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Jaipur Garbage Collection History : इतिहास से सीखें दोनों नगर निगम...1948 की सर्वे रिपोर्ट में कचरा निस्तारण में अव्वल था जयपुर - Jaipur garbage collection History

राजधानी में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण की व्यवस्था नगर निगमों के लिए चुनौती बनी हुई है. नतीजन पिछले स्वच्छता सर्वेक्षण में जयपुर टॉप 30 शहरों में भी अपनी जगह नहीं बना पाया. लेकिन शहर के दोनों निगम जयपुर के इतिहास से सीख ले सकते हैं. 1948 की सर्वे रिपोर्ट (1948 survey report) ये गवाही देती है कि कचरा निस्तारण के मामले में उस वक्त की देसी रियासतों में जयपुर नंबर वन था.

Jaipur garbage collection History
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Published : Feb 20, 2022, 9:34 PM IST

जयपुर. राजधानी में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण (Door to door garbage collection) का इतिहास पुराना है. आज भले ही शहर के दोनों निगम हूपर्स के जरिए कचरा संग्रहण कर रहे हों, आधुनिक मशीनों से कचरा डिस्पोज हो रहा हो. लेकिन जयपुर में राजा-महाराजाओं के समय भी हर घर से कचरा इकट्ठा होकर शहर के बाहर जाकर डिस्पोज हुआ करता था.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार सवाई राम सिंह के समय कचरा संग्रहण की व्यवस्था शुरू हुई थी. जयपुर के पुराने ड्रेनेज सिस्टम में शामिल गंदी मोरी जिस पर आज इंदिरा बाजार और नेहरू बाजार बसा हुआ है, उसके बाहर एक कचरा ट्रेन चला करती थी, जिसे भैंसा गाड़ी खींचा करती थी. उस दौर में कचरा छोटी गलियों से बड़ी गलियों में, बड़ी गलियों से चौराहों पर, चौराहों से चौपड़ों तक पहुंचता था. यहां से ट्रेन तक पहुंचाया जाता था और इस ट्रेन के जरिए कचरे को जयपुर से बाहर ले जाकर निस्तारित किया जाता था.

यह भी पढ़ें- Swachh Survekshan 2022 : डोर टू डोर कचरा संग्रहण ही बड़ी चुनौती, कैसे खत्म होंगे ओपन कचरा डिपो?

इसके बाद महाराजा माधो सिंह के समय इस कार्य के लिए एक बड़ा बजट रखा जाने लगा और पुरोहित गोपीनाथ के मार्गदर्शन में जयपुर में स्वच्छता अभियान चलाया गया. जिसमें जयपुर की गंदी गलियों को साफ किया गया. यही नहीं जयपुर के पुराने शहर को देखा जाए तो यहां घरों के नजदीक तारत बनाने की परंपरा थी, जो शौचालय का ही स्वरूप था.

1948 की सर्वे रिपोर्ट में कचरा निस्तारण में अव्वल था जयपुर

इन्हीं तारत में मेला इकट्ठा होता था, जिसे कर्मचारियों से उठवाया जाता था और हाथ गाड़ी में इकट्ठा कर उसी भैंसा गाड़ी से शहर के बाहर ले जाया जाता था. उस दौरान यदि कोई गंदगी रह जाती थी, तो साथ में मौजूद भिश्ती पानी डालकर उसे साफ कर देता था.

सवाई मानसिंह द्वितीय के समय भी स्वच्छता को लेकर काफी काम हुआ और देश के आजाद होने के बाद 1961 तक ये कचरा ट्रेन इसी तरह जयपुर में संचालित रही. बाद में बाहर से जो लोग जयपुर में बसने आए, उनके लिए इंदिरा बाजार नेहरू बाजार में दुकानें बनाई गई और इसके बाद ये व्यवस्था बंद हो गई.

यह भी पढ़ें- जयपुर बीवीजी कंपनी मामला : अधूरी तैयारियों के साथ बीवीजी को कर दिया टर्मिनेट, घरों तक नहीं पहुंच सके निगम के हूपर

देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि पुरानी बस्ती में एक बड़ा मोहल्ला था, जिसमें रहने वाले लोग पूरे शहर में सफाई व्यवस्था का काम देखते थे. जब भैंसा गाड़ी बंद हुई, तो एक कचरा गाड़ी को आदमी खुद खींचा करते थे. इस व्यवस्था में बारिश से पहले कचरे को जयपुर से बाहर पहुंचाने की जिम्मेदारी भी रहती थी, ताकि नालियां जाम ना हो. 1965 के बाद परकोटे में सीवरेज सिस्टम विकसित होना शुरू हुआ. ऐसे में गीला कचरा सीवरेज के माध्यम से और सूखा कचरा इकट्ठा करने की व्यवस्था जारी की गई.

मार्च में स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर के जयपुर में भी सर्वे होगा. इस बीच सबसे बड़ी चुनौती डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण की होगी, लेकिन जयपुर के हेरिटेज और ग्रेटर नगर निगम यदि जयपुर के इतिहास से सीख लेकर आगे बढ़े तो टॉप 10 में न सही, वर्तमान रैंक में तो सुधार हो ही जाएगा.

जयपुर. राजधानी में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण (Door to door garbage collection) का इतिहास पुराना है. आज भले ही शहर के दोनों निगम हूपर्स के जरिए कचरा संग्रहण कर रहे हों, आधुनिक मशीनों से कचरा डिस्पोज हो रहा हो. लेकिन जयपुर में राजा-महाराजाओं के समय भी हर घर से कचरा इकट्ठा होकर शहर के बाहर जाकर डिस्पोज हुआ करता था.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार सवाई राम सिंह के समय कचरा संग्रहण की व्यवस्था शुरू हुई थी. जयपुर के पुराने ड्रेनेज सिस्टम में शामिल गंदी मोरी जिस पर आज इंदिरा बाजार और नेहरू बाजार बसा हुआ है, उसके बाहर एक कचरा ट्रेन चला करती थी, जिसे भैंसा गाड़ी खींचा करती थी. उस दौर में कचरा छोटी गलियों से बड़ी गलियों में, बड़ी गलियों से चौराहों पर, चौराहों से चौपड़ों तक पहुंचता था. यहां से ट्रेन तक पहुंचाया जाता था और इस ट्रेन के जरिए कचरे को जयपुर से बाहर ले जाकर निस्तारित किया जाता था.

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इसके बाद महाराजा माधो सिंह के समय इस कार्य के लिए एक बड़ा बजट रखा जाने लगा और पुरोहित गोपीनाथ के मार्गदर्शन में जयपुर में स्वच्छता अभियान चलाया गया. जिसमें जयपुर की गंदी गलियों को साफ किया गया. यही नहीं जयपुर के पुराने शहर को देखा जाए तो यहां घरों के नजदीक तारत बनाने की परंपरा थी, जो शौचालय का ही स्वरूप था.

1948 की सर्वे रिपोर्ट में कचरा निस्तारण में अव्वल था जयपुर

इन्हीं तारत में मेला इकट्ठा होता था, जिसे कर्मचारियों से उठवाया जाता था और हाथ गाड़ी में इकट्ठा कर उसी भैंसा गाड़ी से शहर के बाहर ले जाया जाता था. उस दौरान यदि कोई गंदगी रह जाती थी, तो साथ में मौजूद भिश्ती पानी डालकर उसे साफ कर देता था.

सवाई मानसिंह द्वितीय के समय भी स्वच्छता को लेकर काफी काम हुआ और देश के आजाद होने के बाद 1961 तक ये कचरा ट्रेन इसी तरह जयपुर में संचालित रही. बाद में बाहर से जो लोग जयपुर में बसने आए, उनके लिए इंदिरा बाजार नेहरू बाजार में दुकानें बनाई गई और इसके बाद ये व्यवस्था बंद हो गई.

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देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि पुरानी बस्ती में एक बड़ा मोहल्ला था, जिसमें रहने वाले लोग पूरे शहर में सफाई व्यवस्था का काम देखते थे. जब भैंसा गाड़ी बंद हुई, तो एक कचरा गाड़ी को आदमी खुद खींचा करते थे. इस व्यवस्था में बारिश से पहले कचरे को जयपुर से बाहर पहुंचाने की जिम्मेदारी भी रहती थी, ताकि नालियां जाम ना हो. 1965 के बाद परकोटे में सीवरेज सिस्टम विकसित होना शुरू हुआ. ऐसे में गीला कचरा सीवरेज के माध्यम से और सूखा कचरा इकट्ठा करने की व्यवस्था जारी की गई.

मार्च में स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर के जयपुर में भी सर्वे होगा. इस बीच सबसे बड़ी चुनौती डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण की होगी, लेकिन जयपुर के हेरिटेज और ग्रेटर नगर निगम यदि जयपुर के इतिहास से सीख लेकर आगे बढ़े तो टॉप 10 में न सही, वर्तमान रैंक में तो सुधार हो ही जाएगा.

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