जयपुर. महाराणा प्रताप से जुड़े स्मारक, हल्दी घाटी, रक्ततलाई, चेतक स्मारक और बादशाही बाग में लगे शिलालेख जिनको लेकर विवाद चल रहा है कि इन शिलालेखों पर सही जानकारी नहीं दी गई है, इन्हें अब बदला जा जाए. ये शिलालेख साल 1975 के आस पास तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी की यात्रा के दौरान राज्य सरकार ने ही लगाए थे. तब से साल 2003 तक राज्य सरकार का पर्यटन विभाग ही इनकी देखरेख करता रहा है. साल 2003 के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग एएसआई ने इन्हें राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित कर दिया, जिसके बाद से एएसआई ने देखरेख शुरू कर दी. अब विभाग यहां लगे शिलालेख जिनमें युद्ध की तिथि जो कहीं पर 18 जून और कहीं पर 21 जून लिखी गई है और अन्य तथ्य जिनको लेकर विरोध होता रहा है, उसे सुधारने जा रहा है.
पुरातत्व विभाग के जोधपुर मंडल के अधीक्षक विपिन चंद्र नेगी का कहना है कि चारों स्मारक के शिलालेख राज्य सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से ही लगाए गए थे, हमने इनमें कोई बदलाव नहीं किया. यह भी कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रवास के दौरान लगाए गए थे. इन शिलालेखों में विसंगतियां हैं, जिन्हें हम अब सुधार कर शिलालेख एएसआई के मापदंडों के अनुरूप तैयार करेंगे, जो आवश्यक तथ्य बदलने हैं वे बदले भी जाएंगे. युद्ध की तिथि भी 18 जून सर्वमान्य है तो वह की जाएगी. इसके अलावा अभी हमारी तकनीकी टीम भी काम कर रही है. ये वो तथ्य हैं जिन्हें बदला जाएगा और जिनमें दिखाई देता है कि इनमें विसंगतियां हैं.
नेगी ने बताया कि सही जानकारी को लेकर अध्ययन किया जा रहा है, अन्य शोध की मदद भी ली जा रही है. रक्ततलाई के स्मारक के शिलालेख पर महाराणा प्रताप की ओर से पीछे हटने की बात लिखी है क्या उसे हटाया जाएगा के सवाल पर नेगी ने बताया कि यह कहना मुश्किल है कि क्या हटेगा, क्या रहेगा, लेकिन जो भी शिलालेख लगेगा और उस पर जो भी अंकित होगा वह हमारे मोनोमेंट विभाग की ओर से अनुमोदित होकर भारतीय पुरातत्व विभाग के मापदंडों के अनुरूप आने वाले दिनों में वापस लगेगा.
विपिन चंद्र नेगी ने कहा कि पुरातत्व विभाग के पास लगातार इन शिलालेखों पर लिखे तथ्यों को लेकर आपत्तियां आती रही हैं. इसको लेकर बड़े स्तर पर विचार किया गया. इसके बाद यह तय हुआ कि जब युद्ध एक ही दिन हुआ तो उसका निर्णय क्या रहा होगा, इसको लेकर कहा नहीं जा सकता. अकबर का लक्ष्य था राणा प्रताप का स्वाभिमान तोड़ना, जिसमें वह असफल रहा. ऐसे में निर्णय को लेकर कोई तथ्य इन स्मारकों में प्रदर्शित नहीं होगा, लेकिन जन भावनाएं और राणा प्रताप के स्वाभिमान का ध्यान रखा जाएगा.