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कंगारू मदर केयर अवेयरनेस डे : प्रीमेच्योर बच्चों के लिए वरदान साबित हो रही है यह तकनीक

अमूमन प्रीमेच्योर बच्चे का वजन कम होता है और उसके समुचित विकास के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होते हैं. चि​कित्सकों का कहना है कि प्रीमेच्योर बच्चों को हाइपोथर्मिया का खतरा होता है. ऐसे में कंगारू केयर तकनीक काफी असरदार मानी जाती है. 15 मई को इंटरनेशनल कंगारू केयर अवेयरनेस डे (International Kangaroo care awareness Day on 15th may) के अवसर हम आपको बता रहें ​हैं प्रीमेच्योर बच्चों के लिए क्यों जरूरी है यह तकनीक और क्या हैं इसके फायदे...

Kangaroo Mother Care method for premature babies
कंगारू मदर केयर अवेयरनेस डे: प्रीमेच्योर बच्चों के लिए वरदान साबित हो रही है यह तकनीक
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Published : May 15, 2022, 4:24 PM IST

जयपुर. 15 मई विश्व भर में इंटरनेशनल कंगारू केयर अवेयरनेस डे के रूप में मनाया जाता है. कंगारू मदर केयर तकनीक ऐसे बच्चों के लिए संजीवनी का काम कर रही है जो समय से पहले पैदा हो रहे हैं, जिन्हें प्रीमेच्योर कहा जाता (Kangaroo Mother Care method for premature babies) है. ऐसे बच्चों का वजन कम होता है, जिसके बाद इन बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए उन्हें कंगारू मदर केयर की आवश्यकता होती है. इस तरह के बच्चों को आमतौर पर वेंटिलेटर से लेकर वार्मर तक की जरूरत होती है, लेकिन मां का स्पर्श उनके लिए वेंटिलेटर और वार्मर का काम करता है.

कंगारू मदर केयर कम वजन के बच्चों की वृद्धि और विकास में मदद करती है. आमतौर पर कंगारू मदर केयर सिर्फ मां ही नहीं बल्कि घर का कोई भी सदस्य दे सकता है. इस बारे में जयपुर की जनाना अस्पताल की अधीक्षक डॉ पुष्पा नागर का कहना है कि हाल ही में जयपुर के जनाना अस्पताल में एक 700 ग्राम वजन की बच्ची पैदा हुई थी. उसकी मां ने उसे कंगारू मदर केयर के माध्यम से नई जिंदगी दी है. आंकड़ों की बात करें तो विश्व में लगभग 10 में से 1 बच्चा प्रीमेच्योर पैदा होता है. चिकित्सकों का कहना है कि आमतौर पर प्रीमेच्योर बच्चों को हाइपोथर्मिया का खतरा होता है. कंगारू मदर केयर तकनीक से मां बच्चे को सीने से चिपकाकर रखती है, जिससे उसे गर्माहट मिलती है. ऐसे में बच्चे को निमोनिया और पीलिया का खतरा लगभग खत्म हो जाता है.

डॉ. पुष्पा नागर ने क्या कहा...

पढ़ें: राजस्थान में शुरू होगी नवजात सुरक्षा योजना, चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने की घोषणा

नवजात बच्चों के लिए जरूरी: कंगारू मदर केयर के बाद शिशुओं की मृत्यु दर में भी काफी कमी आ रही है. चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे बच्चे जिनका वजन 2.5 किलो से कम हो या फिर ऐसे बच्चे जो 37 सप्ताह से पहले जन्म लेते हैं. इन बच्चों को विशेष रूप से कंगारू मदर केयर की आवश्यकता होती है. जयपुर के जनाना अस्पताल की बात करें तो चिकित्सकों का कहना है कि कंगारू मदर केयर के माध्यम से सैकड़ों बच्चों की जान अभी तक बचाई जा सकी है. यह तकनीक संजीवनी का काम करती है. चिकित्सकों का कहना है कि कंगारू मदर केयर घर का कोई भी सदस्य दे सकता है, जिसमें माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन शामिल हैं. सिर्फ स्वस्थ व्यक्ति को ही कंगारू मदर केयर देने की सलाह चिकित्सक दी जाती है ताकि नवजात बच्चे को किसी तरह का कोई संक्रमण नहीं हो.

पढ़ें: जच्चा और बच्चा दोनों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है कंगारू मदर केयर

अंतरराष्ट्रीय कंगारू मदर केयर डे के अवसर पर जयपुर के जनाना अस्पताल में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस अवसर पर अस्पताल की ओर से प्रदर्शनी और वर्कशॉप का आयोजन भी हुआ. जहां चिकित्सकों ने अस्पताल में आने वाले मरीजों और परिजनों को कंगारू मदर केयर के बारे में अवगत करवाया. डॉ पुष्पा नागर का कहना है कि यह तकनीक ऐसे देशों के लिए बेहद कारगर है, जो विकासशील हैं या जहां संसाधनों की कमी है.

जयपुर. 15 मई विश्व भर में इंटरनेशनल कंगारू केयर अवेयरनेस डे के रूप में मनाया जाता है. कंगारू मदर केयर तकनीक ऐसे बच्चों के लिए संजीवनी का काम कर रही है जो समय से पहले पैदा हो रहे हैं, जिन्हें प्रीमेच्योर कहा जाता (Kangaroo Mother Care method for premature babies) है. ऐसे बच्चों का वजन कम होता है, जिसके बाद इन बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए उन्हें कंगारू मदर केयर की आवश्यकता होती है. इस तरह के बच्चों को आमतौर पर वेंटिलेटर से लेकर वार्मर तक की जरूरत होती है, लेकिन मां का स्पर्श उनके लिए वेंटिलेटर और वार्मर का काम करता है.

कंगारू मदर केयर कम वजन के बच्चों की वृद्धि और विकास में मदद करती है. आमतौर पर कंगारू मदर केयर सिर्फ मां ही नहीं बल्कि घर का कोई भी सदस्य दे सकता है. इस बारे में जयपुर की जनाना अस्पताल की अधीक्षक डॉ पुष्पा नागर का कहना है कि हाल ही में जयपुर के जनाना अस्पताल में एक 700 ग्राम वजन की बच्ची पैदा हुई थी. उसकी मां ने उसे कंगारू मदर केयर के माध्यम से नई जिंदगी दी है. आंकड़ों की बात करें तो विश्व में लगभग 10 में से 1 बच्चा प्रीमेच्योर पैदा होता है. चिकित्सकों का कहना है कि आमतौर पर प्रीमेच्योर बच्चों को हाइपोथर्मिया का खतरा होता है. कंगारू मदर केयर तकनीक से मां बच्चे को सीने से चिपकाकर रखती है, जिससे उसे गर्माहट मिलती है. ऐसे में बच्चे को निमोनिया और पीलिया का खतरा लगभग खत्म हो जाता है.

डॉ. पुष्पा नागर ने क्या कहा...

पढ़ें: राजस्थान में शुरू होगी नवजात सुरक्षा योजना, चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने की घोषणा

नवजात बच्चों के लिए जरूरी: कंगारू मदर केयर के बाद शिशुओं की मृत्यु दर में भी काफी कमी आ रही है. चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे बच्चे जिनका वजन 2.5 किलो से कम हो या फिर ऐसे बच्चे जो 37 सप्ताह से पहले जन्म लेते हैं. इन बच्चों को विशेष रूप से कंगारू मदर केयर की आवश्यकता होती है. जयपुर के जनाना अस्पताल की बात करें तो चिकित्सकों का कहना है कि कंगारू मदर केयर के माध्यम से सैकड़ों बच्चों की जान अभी तक बचाई जा सकी है. यह तकनीक संजीवनी का काम करती है. चिकित्सकों का कहना है कि कंगारू मदर केयर घर का कोई भी सदस्य दे सकता है, जिसमें माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन शामिल हैं. सिर्फ स्वस्थ व्यक्ति को ही कंगारू मदर केयर देने की सलाह चिकित्सक दी जाती है ताकि नवजात बच्चे को किसी तरह का कोई संक्रमण नहीं हो.

पढ़ें: जच्चा और बच्चा दोनों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है कंगारू मदर केयर

अंतरराष्ट्रीय कंगारू मदर केयर डे के अवसर पर जयपुर के जनाना अस्पताल में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस अवसर पर अस्पताल की ओर से प्रदर्शनी और वर्कशॉप का आयोजन भी हुआ. जहां चिकित्सकों ने अस्पताल में आने वाले मरीजों और परिजनों को कंगारू मदर केयर के बारे में अवगत करवाया. डॉ पुष्पा नागर का कहना है कि यह तकनीक ऐसे देशों के लिए बेहद कारगर है, जो विकासशील हैं या जहां संसाधनों की कमी है.

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