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Special : जयपुर में पतंगबाजी का इतिहास तुक्कल से हुआ शुरू, दंगल तक जा पहुंचा, आज है अंतरराष्ट्रीय ख्याति

दान-पुण्य का पर्व मकर संक्रांति राजधानी में पतंगबाजी महोत्सव (Kite festival in Jaipur) के रूप में भी जाना जाता है. जयपुर में लखनऊ की तुक्कल से पतंगबाजी की शुरुआत हुई थी. जयपुर के राजाओं ने पतंगबाजी की क्या शुरूआत की, पूरा शहर इस रंग में ढलता चला गया और आज यहां की पतंगबाजी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली हुई है.

Kite flying history of Jaipur, Makar Sankranti 2022
जयपुर में पतंगबाजी का इतिहास
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Published : Jan 9, 2022, 10:01 PM IST

Updated : Jan 9, 2022, 10:42 PM IST

जयपुर. दान-पुण्य का पर्व मकर संक्रांति राजधानी में पतंगबाजी महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है. जयपुर में गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक ये पर्व बरसों से आपसी सद्भाव की जड़ों को मजबूत कर रहा है. यहां पतंग-डोर का संगम जयपुर की विरासत से भी जुड़ा हुआ है.

जयपुर में लखनऊ की तुक्कल से पतंगबाजी की शुरुआत (Kite flying history of Jaipur) हुई थी. इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि 1835 से 1888 तक जयपुर के महाराजा रहे सवाई राम सिंह द्वितीय ने लखनऊ में पतंगे उड़ती देखीं. उनके मन में आया की ऐसी पतंगे जयपुर शहर में क्यों ना उड़ें. इसी सोच के साथ वे लखनऊ के कुछ पतंगसाजों को जयपुर ले आए और यहां पतंगबाजी की शुरुआत की.

जयपुर में पतंगबाजी का इतिहास (भाग 1)

खुद महाराजा रामसिंह मोटी डोर के साथ सिटी पैलेस की छत से तुक्कल नामक पतंग उड़ाते थे. उस दौर में कोई और पतंग उड़ा नहीं करती थी. तो अमूमन जो पतंग तेज हवा से टूट जाया करती थी, उसे पकड़ने के लिए भी घुड़सवार तैनात रहते थे. यदि कोई शहरवासी इस पतंग को पकड़ कर महाराजा के समक्ष लाता था, तो उसे पतंग के साथ चांदी के 10 रुपए का इनाम दिया जाता था.

Kite flying history of Jaipur, Makar Sankranti 2022
कई इलाके पतंग के लिए मशहूर

पढ़ें: कोटा : बंगाली समाज करता है मकर संक्रांति पर मगरमच्छ की पूजा

इसके बाद महाराजा माधो सिंह ने यहां पतंग बनाने के लिए कारखाना तक स्थापित कर दिया था. विद्वान बखतराम शाह ने जयपुर की पतंगबाजी को लेकर 'जयपुर की पतंग उड़ी' या 'गुड़िया उड़ी' इस तरह है वर्णन भी किया है. इसके बाद जयपुर में जब पतंगबाजी का दौर शुरू हुआ, तो राजपरिवार की ओर से सोने-चांदी के घुंघरू जड़ी पतंगे गोविंद देव जी और शिव मंदिरों में चढ़ाने का रिवाज शुरू हुआ. इसके बाद इसी के साथ तिल, गुड़ के लड्डू और सांभर की फीणी चढ़ाने का प्रचलन भी शुरू हो गया.

Kite flying history of Jaipur, Makar Sankranti 2022
काइट फेस्टीवल का फाइल फोटो

पढ़ें: दड़ा महोत्सव पर कोरोना संकट: 80 Kg की 'फुटबाॅल' से खेलते हैं ग्रामीण, जीत पर होती है ये भविष्यवाणी

जयपुर की यही पतंगबाजी हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी बना हुआ है. शेखावत ने बताया कि महाराजा रामसिंह जिन पतंगसाजों को लखनऊ से साथ लेकर आए थे, वे सभी मुस्लिम समाज के थे. धीरे-धीरे जयपुर में उनका एक मोहल्ला बन गया. मकर सक्रांति भले ही हिंदुओं का त्यौहार है, लेकिन पतंग डोर का रोजगार मुस्लिम समाज का है. हालांकि शुरू में आगरा, रामपुर और लखनऊ से जयपुर में डोर आया करती थी. धीरे-धीरे जयपुर में ही डोर बनाने का काम भी शुरू हो गया. जयपुर के कोली समाज ने इस डोर को सूत कर मांझा बनाने का काम किया. बाद में इस काम को मुस्लिम समुदाय ने ही अडॉप्ट कर लिया.

Kite flying history of Jaipur, Makar Sankranti 2022
यहां आसमान अट जाता हैं पतंगों से

पढ़ें: जयपुर : पतंगबाजी के उल्लास में न भूलें इंसानियत...डोर से घायल परिंदों को पहुंचाएं उपचार केंद्र, ये बातें रखें ध्यान..

1977 के बाद जयपुर में पतंगबाजी का बड़े स्तर पर नया रूप देखने को मिला. जल महल और लाल डूंगरी के मैदान पर काइट फेस्टिवल का आयोजन होना शुरू हुआ. उस दौर में जयपुर के प्रमुख समाजसेवी कन्हैयालाल तिवाड़ी और मुस्लिम समाज के अब्दुल मतीन ने मिलकर जयपुर की पतंगबाजी के दंगल शुरू किए. यहां के पेच साफ-सुथरे होने के चलते अहमदाबाद, दिल्ली, बरेली, रामपुर, लखनऊ खासकर उत्तर प्रदेश के जितने भी पतंगसाज क्लब बने हुए थे, जयपुर आकर पतंगों के दंगल के शामिल हुए. और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन भी होने लगे. उस समय यूडीएच मंत्री रहे भंवर लाल शर्मा ने भी पतंगबाजी को बढ़ाने में अपनी भूमिका अदा की. उस दौर में सवाई जयसिंह से लेकर इंदिरा गांधी की स्मृति में पतंगबाजी प्रतियोगिताएं हुई.

Kite flying history of Jaipur, Makar Sankranti 2022
चंद्रमहल से उड़ती है पावणों की पतंग

बहरहाल, धर्म और जाति की दीवारों को तोड़ आपसी सद्भाव की मिसाल कायम करने वाली पतंगबाजी को हिंदू और मुस्लिम समाज ने मिलकर मुकाम पर पहुंचाया है. राजा ने तुक्कल से जो शुरुआत की आज जयपुर के बच्चे और यहां तक की महिलाओं के हाथ में पतंग और डोर देखने को मिल जाती है. यही वजह है कि जयपुर की पतंगबाजी का देश भर में नाम है और देशी-विदेशी पर्यटक हर साल इसका लुत्फ उठाने के लिए मकर संक्रांति पर जयपुर पहुंचते हैं.

जयपुर. दान-पुण्य का पर्व मकर संक्रांति राजधानी में पतंगबाजी महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है. जयपुर में गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक ये पर्व बरसों से आपसी सद्भाव की जड़ों को मजबूत कर रहा है. यहां पतंग-डोर का संगम जयपुर की विरासत से भी जुड़ा हुआ है.

जयपुर में लखनऊ की तुक्कल से पतंगबाजी की शुरुआत (Kite flying history of Jaipur) हुई थी. इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि 1835 से 1888 तक जयपुर के महाराजा रहे सवाई राम सिंह द्वितीय ने लखनऊ में पतंगे उड़ती देखीं. उनके मन में आया की ऐसी पतंगे जयपुर शहर में क्यों ना उड़ें. इसी सोच के साथ वे लखनऊ के कुछ पतंगसाजों को जयपुर ले आए और यहां पतंगबाजी की शुरुआत की.

जयपुर में पतंगबाजी का इतिहास (भाग 1)

खुद महाराजा रामसिंह मोटी डोर के साथ सिटी पैलेस की छत से तुक्कल नामक पतंग उड़ाते थे. उस दौर में कोई और पतंग उड़ा नहीं करती थी. तो अमूमन जो पतंग तेज हवा से टूट जाया करती थी, उसे पकड़ने के लिए भी घुड़सवार तैनात रहते थे. यदि कोई शहरवासी इस पतंग को पकड़ कर महाराजा के समक्ष लाता था, तो उसे पतंग के साथ चांदी के 10 रुपए का इनाम दिया जाता था.

Kite flying history of Jaipur, Makar Sankranti 2022
कई इलाके पतंग के लिए मशहूर

पढ़ें: कोटा : बंगाली समाज करता है मकर संक्रांति पर मगरमच्छ की पूजा

इसके बाद महाराजा माधो सिंह ने यहां पतंग बनाने के लिए कारखाना तक स्थापित कर दिया था. विद्वान बखतराम शाह ने जयपुर की पतंगबाजी को लेकर 'जयपुर की पतंग उड़ी' या 'गुड़िया उड़ी' इस तरह है वर्णन भी किया है. इसके बाद जयपुर में जब पतंगबाजी का दौर शुरू हुआ, तो राजपरिवार की ओर से सोने-चांदी के घुंघरू जड़ी पतंगे गोविंद देव जी और शिव मंदिरों में चढ़ाने का रिवाज शुरू हुआ. इसके बाद इसी के साथ तिल, गुड़ के लड्डू और सांभर की फीणी चढ़ाने का प्रचलन भी शुरू हो गया.

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काइट फेस्टीवल का फाइल फोटो

पढ़ें: दड़ा महोत्सव पर कोरोना संकट: 80 Kg की 'फुटबाॅल' से खेलते हैं ग्रामीण, जीत पर होती है ये भविष्यवाणी

जयपुर की यही पतंगबाजी हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी बना हुआ है. शेखावत ने बताया कि महाराजा रामसिंह जिन पतंगसाजों को लखनऊ से साथ लेकर आए थे, वे सभी मुस्लिम समाज के थे. धीरे-धीरे जयपुर में उनका एक मोहल्ला बन गया. मकर सक्रांति भले ही हिंदुओं का त्यौहार है, लेकिन पतंग डोर का रोजगार मुस्लिम समाज का है. हालांकि शुरू में आगरा, रामपुर और लखनऊ से जयपुर में डोर आया करती थी. धीरे-धीरे जयपुर में ही डोर बनाने का काम भी शुरू हो गया. जयपुर के कोली समाज ने इस डोर को सूत कर मांझा बनाने का काम किया. बाद में इस काम को मुस्लिम समुदाय ने ही अडॉप्ट कर लिया.

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यहां आसमान अट जाता हैं पतंगों से

पढ़ें: जयपुर : पतंगबाजी के उल्लास में न भूलें इंसानियत...डोर से घायल परिंदों को पहुंचाएं उपचार केंद्र, ये बातें रखें ध्यान..

1977 के बाद जयपुर में पतंगबाजी का बड़े स्तर पर नया रूप देखने को मिला. जल महल और लाल डूंगरी के मैदान पर काइट फेस्टिवल का आयोजन होना शुरू हुआ. उस दौर में जयपुर के प्रमुख समाजसेवी कन्हैयालाल तिवाड़ी और मुस्लिम समाज के अब्दुल मतीन ने मिलकर जयपुर की पतंगबाजी के दंगल शुरू किए. यहां के पेच साफ-सुथरे होने के चलते अहमदाबाद, दिल्ली, बरेली, रामपुर, लखनऊ खासकर उत्तर प्रदेश के जितने भी पतंगसाज क्लब बने हुए थे, जयपुर आकर पतंगों के दंगल के शामिल हुए. और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन भी होने लगे. उस समय यूडीएच मंत्री रहे भंवर लाल शर्मा ने भी पतंगबाजी को बढ़ाने में अपनी भूमिका अदा की. उस दौर में सवाई जयसिंह से लेकर इंदिरा गांधी की स्मृति में पतंगबाजी प्रतियोगिताएं हुई.

Kite flying history of Jaipur, Makar Sankranti 2022
चंद्रमहल से उड़ती है पावणों की पतंग

बहरहाल, धर्म और जाति की दीवारों को तोड़ आपसी सद्भाव की मिसाल कायम करने वाली पतंगबाजी को हिंदू और मुस्लिम समाज ने मिलकर मुकाम पर पहुंचाया है. राजा ने तुक्कल से जो शुरुआत की आज जयपुर के बच्चे और यहां तक की महिलाओं के हाथ में पतंग और डोर देखने को मिल जाती है. यही वजह है कि जयपुर की पतंगबाजी का देश भर में नाम है और देशी-विदेशी पर्यटक हर साल इसका लुत्फ उठाने के लिए मकर संक्रांति पर जयपुर पहुंचते हैं.

Last Updated : Jan 9, 2022, 10:42 PM IST
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