जयपुर. दिवाली के मौके पर लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ बहीखातों की पूजा की जाती है. हालांकि बहीखातों की जगह अब कम्प्यूटर ने ले ली है, फिर भी शगुन के तौर पर बहियां जरूर रखी जाती हैं. दिवाली के दिन बही खाता लिखने का काम आज भी अधिकांश व्यापारी उसी तरह करते हैं जैसे बरसों पहले किया करते थे. हां, तौर-तरीका थोड़ा बदल गया है.
डिजिटल युग में की-बोर्ड पर सरपट चलती हैं और मिनटों में बहीखातों का हिसाब किताब हो जाता है. आज के तेज रफ्तार युग में कंप्यूटर जरूरी भी है. वक्त और जरूरत की मार खाकर बहीखातों में स्याही और कागज का समागम समय के साथ धुंधला जरूर पड़ गया है, लेकिन कंप्यूटर की बहियों की तरह मोटी पोथियों जैसी बहियां न तो एक क्लिक से डिलीट हो सकती हैं और न ही इनमें हैकर्स के घुसने का खतरा है. पुरानी बहियों को एंटी-वायरस से अपडेट करने की भी दरकार नहीं है. जयपुर समेत तमाम शहरों में व्यवसाय का हिसाब-किताब रखने के लिए परंपरागत बहीखातों का चलन रहा है. हालांकि दिनों-दिन बहीखातों का उपयोग कम होता जा रहा है, लेकिन कई व्यापारी कम्प्यूटर पर एंट्री करने के साथ साथ बही भी लिख रहे हैं.
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अलग-अलग आकार के बहीखाते बाजार में उपलब्ध...
आधुनिक युग में भी परंपराओं का निर्वहन किया जा रहा है. लिहाजा दीपावली पर पूजने के लिए ही सही, बहीखातों की उपयोगिता अभी है और इसीलिए बाजार में उपलब्धता भी है. समय के साथ-साथ बाजार में मिलने वाले बहीखाते अपना रूप और आकार बदल रहे हैं. इनके बनने के तरीकों में भी काफी बदलाव आया है. जयपुर में पहले सांगानेरी हैंडमेड पेपर की बहियां बनाई जाती थीं. तब के व्यापारी अपने हाथ से कागज काटकर बहियां खुद तैयार करते थे. अब मशीनों से बहियां बनाई जाती हैं. हाथ से बनी हों या मशीन से, बहियां अभी प्रचलन में तो हैं.
गांवों में अब भी बहीखातों का प्रयोग...
जयपुर के व्यापारी गिरधारी लाल अग्रवाल पुराना वक्त याद करते हुए बहीखाते के किस्से सुनाते हैं. उनका कहना है कि बहीखातों का चलन शहरों में सीमित हो गया है. गांवों में आज भी बही खातों को प्रमुखता दी जाती है. जो व्यापारी कम्प्यूटर नहीं खरीद सकते या फिर कंप्यूटर की समझ नहीं रखते वो बहियों में ही हिसाब लिखकर रखते हैं. इसलिए बहीखातों का अभी प्रचलन चल रहा है. बेशक इसका उपयोग कम हो गया है.
गिरधारी लाल बताते हैं कि गांवों में अब तो सेठ लोग काउंटर लगाकर बैठने लगे हैं, लेकिन कुछ दशक पहले तक मुनीमजी सफेद गद्दी पर बैठकर रोकड़ खाता रखते और फिर उसकी नकल उतारते थे. पहले जहां एक व्यापारी 4-5 बहीखाते रखता था वहीं अब एक बही रखना ही पर्याप्त है.
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बहीखातों का साइज भी है तय...
बाजार में ग्राहकों की मांग के मुताबिक रोकड़ लेने-देने के लिए 11 इंच चौड़ाई और 14 इंच लंबाई वाली 350 पेज की बही काम में ली जाती है. तो वही 8.3 इंच चौड़ाई और 14 इंच लम्बाई वाली 250 पेज की बही में व्यापारी अलग से हिसाब रखते हैं. इसके अलावा डेली रूटीन अकाउंट के लिए 1000 पेज की 7 इंच चौड़ाई और 8.3 इंच लम्बाई वाली बहियां बनती हैं. इस बार मार्केट में 3 इंच चौड़ाई और 4 इंच लम्बाई वाली सबसे सबसे छोटी पॉकेट बही भी मिलना शुरू हो गई है. जिसका उपयोग दीपावली पर शुभ मुहूर्त में शगुन के तौर पर पूजन कर जेब में रखने के लिए होगा.
तकनीक के इस आधुनिक दौर में लैपटॉप-कम्प्यूटर नई पीढ़ी के लिए जरूरी बन गए हैं. डिजिटल का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है. एक दिन ये बहियां भी इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाएंगी.