जयपुर. बच्चों के लिए उनके माता-पिता से बड़ा सेंसर कोई नहीं होता. दर्शक और पाठक क्या देखें, क्या पढ़ें इसकी उन्हें स्वतंत्रता होनी चाहिए. ये कहना है फिल्म अभिनेता मनोज वाजपेयी का. वाजपेयी शुक्रवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शामिल होने के लिए पहुंचे थे (Jaipur Literature Festival 2022). इस दौरान ओटीटी प्लेटफार्म पर परोसी जा रही अश्लील सामग्री को लेकर बात करते हुए उन्होंने कुछ यादें साझा कीं (Manoj Bajpayee on ott platform).
उन्होंने कहा कि जब वह छोटे थे और ट्रेन में सफर किया करते थे तो बड़े जंक्शन पर कई बुक स्टॉल हुआ करती थीं. जहां पर साहित्य और अश्लील दोनों किताबें मिलती थीं. लेकिन ऐसा नहीं कि सभी अश्लील किताबें ही पढ़ते थे. उन्होंने साहित्य खरीदा, या किसी ने मैगजीन खरीदी. ये जानते हुए कि यहां अश्लील किताब भी बिक रही है. ये चुनाव और ये स्वतंत्रता दर्शकों और पाठकों के पास होनी चाहिए. जब तक आप वह स्वतंत्रता नहीं देंगे, अच्छा काम होगा ही नहीं. जिस काम से आप इत्तेफाक नहीं रखते उस तरफ जाइए ही मत.
बच्चों के सेंसर बोर्ड उनके मां-बाप
वाजपेयी कहते हैं कि जहां तक बच्चों का सवाल है मेरे घर में भी एक बच्ची है. और माता-पिता से बड़ा सेंसर कोई नहीं होता है. माता-पिता से बड़ा सेंसर टीचर भी नहीं होता. बच्चे ज्यादातर समय आपके पास रहते हैं. यदि बच्चे पर आप ध्यान नहीं दे सकते तो उसकी जिम्मेदारी फिल्म मेकर के ऊपर थोपने के बजाय अपने ऊपर थोपिए. सब जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है. यदि कोई चीज बुरी लग रही है तो उसे मत देखिए. एक कोर्ट ने भी अपने जजमेंट में कहा था कि जिस चीज से आप इत्तेफाक नहीं रखते उसे मत देखिए.
थिएटर खाली होने का कारण ओटीटी प्लेटफॉर्म नहीं
उन्होंने आगे कहा कि बायोग्राफी और बायोपिक में अंतर है. बायोग्राफी में सूरज उदय होते हुए को भी 5 लाइनों में लिखा जा सकता है, जबकि बायोपिक में ये काम महज एक शॉट का होता है जो कुछ सेकंड का होता है. इस दौरान उन्होंने कहा कि थिएटर खाली होने का कारण ओटीटी प्लेटफॉर्म नहीं, बल्कि महामारी है. उन्होंने कहा कि फिल्मों का दौर दोबारा शुरू होगा लेकिन ओटीटी का दौर बना रहेगा. ओटीटी कंटेंट का अथाह समुद्र है, जो लोगों को अपने टेस्ट के अकॉर्डिंग कंटेंट देखने की स्वतंत्रता देता है.
बायोपिक में एंटरटेनमेंट के लिए जोड़े जाने वाले सीन को लेकर मनोज वाजपेयी ने कहा कि यदि कोई अपनी फिल्म को इंटरेस्टिंग बनाने के लिए थोड़ी बहुत आजादी लेता है तो इसमें बुरा क्या है. ज्यादा आजादी नहीं लेनी चाहिए. जिस तरह गांधीजी की लाइफ को सब लोग जानते हैं, उसमें तोड़फोड़ होती है तो कॉन्ट्रोवर्सी होती है जो गलत बात है. लेकिन जिस व्यक्ति के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं है, उसमें इमैजिनेशन पर ही निर्भर रहते हैं. फिल्ममेकर और राइटर कल्पनाओं पर जाता है.
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खुद कभी कोई किताब नहीं लिखूंगा-वाजपेयी
पीयूष पांडेय की ओर से लिखी उनकी बायोग्राफी कुछ पाने की जिद पर उन्होंने कहा कि 2-3 लेखक उनके जीवन पर लिख रहे हैं. उन्होंने कहा कि वो खुद कभी कोई किताब नहीं लिखेंगे. चूंकि जब उन्होंने पीयूष पांडेय की पुस्तक पढ़ी तो कुछ बिंदुओं से सहमत नहीं थे, विशेषकर कुछ दोस्तों की राय से. लेकिन उनमें इतनी ताकत होनी चाहिए की वो अपनी गलतियों को स्वीकार कर सकें. उन्होंने कहा कि वे खुद पर लिखी सारी पुस्तकें जरूर पढ़ेंगे, क्योंकि उन्हें पढ़ना पसंद है. उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान की फिल्में बहुत देखी जाती हैं. हिंदी एक ऐसी भाषा है जो सबसे ज्यादा बोली जाती है. इस दौरान उन्होंने अपनी ओटीटी और बॉलीवुड फिल्मों को लेकर भी चर्चा की.