थीं. वहीं, शहर की तीन पारिवारिक अदालतों ने 400 से अधिक मामलों में तलाक की डिक्री जारी की. इनमें बड़ी संख्या उन लोगों की है, जिन्होंने शादी के तीन साल के भीतर तलाक मांगा.
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काउंसलिंग से मिलती है मदद
ऐसा नहीं है कि फैमिली कोर्ट सीधे ही तलाक की डिक्री जारी कर देती हो. शुरुआत में कोर्ट केस में करीब 6 महीने की तारीख देकर कोशिश करती है की दोनों पक्षों को अपने इस निर्णय पर सोचने का मौका मिले. कई मामलों में काउंसलर नियुक्त कर दोनों पक्षों की समझाइश कराई जाती है, इसके बाद भी अगर पति-पत्नी तलाक चाहते हैं तो विवाह विच्छेद की डिक्री जारी की जाती है.
8 हजार से अधिक मामले लंबित
पारिवारिक न्यायालयों के सूत्रों के अनुसार शहर में कार्यरत तीन फैमिली कोर्ट्स में तलाक और भरण पोषण सहित अन्य वैवाहिक मुद्दों को लेकर 8 हजार से अधिक मामले लंबित चल रहे हैं, जिसका निपटारा किया जाना अभी बाकी है. ऐसे में इन आंकड़ों से साफ नजर आ रहा है कि अहंकार की अग्नि में जन्मों जन्मांतर की डोर जलती नजर आ रही है.