जयपुर. आज पूरे देश में महात्मा गांधी की 151वीं जयंती को मनाया जा रहा है और साथ ही महात्मा गांधी के आदर्शों को याद करते हुए उनके आदर्शों को अपनाने का प्रण लिया जा रहा है लेकिन जयपुर के एक कलाकार ने बापू को अलग अंदाज में श्रद्धांजलि दी है. मूर्तिकार नवरत्न प्रजापति ने पेंसिल की लीड पर महात्मा गांधी की अति सूक्ष्म मूर्ति उकेरी है.
महात्मा गांधी की प्रतिमा पेंसिल पर उकेरने वाले मूर्तिकार नवरत्न प्रजापति के नाम दो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड है. ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए मूर्तिकार नवरत्न प्रजापति ने बताया कि गांधीजी के जो काम है, वह विश्व विख्यात है. गांधीजी के मन में दया की भावना और लोगों के प्रति जो प्रेम था. उनका देश से जो लगाव था. उन तमाम चीजों को ध्यान में रखते हुए और उनके विचारों से प्रेरित होते हुए मैंने पेंसिल की लीड पर महात्मा गांधी की अति सूक्ष्म मूर्ति बनाई है.
मात्र डेढ़ दिन में तैयार की महात्मा गांधी की अति सूक्ष्म मूर्ति
नवरत्न प्रजापति ने कहा कि वैसे तो उनका काम मार्बल की मूर्ति बनाने का है लेकिन महात्मा गांधी के विचार और आदर्श से प्रभावित होकर उन्होंने पेंसिल की नोक पर महात्मा गांधी की मूर्ति बनाने का प्रण किया. पेंसिल की नोक पर कुछ भी कारीगरी करना बेहद जटिल काम है. जिसमें काफी वक्त और मेहनत लगती है.
महात्मा गांधी ने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए जो कष्ट सहे और जो बुरा वक्त अहिंसात्मक तरीके से प्रदर्शन कर और शांत रहकर बिताया, उससे ही प्रेरणा लेकर नवरत्न प्रजापति ने पेंसिल की नोक पर महात्मा गांधी की अति सूक्ष्म मूर्ति बना डाली. पेंसिल की नोक पर महात्मा गांधी की अति सूक्ष्म मूर्ति बनाने में नवरत्न प्रजापति को डेढ़ दिन का समय लगा जो कि काफी टफ और चैलेंजिंग काम रहा.
मूर्ति के जरिए युवाओं को दे रहे महात्मा गांधी के विचारों को अपनाने का संदेश
मूर्तिकार ने पेंसिल की नोक पर महात्मा गांधी की अति सूक्ष्म मूर्ति बनाकर देश के युवाओं को महात्मा गांधी के विचारों को अपनाने और उनके आदर्शों पर चलने का संदेश दिया है. नवरत्न प्रजापति का कहना है कि आजकल युवाओं में काफी आक्रोश देखा जाता है और गुस्से में आकर वो किसी भी तरह का अपराध कर बैठते हैं.
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नवरत्न प्रजापति ने कहा कि उनका तर्क है कि जो काम प्रेम से हो सकता है, वह काम कभी भी लड़ाई झगड़े से नहीं हो सकता. युवाओं को हिंसा नहीं बल्कि अहिंसा की राह पर चलना चाहिए और जीओ और जीने दो का आचरण करना चाहिए. महात्मा गांधी ने भी कहा है कि किसी भी तरह के विरोध का तरीका अहिंसात्मक ही होना चाहिए क्योंकि हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है.