जयपुर. देश में पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की बढ़ी कीमतों के चलते पहले से महंगाई से त्रस्त जनता, बेरोजगारी के बाद पैक्ड खाद्य पदार्थों पर लगाई गई 5% जीएसटी से परेशान है. जब आम जनता किसी मुद्दे पर परेशान होती है तो वह हमेशा विपक्ष की ओर देखती है कि विपक्ष (GST on Packaged Food) उनकी आवाज को सड़क से सदन तक उठाएगा और सरकार तक जनता की आवाज पहुंचाएगा. लेकिन देश का प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस तो जनता की आवाज बनने की बजाय खुद अपनी पार्टी से जुड़े मुद्दों से जूझ रहा है.
यही कारण है कि जब भी जनता से जुड़ा मुद्दा सामने आता है, उसी समय खुद कांग्रेस पार्टी का कोई ऐसा मुद्दा खड़ा हो जाता है कि जनता के लिए लड़ने की प्लानिंग बनाने के बावजूद उस प्लानिंग पर इंप्लीमेंट करने में कांग्रेस पार्टी नाकाम हो जाती है. चाहे कोरोना की पहली लहर के समय मध्यप्रदेश और राजस्थान में सरकार बचाने की जुगत में जनता को छोड़ सत्ताधारी दल कांग्रेस के मुख्यमंत्री समेत मंत्री, विधायकों की बाड़ेबंदी में जाना हो, किसान आंदोलन के समय पंजाब में सरकार को लेकर उठापटक हुई हो, अग्नीपथ मुद्दे के समय राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ हुई हो, खाद्य पदार्थों पर लगी 5% जीएसटी के समय कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया जाना हो या फिर अब लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी का राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर दिया गया 28 जुलाई का बयान. इन सभी मामलों के समय कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता एक साथ दो लड़ाई लड़ रहा था और यही कारण था कि जनता के मुद्दे कांग्रेस बेहतर तरीके से नहीं उठा सकी. इसलिए सवाल भी खड़े होते हैं, लेकिन इन सवालों का जवाब कांग्रेस के पास होता नहीं है.
ये मिले कांग्रेस को जनता से जुड़े मुद्दे, लेकिन कांग्रेस हर बात अपनी ही समस्याओं में रह गई उलझ कर :
कोरोना की पहली लहर, लेकिन राजस्थान-मध्यप्रदेश में सरकार बचाने की कोशिश ने कांग्रेस को किया डिस्टर्ब : देश में साल 2020 अगर किसी कारण से जाना जाएगा तो वह पूरे विश्व में फैले कोरोना वायरस के चलते, लेकिन कांग्रेस पार्टी में साल 2020 को राजस्थान और मध्य प्रदेश में आए सियासी तूफान के लिए भी जाना जाएगा. कोरोना लॉकडाउन के बीच जहां जनता घरों में बंद थी, मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार की और पूरे देश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मदद की आवश्यकता आम जनता को थी, लेकिन उसी समय कांग्रेस में बगावत हो गई और मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिर गई. इसके चलते न तो सरकार के तौर पर मध्यप्रदेश में वह जनता को राहत दे सकी और न ही विपक्ष के तौर पर पूरे देश में.
क्योंकि कांग्रेस कार्यकर्ता मध्यप्रदेश में अपनी जाती हुई सरकार को देख रहा था तो इसके ठीक बाद जुलाई महीने में राजस्थान में भी सियासी उथल-पुथल का माहौल बना और कोरोना से आर्थिक संकट झेल रही जनता को राहत देने की जगह राजस्थान में सरकार अपने मंत्री, विधायकों के साथ 34 दिन के लिए होटल में बंद हो गई. जो कांग्रेस इस समय जनता के लिए राहत देने की बात (Congress Strategy on Public Issues) कर रही थी वही कांग्रेस कार्यकर्ता राजस्थान में सरकार बचाने की जुगत में जुट गया. यही कारण था कि कांग्रेस जनता के मुद्दों को छोड़ अपने सियासी संकटों को साधने में लग गई.
किसान आंदोलन चरम पर था और कांग्रेस पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को हटाने में लगाती रही समय और एनर्जी : देश में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अगर कोई सबसे बड़ा आंदोलन हुआ तो वह था किसान आंदोलन, जो 1 साल 4 महीने और 2 दिन तक चला. इस आंदोलन ने जहां पूरे देश को रोक कर रख दिया तो देश का सबसे बड़ा वोटर किसान मोदी सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया. कांग्रेस भी इस आंदोलन में किसानों के साथ खड़ी रही. पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों ने किसान विरोधी कहे जाने वाले केंद्र सरकार के तीनों बिलों पर विधानसभा से रोक लगाकर किसानों का साथ देने का प्रयास भी किया, लेकिन जब यह किसान आंदोलन अपने पूरे पीक पर था तो कांग्रेस पार्टी पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को पद से हटाने में व्यस्त थी. करीब 3 महीने तक यह पूरा घटनाक्रम चला, जिसके चलते किसान आंदोलन में सक्रियता दिखाने के बावजूद कांग्रेस किसानों का साथ पाने से महरूम रह गई और पंजाब में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा.
अग्निपथ स्कीम के विरोध पर भारी पड़ा राहुल को ईडी के बुलाए जाने का मुद्दा : इसी साल जब केंद्र सरकार सेना भर्ती के लिए अग्निपथ योजना जैसी स्कीम लेकर आई तो इसका युवाओं ने विरोध किया. कांग्रेस पार्टी भी युवाओं के समर्थन में सड़कों पर उतरी. कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने का प्रयास जनता के बीच इस योजना की खामियां गिनाकर करने के लिए योजना बना रही थी और पूरे देश में इसके लिए धरने-प्रदर्शन की प्लानिंग भी हो गई थी. लेकिन इससे पहले कि इस मुद्दे को कांग्रेस उठा पाती राहुल गांधी को मिले (Sonia Gandhi ED questioning) ईडी के नोटिस ने कांग्रेस की प्लानिंग पर पानी फेर दिया. अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को ईडी में बुलाए जाने के चलते 'अग्नीपथ' का मुद्दा कहीं पीछे रह गया और कांग्रेस कार्यकर्ता दिल्ली समेत पूरे देश में राहुल गांधी को बार-बार ईडी दफ्तर बुलाए जाने का विरोध सड़कों पर करता हुआ दिखाई दिया.
पैक्ड खाद्य प्रदार्थों पर 5% लगी GST और कांग्रेस इस जनता के मुद्दे की जगह सोनिया गांधी को ईडी के बुलावे के चलते हुई फिर डायवर्ट : देश में इधर केंद्र सरकार की ओर से जब पैक्ड खाद्य पदार्थों आटा, दाल जैसी कई वस्तुओं पर 5% जीएसटी लगाया तो इससे महंगाई से पहले से त्रस्त जनता को साथ लेने का कांग्रेस को एक और मौका मिला, लेकिन इस बार भी सोनिया गांधी को ईडी की ओर से मिले पूछताछ के नोटिस के चलते कांग्रेस का आंदोलन प्रभावित हो गया. कांग्रेस का नेता और कार्यकर्ता सड़कों पर महंगाई की जगह सोनिया गांधी को ईडी की ओर से बार-बार परेशान करने के मुद्दे पर प्रदर्शन करता दिखाई दिया.
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सोनिया गांधी की ईडी से पूछताछ समाप्त हुई तो कांग्रेस महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन में जुटी तो अधीर रंजन चौधरी के बयान ने कांग्रेस के मुद्दे को किया डायवर्ट : सोनिया गांधी को ईडी की पूछताछ पूरी होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने फिर से सदन से सड़क तक 5% जीएसटी लगाए जाने के विरोध शुरू किए और सभी विपक्षी दलों के सांसदों के साथ मिलकर इस धरने को कांग्रेस पार्टी तेजी दे ही रही थी कि अचानक लोकसभा में कांग्रेस के नेता और पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर (Adhir Chowdhury Controversial Remarks on Draupadi Murmu) टिप्पणी कर दी. जिसके बाद एक बार फिर कांग्रेस जनता के मुद्दे की जगह अपने ही मुद्दे को समझाने में जुट गई है.