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रोजगारेश्वर मंदिर को तुड़वाने वाली सरकार को सत्ता और तीन विधायकों को गंवानी पड़ी थी सीट, जानें पूरी कहानी

साल 2015 में विकास के नाम पर आस्था और संस्कृति को भेंट चढ़ा दिया गया था. जिस रोजगारेश्वर महादेव की उपासना (Rozgareshwar Temple in Jaipur) कर लोग नौकरी तलाशने निकलते थे. उसे तत्कालीन बीजेपी सरकार ने मेट्रो की राह में बाधा मानते हुए जमींदोज करा दिया था. हालांकि मंदिर टूटने के बाद भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी तो आसपास के तीन विधानसभा क्षेत्र के विधायकों को अपनी सीट गंवानी पड़ी थी.

रोजगारेश्वर मंदिर
रोजगारेश्वर मंदिर
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Published : Mar 1, 2022, 7:07 PM IST

जयपुर. छोटी काशी कहे जाने वाले जयपुर की छोटी चौपड़ पर स्थित रोजगारेश्वर मंदिर (Rozgareshwar Temple in Jaipur) शिवरात्रि के मौके पर फिर जगमगा रहा है. शिव परिवार का विशेष शृंगार किया गया है और मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है. लेकिन इस मंदिर की मूल प्रतिमा आज भी आतिश मार्केट में रखी हुई है.

दरअसल, 289 साल पुराने इस मंदिर को लेकर मान्यता थी कि भगवान शिव यहां आने वाले बेरोजगार लोगों की रोजगार की मुराद पूरी करते हैं. सोमवार के दिन यहां भक्तों का तांता लगा रहता था. लेकिन 2015 में एक क्रेन के माध्यम से इसे जमींदोज कर दिया गया. जो व्यक्ति क्रेन चला रहा था, उसने इस काम को करने से पहले हाथ जोड़कर भगवान से यही प्रार्थना की थी कि उसे रोजगार ही यही मिला है. रोजगारेश्वर मंदिर को लेकर जयपुर में आस्था का आलम यहा था कि लोग विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आए थे. नतीजन राजस्थान सरकार को रोजगारेश्वर मंदिर को दोबारा निर्मित कराने का फैसला लेना पड़ा.

जयपुर की छोटी चौपड़ पर स्थित रोजगारेश्वर मंदिर की कहानी

तत्कालीन बीजेपी सरकार को ना सिर्फ मंदिर के मामले में बैकफुट होना पड़ा, बल्कि उसे 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. राजस्थान में भाजपा का वोट प्रतिशत 38.8 फीसदी रहा. जबकि राज्य में सबसे पड़ी पार्टी बनने वाली कांग्रेस का वोट प्रतिशत 39.3 फीसदी रहा. दोनों पार्टियों के बीच का मत प्रतिशत का अंतर महज 0.5 प्रतिशत था. कांग्रेस को करीब 1 करोड़ 39 लाख 35 हजार वोट मिले थे. जबकि भाजपा को करीब 1 करोड़ 37 लाख 57 हजार वोट मिले थे.

यह भी पढ़ें- जयपुरः रोजगारेश्वर मंदिर में हुई चोरी की वारदात का 6 घंटे में पर्दाफाश, एक आरोपी गिरफ्तार

दोनों को मिले वोट में महज एक लाख 70 हजार वोटों का अंतर था. इसी मामूली अंतर की वजह से बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. यही नहीं मंदिर से लगती हुई तीन विधानसभा क्षेत्र जो कि बीजेपी का गढ़ कहे जाते थे, वहां उनका सूपड़ा साफ हो गया. तत्कालीन किशनपोल विधायक मोहनलाल गुप्ता, हवामहल विधायक सुरेंद्र पारेख और आदर्श नगर विधायक अशोक परनामी की सीट उनसे छिन गई.

यह भी पढ़ें- महाशिवरात्रि 2022: मंदिरों में गूंजा ॐ नमः शिवाय, मंदिरों में भक्तों की लंबी कतार

बताया जाता है कि जयपुर की बसावट के दौरान बनाए गए प्राचीन मंदिरों में से एक रोजगारेश्वर महादेव मंदिर को मिर्जा इस्माइल ने भी हटाने की कोशिश की थी. तब उनके पुत्र गंभीर बीमार हो गए थे. जयपुर के विद्वानों ने उन्हें चेतावनी दी थी कि मंदिर को तोड़ना ठीक नहीं. इसी कारण बाद में मिर्जा इस्माइल ने इस मंदिर को और भव्यता दी थी.

साथ ही 11 अन्य ज्योतिर्लिंग भी स्थापित किए थे. लेकिन 2018 के चुनावों में बीजेपी सरकार को ऐसा मौका नहीं मिला. बहरहाल, आज रोजगारेश्वर महादेव मंदिर का पुनर्निर्माण कर दिया गया है. लेकिन मंदिर में पुरानी प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित नहीं कराया गया. ये प्रतिमाएं आज भी आतिश मार्केट में श्रद्धालुओं की बाट जोह रही हैं.

जयपुर. छोटी काशी कहे जाने वाले जयपुर की छोटी चौपड़ पर स्थित रोजगारेश्वर मंदिर (Rozgareshwar Temple in Jaipur) शिवरात्रि के मौके पर फिर जगमगा रहा है. शिव परिवार का विशेष शृंगार किया गया है और मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है. लेकिन इस मंदिर की मूल प्रतिमा आज भी आतिश मार्केट में रखी हुई है.

दरअसल, 289 साल पुराने इस मंदिर को लेकर मान्यता थी कि भगवान शिव यहां आने वाले बेरोजगार लोगों की रोजगार की मुराद पूरी करते हैं. सोमवार के दिन यहां भक्तों का तांता लगा रहता था. लेकिन 2015 में एक क्रेन के माध्यम से इसे जमींदोज कर दिया गया. जो व्यक्ति क्रेन चला रहा था, उसने इस काम को करने से पहले हाथ जोड़कर भगवान से यही प्रार्थना की थी कि उसे रोजगार ही यही मिला है. रोजगारेश्वर मंदिर को लेकर जयपुर में आस्था का आलम यहा था कि लोग विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आए थे. नतीजन राजस्थान सरकार को रोजगारेश्वर मंदिर को दोबारा निर्मित कराने का फैसला लेना पड़ा.

जयपुर की छोटी चौपड़ पर स्थित रोजगारेश्वर मंदिर की कहानी

तत्कालीन बीजेपी सरकार को ना सिर्फ मंदिर के मामले में बैकफुट होना पड़ा, बल्कि उसे 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. राजस्थान में भाजपा का वोट प्रतिशत 38.8 फीसदी रहा. जबकि राज्य में सबसे पड़ी पार्टी बनने वाली कांग्रेस का वोट प्रतिशत 39.3 फीसदी रहा. दोनों पार्टियों के बीच का मत प्रतिशत का अंतर महज 0.5 प्रतिशत था. कांग्रेस को करीब 1 करोड़ 39 लाख 35 हजार वोट मिले थे. जबकि भाजपा को करीब 1 करोड़ 37 लाख 57 हजार वोट मिले थे.

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दोनों को मिले वोट में महज एक लाख 70 हजार वोटों का अंतर था. इसी मामूली अंतर की वजह से बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. यही नहीं मंदिर से लगती हुई तीन विधानसभा क्षेत्र जो कि बीजेपी का गढ़ कहे जाते थे, वहां उनका सूपड़ा साफ हो गया. तत्कालीन किशनपोल विधायक मोहनलाल गुप्ता, हवामहल विधायक सुरेंद्र पारेख और आदर्श नगर विधायक अशोक परनामी की सीट उनसे छिन गई.

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बताया जाता है कि जयपुर की बसावट के दौरान बनाए गए प्राचीन मंदिरों में से एक रोजगारेश्वर महादेव मंदिर को मिर्जा इस्माइल ने भी हटाने की कोशिश की थी. तब उनके पुत्र गंभीर बीमार हो गए थे. जयपुर के विद्वानों ने उन्हें चेतावनी दी थी कि मंदिर को तोड़ना ठीक नहीं. इसी कारण बाद में मिर्जा इस्माइल ने इस मंदिर को और भव्यता दी थी.

साथ ही 11 अन्य ज्योतिर्लिंग भी स्थापित किए थे. लेकिन 2018 के चुनावों में बीजेपी सरकार को ऐसा मौका नहीं मिला. बहरहाल, आज रोजगारेश्वर महादेव मंदिर का पुनर्निर्माण कर दिया गया है. लेकिन मंदिर में पुरानी प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित नहीं कराया गया. ये प्रतिमाएं आज भी आतिश मार्केट में श्रद्धालुओं की बाट जोह रही हैं.

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