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SPECIAL: कोरोना से पहले तबाही मचा चुकी हैं ये महामारियां, देखें रिपोर्ट

कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी जकड़ में ले रखा है. आए दिन नए मरीज सामने आ रहे हैं. पूरा विश्व इंतजार कर रहा है कि कब इस महामारी से मुक्ति मिले और सामान्य जीवन फिर से शुरु हो पाए. लेकिन ये अकेली महामारी नहीं है जिसने इतना कोहराम मचाया हो. आइए नजर डालते हैं भारत में महामारियों की हिस्ट्री पर..

भारत में महामारियों की हिस्ट्री, History of pandemic in India
भारत में महामारियों की हिस्ट्री
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Published : Apr 14, 2020, 1:42 PM IST

Updated : Apr 14, 2020, 2:25 PM IST

जयपुर. यह पहली बार नहीं है जब विश्व या भारत किसी महामारी से जूझ रहा हो. इससे पहले भी ना जाने कितनी बार महामारियों ने विश्व के लाखों लोगों को अपनी चपेट में लिया है. आइए जानते हैं भारत में अब तक तबाही मचाने वाली महामारियों की हिस्ट्री..

महामारियों की हिस्ट्री

प्लेग : 20 साल तक ली जानें

गुजरात का सूरत शहर, सुबह के वक्त स्वास्थ्य मंत्रालय ने खबर दी कि एक मरीज की प्लेग से मौत हुई है. इस तरह से भारत में प्लेग की शुरुआत हुई. 1815 के बाद गुजरात के कच्छ और काठियावाड़ में यह सबसे पहले फैला और फिर अगले वर्ष हैदराबाद (सिंध) और अहमदाबाद में. प्लेग से हर साल सैकड़ों लोगों की मौतें होने लगी.

प्लेग महामारी की साइकिल चलती थी. यह रूक- रूक कर आता और लाखों लोगों की जान ले लेता था. सन 1876 में प्लेग एक बार और फैला. फिर 1898 में और लगातार 20 साल तक देशभर में लोगों की जान लेता रहा. प्लेग से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य बंगाल और मुंबई थे.

विशेषज्ञ बताते हैं कि जिस वक्त देश में प्लेग फैला था. उस वक्त भी लोगों खुद को क्वॉरेंटाइन कर लेते थे. हालांकि उस समय इसका महत्व लोगों को पता नहीं था. लेकिन लोग गांव छोड़कर खेतों में चले गए थे. वहां पर झोपड़ा में छह-छह महीने तक रहे तब जाकर प्लेग से छुटकारा मिला था.

ये भी देखें- राजस्थान में कोरोना की केस स्टडी, जानें प्रदेश के 5 एपीसेंटर के बारे में

कॉलरा (हैजा) : भारत से पैदा होकर मचाया कोहराम

19वीं सदी में एक ऐसी बीमारी आई, जो भारत से पैदा हुई. इस बीमारी का नाम था कॉलरा यानी हैजा. ये बीमारी गंदा पानी पीने से फैली. साथ ही गंगा नदी के डेल्टा के जरिए एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका में भी फैल गई. इस बीमारी की वजह से उस समय 10 लाख से ज्यादा मौतें हुई थीं.

1940 के दौर में भारत में हैजे के कारण होने वाली मौतों की संख्या काफी ज्यादा थी. शुरू में लोग समझ नहीं सके लेकिन फिर दुनियाभर में इस बीमारी ने तबाही मचा दी. 1941 के आस पास यह बीमारी भारत के गांवों में फैल गई. ऐसे फैली कि गांव के गांव साफ हो जाते.

बताया जाता है कि 1975 के दशक में बंगाल की खाड़ी के इलाके में यह फिर से फैला था. WHO के मुताबिक, अभी भी हर साल 13 लाख से 40 लाख के बीच लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं. जबकि, हर साल 1.5 लाख तक मौतें इस बीमारी से हो रही है.

ये भी देखें- आइए जानें, लॉकडाउन, कर्फ्यू और महा कर्फ्यू में क्या है अंतर

व्हाइट पॉक्स (चेचक): गावों में जमाई पैठ

भारत में ऐसी भी बीमारी आई जिसने ग्रामीण इलाकों में पैठ जमा ली. 15वीं शताब्दी में इसे 'व्हाइट पॉक्स' यानि चेचक कहा गया. चेहरे और शरीर पर लाल धब्बों और दागों के साथ होने वाला यह संक्रमण भारत में 60 के दशक में काफी फैला. लोगों में जागरुकता की कमी और हाईजीन की समस्या ने इसे तेजी से फैलने दिया.

चेचक से 18वीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में हर साल चार लाख लोगों की जान जाती थी. 20वीं सदी में चेचक की वजह दुनियाभर में लगभग 30 करोड़ लोगों की मौत हुई थी. इस बीमारी में शरीर पर छोटे दाने हो जाते हैं. शुरू में इसकी मृत्यु दर 35 प्रतिशत थी. भारत में इसका प्रभाव 19वीं सदी की शुरुआत में देखा गया.

सामान्यत: चेचक, बीमार के संपर्क में आने से फैलता है. चेचक के वायरस पीड़ित के शरीर में पांच से सात दिनों तक प्रभावी रहता है.

ये भी देखें- कोरोना से जंग में राजस्थान की क्या है तैयारी, देखें रिपोर्ट

इन्फ्लूएंजा फ्लू : बंबई बुखार ने निगले दो करोड़ लोग

साल 1918 में मुंबई में महामारी फैली थी. तब यहां फैले इन्फ्लूएंजा फ्लू ने करीब दो करोड़ लोगों की जान ली थी. इन्फ्लूएंजा फ्लू को पहले बंबई इन्फ्ल्युएंजा के नाम से जाना गया और फिर बाद में इसे आम तौर पर बंबई बुखार कहा जाने लगा.

कहा जाता है कि पहले विश्व युद्ध के बाद बंबई बंदरगाह पर लौटे ब्रिटिश इंडिया के सैनिक इन्फ्लूएंजा फ्लू लेकर आए थे. एक महीने के भीतर ही बंबई से लेकर पूरे देश में तेजी से मौतें होने लगी थीं. इलाज के आभाव में देश के कई हिस्सों में लोगों की जान गई.

इन्फ्लूएंजा की वजह से करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की मौत हुई है, जो विश्व युद्ध में मारे गए लोगों की तुलना में ज्यादा है. मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं थीं. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि महिलाएं बड़े पैमाने पर कुपोषण का शिकार थी. ऐसा माना जाता है कि इस महामारी से दुनिया की एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी और करीब पांच से दस करोड़ लोगों की मौत हो गई थी.

ये भी देखें- कोरोना से खूब लड़ा भीलवाड़ा...बना मिसाल

कोरोना वायरस : वुहान से फैली महामारी, अब तक जारी

कोरोना वायरस के परिवार का कोविड-19 चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ. पहली बार 8 दिसंबर 2019 को इससे संक्रमित पहला मरीज मिला था. 13 मार्च 2020 को डब्ल्यूएचओ ने इसे महामारी घोषित किया. कोरोना अब तक दुनिया के 200 देशों में फैल चुका है. इससे अब तक 1 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं.

चीन के अलावा कोरोना वायरस ने इटली, अमेरिका, ईरान, भारत, कोरिया समेत कई देशों को चपेट में लिया है. अभी तक कोरोना वायरस का इलाज नहीं मिल पाया है. हर देश से वैज्ञानिक लगातार इसकी खोज में जुटे हैं. इस महामारी से अब तक भारत में 10 हजार लोग संक्रमित हो चुके हैं.

वहीं, इस घातक बीमारी ने 300 से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया है. हालांकि कोरोना की जंग में कई लोगों की जीत भी मिली है. इस खतरनाक बीमारी से भारत में अब तक करीब 900 से ज्यादा लोग ठीक हुए हैं. लेकिन ये महामारी अपने पांव लगातार पसारते जा रही है, जो चिंता का विषय है.

जयपुर. यह पहली बार नहीं है जब विश्व या भारत किसी महामारी से जूझ रहा हो. इससे पहले भी ना जाने कितनी बार महामारियों ने विश्व के लाखों लोगों को अपनी चपेट में लिया है. आइए जानते हैं भारत में अब तक तबाही मचाने वाली महामारियों की हिस्ट्री..

महामारियों की हिस्ट्री

प्लेग : 20 साल तक ली जानें

गुजरात का सूरत शहर, सुबह के वक्त स्वास्थ्य मंत्रालय ने खबर दी कि एक मरीज की प्लेग से मौत हुई है. इस तरह से भारत में प्लेग की शुरुआत हुई. 1815 के बाद गुजरात के कच्छ और काठियावाड़ में यह सबसे पहले फैला और फिर अगले वर्ष हैदराबाद (सिंध) और अहमदाबाद में. प्लेग से हर साल सैकड़ों लोगों की मौतें होने लगी.

प्लेग महामारी की साइकिल चलती थी. यह रूक- रूक कर आता और लाखों लोगों की जान ले लेता था. सन 1876 में प्लेग एक बार और फैला. फिर 1898 में और लगातार 20 साल तक देशभर में लोगों की जान लेता रहा. प्लेग से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य बंगाल और मुंबई थे.

विशेषज्ञ बताते हैं कि जिस वक्त देश में प्लेग फैला था. उस वक्त भी लोगों खुद को क्वॉरेंटाइन कर लेते थे. हालांकि उस समय इसका महत्व लोगों को पता नहीं था. लेकिन लोग गांव छोड़कर खेतों में चले गए थे. वहां पर झोपड़ा में छह-छह महीने तक रहे तब जाकर प्लेग से छुटकारा मिला था.

ये भी देखें- राजस्थान में कोरोना की केस स्टडी, जानें प्रदेश के 5 एपीसेंटर के बारे में

कॉलरा (हैजा) : भारत से पैदा होकर मचाया कोहराम

19वीं सदी में एक ऐसी बीमारी आई, जो भारत से पैदा हुई. इस बीमारी का नाम था कॉलरा यानी हैजा. ये बीमारी गंदा पानी पीने से फैली. साथ ही गंगा नदी के डेल्टा के जरिए एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका में भी फैल गई. इस बीमारी की वजह से उस समय 10 लाख से ज्यादा मौतें हुई थीं.

1940 के दौर में भारत में हैजे के कारण होने वाली मौतों की संख्या काफी ज्यादा थी. शुरू में लोग समझ नहीं सके लेकिन फिर दुनियाभर में इस बीमारी ने तबाही मचा दी. 1941 के आस पास यह बीमारी भारत के गांवों में फैल गई. ऐसे फैली कि गांव के गांव साफ हो जाते.

बताया जाता है कि 1975 के दशक में बंगाल की खाड़ी के इलाके में यह फिर से फैला था. WHO के मुताबिक, अभी भी हर साल 13 लाख से 40 लाख के बीच लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं. जबकि, हर साल 1.5 लाख तक मौतें इस बीमारी से हो रही है.

ये भी देखें- आइए जानें, लॉकडाउन, कर्फ्यू और महा कर्फ्यू में क्या है अंतर

व्हाइट पॉक्स (चेचक): गावों में जमाई पैठ

भारत में ऐसी भी बीमारी आई जिसने ग्रामीण इलाकों में पैठ जमा ली. 15वीं शताब्दी में इसे 'व्हाइट पॉक्स' यानि चेचक कहा गया. चेहरे और शरीर पर लाल धब्बों और दागों के साथ होने वाला यह संक्रमण भारत में 60 के दशक में काफी फैला. लोगों में जागरुकता की कमी और हाईजीन की समस्या ने इसे तेजी से फैलने दिया.

चेचक से 18वीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में हर साल चार लाख लोगों की जान जाती थी. 20वीं सदी में चेचक की वजह दुनियाभर में लगभग 30 करोड़ लोगों की मौत हुई थी. इस बीमारी में शरीर पर छोटे दाने हो जाते हैं. शुरू में इसकी मृत्यु दर 35 प्रतिशत थी. भारत में इसका प्रभाव 19वीं सदी की शुरुआत में देखा गया.

सामान्यत: चेचक, बीमार के संपर्क में आने से फैलता है. चेचक के वायरस पीड़ित के शरीर में पांच से सात दिनों तक प्रभावी रहता है.

ये भी देखें- कोरोना से जंग में राजस्थान की क्या है तैयारी, देखें रिपोर्ट

इन्फ्लूएंजा फ्लू : बंबई बुखार ने निगले दो करोड़ लोग

साल 1918 में मुंबई में महामारी फैली थी. तब यहां फैले इन्फ्लूएंजा फ्लू ने करीब दो करोड़ लोगों की जान ली थी. इन्फ्लूएंजा फ्लू को पहले बंबई इन्फ्ल्युएंजा के नाम से जाना गया और फिर बाद में इसे आम तौर पर बंबई बुखार कहा जाने लगा.

कहा जाता है कि पहले विश्व युद्ध के बाद बंबई बंदरगाह पर लौटे ब्रिटिश इंडिया के सैनिक इन्फ्लूएंजा फ्लू लेकर आए थे. एक महीने के भीतर ही बंबई से लेकर पूरे देश में तेजी से मौतें होने लगी थीं. इलाज के आभाव में देश के कई हिस्सों में लोगों की जान गई.

इन्फ्लूएंजा की वजह से करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की मौत हुई है, जो विश्व युद्ध में मारे गए लोगों की तुलना में ज्यादा है. मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं थीं. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि महिलाएं बड़े पैमाने पर कुपोषण का शिकार थी. ऐसा माना जाता है कि इस महामारी से दुनिया की एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी और करीब पांच से दस करोड़ लोगों की मौत हो गई थी.

ये भी देखें- कोरोना से खूब लड़ा भीलवाड़ा...बना मिसाल

कोरोना वायरस : वुहान से फैली महामारी, अब तक जारी

कोरोना वायरस के परिवार का कोविड-19 चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ. पहली बार 8 दिसंबर 2019 को इससे संक्रमित पहला मरीज मिला था. 13 मार्च 2020 को डब्ल्यूएचओ ने इसे महामारी घोषित किया. कोरोना अब तक दुनिया के 200 देशों में फैल चुका है. इससे अब तक 1 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं.

चीन के अलावा कोरोना वायरस ने इटली, अमेरिका, ईरान, भारत, कोरिया समेत कई देशों को चपेट में लिया है. अभी तक कोरोना वायरस का इलाज नहीं मिल पाया है. हर देश से वैज्ञानिक लगातार इसकी खोज में जुटे हैं. इस महामारी से अब तक भारत में 10 हजार लोग संक्रमित हो चुके हैं.

वहीं, इस घातक बीमारी ने 300 से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया है. हालांकि कोरोना की जंग में कई लोगों की जीत भी मिली है. इस खतरनाक बीमारी से भारत में अब तक करीब 900 से ज्यादा लोग ठीक हुए हैं. लेकिन ये महामारी अपने पांव लगातार पसारते जा रही है, जो चिंता का विषय है.

Last Updated : Apr 14, 2020, 2:25 PM IST
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