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हर बार मेयर और सभापति की चुनिंदा सीटों पर ही आरक्षण क्यों: हाईकोर्ट

प्रदेश में नगर निकायों के चुनाव में मेयर और सभापति के लिए एससी एसटी के आरक्षण चुनिंदा सीटों पर ही रखने को लेकर हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, प्रमुख स्वायत्त शासन सचिव और मुख्य चुनाव आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. हाईकोर्ट ने बारां नगर परिषद के निवर्तमान सभापति और अन्य लोगों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है.

High Court seeks reply, jaipur news, राजस्थान हाइकोर्ट की खबर
मेयर और सभापति की चुनिंदा सीटों पर ही आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
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Published : Oct 1, 2020, 7:33 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाइकोर्ट ने प्रदेश की नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषदों के मेयर और सभापति के पदों के लिए एससी एसटी के आरक्षण को हर बार कुछ चुनिंदा सीटों तक ही सीमित रखने पर मुख्य सचिव, प्रमुख स्वायत्त शासन सचिव और मुख्य चुनाव आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महान्ति और न्यायाधीश महेंद्र गोयल की खंडपीठ ने यह आदेश बारां नगर परिषद के निवर्तमान सभापति कमल राठौर व अन्य की ओर से दायर याचिका पर दिए.

मेयर और सभापति की चुनिंदा सीटों पर ही आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

याचिका में अधिवक्ता डॉ. अभिनव शर्मा ने अदालत को बताया कि याचिका में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 2009 की धारा 423 को चुनौती दी गई है. जिसके तहत शहरी निकाय में एससी एसटी का आरक्षण उनकी जनसंख्या की अधिकता तक ही सीमित किया गया है.

ये पढ़ें: ट्यूशन फीस का 70 फीसदी वसूलने के आदेश पर HC ने लगाई अंतरिम रोक

याचिका में कहा गया कि गत 40 सालों में हुए चुनाव में एससी, एसटी वर्ग की जनसंख्या के आधार पर बारी-बारी से सभी नगर निगम, पालिका और परिषदों में मेयर और सभापति के पद आरक्षित रखने चाहिए थे. इसके बावजूद राजनैतिक कारणों के चलते इनके आरक्षण को हर चुनाव में कुछ चुनिंदा सीटों तक ही सीमित कर दिया जाता है. जिसके चलते न तो इन चुनिंदा सीटों पर सामान्य वर्ग का उम्मीदवार आता है और न ही दूसरी सीटों पर आरक्षित वर्ग को आरक्षण का लाभ मिल पाता है. जबकि दोनों आरक्षित वर्ग को प्रदेश की हर नगर निगम, पालिका, परिषद या काउंसिल में मेयर या सभापति का पद एक बार जनसंख्या के आधार पर रोस्टर के हिसाब से मिलना चाहिए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

जयपुर. राजस्थान हाइकोर्ट ने प्रदेश की नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषदों के मेयर और सभापति के पदों के लिए एससी एसटी के आरक्षण को हर बार कुछ चुनिंदा सीटों तक ही सीमित रखने पर मुख्य सचिव, प्रमुख स्वायत्त शासन सचिव और मुख्य चुनाव आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महान्ति और न्यायाधीश महेंद्र गोयल की खंडपीठ ने यह आदेश बारां नगर परिषद के निवर्तमान सभापति कमल राठौर व अन्य की ओर से दायर याचिका पर दिए.

मेयर और सभापति की चुनिंदा सीटों पर ही आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

याचिका में अधिवक्ता डॉ. अभिनव शर्मा ने अदालत को बताया कि याचिका में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 2009 की धारा 423 को चुनौती दी गई है. जिसके तहत शहरी निकाय में एससी एसटी का आरक्षण उनकी जनसंख्या की अधिकता तक ही सीमित किया गया है.

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याचिका में कहा गया कि गत 40 सालों में हुए चुनाव में एससी, एसटी वर्ग की जनसंख्या के आधार पर बारी-बारी से सभी नगर निगम, पालिका और परिषदों में मेयर और सभापति के पद आरक्षित रखने चाहिए थे. इसके बावजूद राजनैतिक कारणों के चलते इनके आरक्षण को हर चुनाव में कुछ चुनिंदा सीटों तक ही सीमित कर दिया जाता है. जिसके चलते न तो इन चुनिंदा सीटों पर सामान्य वर्ग का उम्मीदवार आता है और न ही दूसरी सीटों पर आरक्षित वर्ग को आरक्षण का लाभ मिल पाता है. जबकि दोनों आरक्षित वर्ग को प्रदेश की हर नगर निगम, पालिका, परिषद या काउंसिल में मेयर या सभापति का पद एक बार जनसंख्या के आधार पर रोस्टर के हिसाब से मिलना चाहिए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

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