जयपुर. प्रदेश का रेलवे प्रशासन ने 4 साल पहले जयपुर मंडल की प्रथम बूट लॉन्ड्री (ट्रेनों में दिए जाने वाले कंबल और चादरों के धोने वाला स्थान) खोला था. लेकिन बीते 25 दिसंबर से यह लॉन्ड्री बंद पड़ी हुई है. रेलवे के जिम्मेदार अधिकारी भी इसको लेकर किसी भी तरह का जवाब देने को तैयार नहीं है. वहीं दूसरी ओर अब ठेका कर्मियों पर एक बड़ा आर्थिक संकट भी खड़ा हो गया है. जिस वजह से उनका 6 महीने का वेतन भी बकाया है.
बता दें कि 4 साल पहले जयपुर में शुरू हुई उत्तर पश्चिम रेलवे की बूट लॉन्ड्री बीते 10 दिनों से बंद पड़ी है. बूट लॉन्ड्री चला रही ठेका फर्म का टेंडर 10 दिन पहले ही खत्म हो गया है. इस वजह से करीब 50 से ज्यादा ठेका कर्मियों का भुगतान भी अब अटक गया है. ऐसे में ट्रेनों में यात्रियों को दिए जाने वाले कंबल, चादरों का टोटा यानी कमी होने की आशंका भी लगाई जा रही है. दूसरी तरफ रेल प्रशासन अब तक वैकल्पिक इंतजाम करने की कवायद में ही उलझा हुआ है.
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गौरतलब है कि 4 साल पहले जयपुर, सवाई माधोपुर रेलवे लाइन के नजदीक उत्तर पश्चिम रेलवे प्रशासन ने जयपुर मंडल की प्रथम बूट लॉन्ड्री का निर्माण कराया था. ट्रेनों में यात्रियों को दिए जाने वाले कंबल, चादर और तौलियों की धुलाई अजमेर की बजाय जयपुर शहर में ही शुरू की गई थी. बीते 25 दिसंबर से जयपुर मंडल की बूटी लॉन्ड्री बंद पड़ी है. लॉन्ड्री में कार्यरत ठेका कर्मी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. ठेका फर्म ने कर्मचारियों की बीते 6 महीने की पगार भी नहीं दी है. ऐसे में एक तरफ ठेका कर्मियों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है, तो वहीं दूसरी तरफ यात्रियों को उपलब्ध कराए जाने वाले लिनेन के इंतजामों की पोल खुलने लगी है.
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इस बारे में बूट लॉन्ड्री से संबंधित कार्य देख रहे जयपुर मंडल के सीनियर डीएमई हनुमान मीणा से मामले में बात करने पर उन्होंने पूरे प्रकरण से पल्ला झाड़ते हुए मुख्य सीपीआरओ से बात करने का सुझाव दिया. जबकि मुख्य सीपीआरओ अभय शर्मा ने बताया कि जयपुर मंडल की ओर से ही बूट लॉन्ड्री संचालित करने की जानकारी है. वही बूट लॉन्ड्री का ठेका खत्म होने के बाद से लॉन्ड्री में कार्यरत ठेका कर्मियों के सामने अब आर्थिक संकट भी खड़ा हो गया.