जयपुर. राजस्थान भाजपा में भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के जयपुर प्रवास के दौरान प्रदेश नेताओं को एकजुटता का मंत्र दिया गया हो, लेकिन प्रदेश भाजपा में नेता एक जाजम पर अब तक दिखाई नहीं दिए. वसुंधरा राजे जहां देव दर्शन यात्रा के जरिए अपनी सियासी ताकत दिखाने में जुटी है. वहीं, सतीश पूनिया मेवाड़ के सियासी दौरे पर है. आलम ये है कि 4 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तमाम तैयारियों में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उनके समर्थक खेमे के नेता अब तक नजर नहीं आए, जो चर्चा का विषय है.
2 मार्च को जेपी नड्डा ने अपने जयपुर प्रवास के दौरान मंच पर खड़े होकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच की दूरियां पाटने की भरपूर कोशिश की. अपने संबोधन में भी एकजुटता की नसीहत पिलाई गई और दोनों नेताओं के हाथ एक साथ ऊंचे करवा कर मैसेज दिया गया, प्रदेश भाजपा में सब एकजुट है. लेकिन, नड्डा की एकजुटता की घुट्टी खेमेबाजी से जूझ रही प्रदेश भाजपा नेताओं पर बेअसर रही. जेपी नड्डा के जयपुर से जाते ही वसुंधरा राजे के जन्मदिवस के देव दर्शन यात्रा का कार्यक्रम सामने आ गया, तो वहीं पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने अपने मेवाड़ की सियासी यात्रा का कार्यक्रम जारी कर दिया. प्रदेश के 2 बड़े नेता अलग-अलग दिशाओं में जाते दिखे. वसुंधरा राजे जहां देव दर्शन यात्रा के जरिए भरतपुर और गोवर्धन क्षेत्र में अपने समर्थकों को एकजुट करने की तैयारी में दिखी. वहीं, पूनिया उप चुनाव क्षेत्र वल्लभनगर में संगठन की नब्ज टटोलते पर दिखे.
उप चुनाव क्षेत्रों से राजे समर्थक दूर या साइड लाइन...
प्रदेश में 4 विधानसभा सीटें सुजानगढ़, राजसमंद, सहाड़ा और वल्लभनगर में उपचुनाव होने हैं. प्रदेश भाजपा ने उपचुनाव को लेकर तैयारियां भी बहुत पहले शुरू कर दी थी. फिर चाहे चुनाव पर्यवेक्षक बनाने हो या संगठन के लिहाज से प्रभारी समर्थक नेता. प्रदेश के प्रमुख नेताओं को कई जिम्मेदारी दी गई हैं, लेकिन वसुंधरा राजे उन्हें भी शामिल नजर नहीं आई. इसके दो कारण हो सकते हैं. पहला प्रदेश संगठन ने या तो राजे समर्थक नेताओं कुछ जिम्मेदारी देने से बचने की कोशिश की हो या फिर राजे समर्थक नेता खुद जिम्मेदारी लेने से बच रहे हो, जो भी हो यह प्रदेश भाजपा का आंतरिक मामला है, लेकिन इससे नुकसान प्रदेश भाजपा को ही है.
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उपचुनाव का परिणाम तय करेगा पूनिया की सियासी ताकत...
4 सीटों पर होने वाले उपचुनाव का परिणाम बहुत कुछ आने वाले विधानसभा चुनाव का परिदृश्य साफ कर देगा. राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि मौजूदा चारों सीटों के उपचुनाव परिणाम का असर सीधे तौर पर प्रदेश भाजपा के नेताओं के सियासी ताकत पर भी पड़ेगा. क्योंकि, इस उपचुनाव में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉक्टर सतीश पूनिया और उनके समर्थकों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. ऐसे में यदि परिणाम भाजपा के पक्ष में आए तो जीत का सेहरा भी पूनिया के सिर बंध जाएगा. आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सतीश पूनिया और मजबूत नेता बनकर उभरेंगे, लेकिन यदि परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं आए तो वसुंधरा राजे खेमा और उससे जुड़े नेता यह साबित करने में जुट जाएंगे कि वसुंधरा की उपेक्षा के चलते पार्टी का उपचुनाव में प्रदर्शन निराशाजनक रहा. मतलब, परिणाम दोनों ही खेलों से जुड़े नेताओं के सियासी भविष्य को तय करने वाला होगा.
वसुंधरा राजे का उप चुनाव क्षेत्रों में कोई दौरा नहीं...
प्रदेश में 4 सीटों पर होने वाले उप चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी तक नहीं हुआ है. लेकिन, जिस तरह प्रदेश भाजपा संगठन ने उप चुनाव की तैयारी शुरू की और लगातार पार्टी से जुड़े बड़े नेता वहां दौरे कर रहे हैं, उसमें वसुंधरा राजे अब तक कहीं नजर नहीं आई. वसुंधरा राजे का इन उप चुनाव क्षेत्रों में अब तक कोई दौरा भी नहीं बनाया गया. ये इस बात का संकेत है कि या तो वसुंधरा राजे ने खुद उपचुनाव क्षेत्रों से दूरी बनाकर रखी है या उन्हें इन उपचुनाव से साइड लाइन रखा गया है.
एकजुटता से ही खिलेगा कमल...
राजस्थान में भाजपा प्रमुख विपक्षी दल है और केंद्र में भाजपा की सरकार है, लेकिन मौजूदा उपचुनाव में भाजपा का परफॉर्मेंस तय करेगा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी मजबूती के साथ आगे बढ़ेगी या गुटबाजी के कांटे पार्टी की राह में बनेंगे रोडा. ऐसी प्रदेश नेतृत्व तो कार्यकर्ताओं के परिश्रम के पसीने से कमल खिलाने में जुटा है, लेकिन गुटबाजी और खेमे बाजी का दलदल जब तक नहीं पाटा जाएगा. तब तक उपचुनाव के मैदान में कमल का फूल खिल पाना मुश्किल होगा.