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करौली नगर परिषद चेयरमैन का निलंबन सही, याचिका खारिज - karauli city council chairman

राजस्थान हाईकोर्ट ने करौली नगर पालिका चेयरमेन के पद से निलंबित करने के आदेश को सही माना है. अदालत ने कहा कि निलंबन के मामले में सरकारी कर्मचारी और निर्वाचित जनप्रतिनिधि को अलग-अलग देखना चाहिए.

जयपुर की खबर,  council chairman suspended
राजस्थान उच्च न्यायालय
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Published : Feb 25, 2020, 9:12 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राजाराम गुर्जर को करौली नगर पालिका चेयरमेन के पद से निलंबित करने के आदेश को सही माना है. हालांकि, अदालत ने कहा कि निलंबन के मामले में सरकारी कर्मचारी और निर्वाचित जनप्रतिनिधि को अलग-अलग देखना चाहिए. इसके अलावा उसे हटाने का उचित कारण होना चाहिए.

अदालत ने कहा कि जनप्रतिनिधि को मनमाने या राजनीतिक कारणों से भी नहीं हटाया जाना चाहिए. न्यायाधीश अशोक गौड़ ने यह आदेश राजाराम गुर्जर की याचिका पर दिए. याचिका में कहा गया कि स्वायत्त शासन निदेशक ने गत 6 दिसंबर को आदेश जारी कर उसने चेयरमेन पद से निलंबित कर दिया. जबकि इसके लिए तय विधिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. याचिकाकर्ता को न तो नोटिस दिया गया और न ही कोई प्रारंभिक जांच की गई.

पढ़ें: जोधपुरः बजट में उपेक्षापूर्ण व्यवहार के कारण रोडवेज कर्मचारियों का प्रदर्शन, 4 मार्च को जयपुर में करेंगे विशाल रैली

इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ था. वहीं एसपी करौली की ओर से पेश तथ्यात्मक रिपोर्ट में आया कि उसके खिलाफ झगड़े और हमले के कई मामले हैं. इसके अलावा विभाग ने मामले की न्यायिक जांच के लिए भी पत्र लिखा था. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राजाराम गुर्जर को करौली नगर पालिका चेयरमेन के पद से निलंबित करने के आदेश को सही माना है. हालांकि, अदालत ने कहा कि निलंबन के मामले में सरकारी कर्मचारी और निर्वाचित जनप्रतिनिधि को अलग-अलग देखना चाहिए. इसके अलावा उसे हटाने का उचित कारण होना चाहिए.

अदालत ने कहा कि जनप्रतिनिधि को मनमाने या राजनीतिक कारणों से भी नहीं हटाया जाना चाहिए. न्यायाधीश अशोक गौड़ ने यह आदेश राजाराम गुर्जर की याचिका पर दिए. याचिका में कहा गया कि स्वायत्त शासन निदेशक ने गत 6 दिसंबर को आदेश जारी कर उसने चेयरमेन पद से निलंबित कर दिया. जबकि इसके लिए तय विधिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. याचिकाकर्ता को न तो नोटिस दिया गया और न ही कोई प्रारंभिक जांच की गई.

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इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ था. वहीं एसपी करौली की ओर से पेश तथ्यात्मक रिपोर्ट में आया कि उसके खिलाफ झगड़े और हमले के कई मामले हैं. इसके अलावा विभाग ने मामले की न्यायिक जांच के लिए भी पत्र लिखा था. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया है.

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